५९. संघर्षों की चेतावनी-घंटियाँ

इस प्रकार इसवीसन १९१८ से पॅलेस्टाईन में ब्रिटिशों की सत्ता शुरू हुई। विश्‍वयुद्ध जीतने के बाद ब्रिटन ने वहाँ पर लष्करी प्रशासन नियुक्त किया था, जिसके स्थान पर सन १९२१ में नागरी प्रशासन लाया गया।

हर्ट्झ्ल् के तथा उसके द्वारा स्थापन किये गये झायॉनिस्ट ऑर्गनायझेशन के अथक प्रयास, साथ ही ब्रिटीश सरकार ने जारी किया ‘बेलफोर डिक्लरेशन’, ‘लीग ऑफ नेशन्स’ ने उसे मान्यता देकर निर्माण किया ‘ब्रिटीश मँडेटरी पॅलेस्टाईन’ इस सारी बातों के परिणामस्वरूप दुनियाभर से ज्यूधर्मीय पॅलेस्टाईन आने तो लगे, मग़र यहाँ आने पर उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।

इसका प्रमुख कारण, इस मामले में ब्रिटिशों की नीति संदिग्ध होने के कारण, उसने पॅलेस्टाईन में कई अगामी संघर्षों के बीज बोये।

१९२० में ‘नबी मुसा’ इस मुस्लिमधर्मियों के एक वार्षिक उत्सव के दौरान अरबी धार्मिक नेताओं ने ज्यूधर्मियों के ख़िलाफ़ प्रक्षोभक भाषण करने के बाद, उसका पर्यावसान दंगों में हुआ।

ऑटोमन्स के खिलाफ़ चल रहे युद्ध में ऑटोमन्स की ताकत जाया करने के लिए ब्रिटिशों ने भेदनीति का भी इस्तेमाल किया था। ऑटोमन साम्राज्य में अरब समाज में नाराज़गी फैली हुई है यह जान जाते ही ब्रिटिशों ने ऑटोमन साम्राज्यस्थित अरबों को – ‘ऑटोमन्स के खिलाफ़ बग़ावत करोगे, तो हम हम अरबी स्वतंत्रता का समर्थन करेंगे’ – ऐसा आश्‍वासन देकर ऑटोमन्स के खिलाफ़ बग़ावत करने के लिए उक़साया था। लेकिन यह बग़ावत करते समय अरबों ने – ‘तुर्कों के ऑटोमन साम्राज्य में से बाहर निकलकर, पश्‍चिमी ओर को सिरिया के अलेप्पो से लेकर पूर्व की ओर एडनपर्यंत एकछत्री अरब राज्य निर्माण करना’ यह ध्येय सामने रखा था।

लेकिन वास्तव में, ऑटोमन्स के खिलाफ़ विश्‍वयुद्ध जीतने के बाद ब्रिटिशों ने ऑटोमन साम्राज्य के टुकड़ें कर – ‘ये प्रदेश अपने पैरों पर खड़े रहने के लिए अभी सक्षम नहीं हुए हैं’ यह कारण देकर – वे मध्यपूर्वस्थित प्रदेश दोस्तराष्ट्रों के साथ बाँट लिये थे। इनमें अरब राष्ट्रवादियों का मज़बूत क़िला ही माना जानेवाला सिरियास्थित दमास्कस शहर भी इस बँटवारे में फ्रान्स के पास गया था। अतः ब्रिटिशों ने हमारे साथ धोख़ा किया है ऐसा अरबों को लग रहा था और उन्होंने अपना रूख अब जेरुसलेम और पॅलेस्टाईन की ओर मोड़ दिया।

इसके साथ ही, सन १९१७ के ‘बेलफोर डिक्लरेशन’ के तहत पॅलेस्टाईन में ज्यूधर्मियों के लिए ‘नॅशनल होम’ निर्माण के प्रयास करने का ज्यूधर्मियों को ब्रिटन का आश्‍वासन था ही। लेकिन वास्तव में, ब्रिटन ने जेरुसलेम पर नियुक्त किया पहला हाय कमिशनर ज्यूधर्मीय होने के बावजूद भी उसने ज्यूधर्मियों के जेरुसलेमप्रवेश पर अधिक से अधिक पाबंदियाँ लगाना शुरू कर दिया था। इस कारण ज्यूधर्मीय भी ब्रिटिशों के साथ खुश नहीं थे।

ज्यूधर्मियों पर लगायीं गयीं पाबंदियों में, जॉर्डन नदी के पूर्व की ओर के पॅलेस्टाईन में प्रवेश करने के पाबंदी ज्यूधर्मियों पर लगायी गयी थी। लेकिन यह पाबंदी अरबों के लिए न होकर, उन्हें वहाँ मुक्तद्वार था। क्योंकि यह ‘ट्रान्सजॉर्डन’ नाम से जाना जानेवाला प्रदेश अरबों के लिए आरक्षित रखकर उन्हें थोड़ाबहुत शान्त रखने की ब्रिटिशों की योजना थी।

लेकिन अरबों में इस ‘बेलफोर रिझॉल्युशन’ को लेकर और कुल मिलाकर ज्यूधर्मियों के लिए ही ग़ुस्सा धधक रहा था। इस ग़ुस्से का प्रथम दर्शन हुआ, सन १९२० में पुरानी जेरुसलेम नगरी और आसपास के इला़के में हुए एक दंगे के दौरान।

ब्रिटीश सेना का इजिप्तस्थित सेनानी जनरल अलेन्बी ने इजिप्त में से सेना की अधिक कुमक भेजने के बाद ही इन दंगों को क़ाबू में लाया गया।

‘नबी मुसा’ इस ‘वेस्ट बँक’ में आयोजित किये जानेवाले मुस्लिमों के एक वार्षिक उत्सव के उपलक्ष्य में इकट्ठा हुए सैंकड़ों मुस्लिम यात्रियों के सामने भाषण करते समय, स्थानिक अरबी धार्मिक नेताओं ने ज्यूधर्मियों के बारे में, साथ ही उनके जेरुसलेम में बसने की प्रक्रिया के बारे में प्रक्षोभक भाषा का इस्तेमाल किया, जिसका अंजाम पहले झगड़े में और फिर दंगों में हुआ। अप्रैल ४ से अप्रैल ७ ऐसे चार दिन प्रचंड क्षति एवं नुकसान पहुँचाने के बाद ही इन दंगे को ब्रिटीश सेना क़ाबू में ला सकी। इन दंगों में ५ ज्यूधर्मीय और ४ अरब मारे गये और दोनों तरफ़ के सैंकड़ों जन ज़़ख्मी हुए।

इन दंगों के पश्‍चात् ज्यूधर्मीय, अरब और ब्रिटीश इनमें एक-दूसरे के प्रति हमेशा के लिए अविश्‍वास का माहौल पैदा हो गया। लेकिन ज्यूधर्मीय, इन दंगों से सबक सीखकर, ब्रिटीश सेना अरबों के ग़ुस्से से ज्यूधर्मियों की रक्षा करने में नाक़ाम रही यह देखते हुए, अपनी समाजव्यवस्था और सुरक्षाव्यवस्था को अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनाने के पीछे लग गये। उन्होंने निमलष्करी स्व-सुरक्षा टुकड़ियों (‘सेल्फ-डिफेन्स युनिट्स’) का निर्माण किया, जिसमें से ही आगे चलकर स्वतंत्र इस्रायली देश की सेना (‘इस्रायली डिफेन्स फोर्स’-‘आयडीएफ’) का जन्म हुआ।

ऐसे ही दंगे अगले साल यानी सन १९२१ में भी हुए। १ मई (‘मे दिवस’) के उपलक्ष्य में ‘ज्युइश कम्युनिस्ट पार्टी’ के सदस्य जाफ्फा से तेल अवीव ऐसा जुलूस निकालनेवाले थे। साथ ही, उससे पहले – ‘ब्रिटिशों की सत्ता का त़ख्ता पलट दो और सोव्हिएत पॅलेस्टाईन का निर्माण करो’ ऐसा संदेश देनेवाले पत्रक भी उन्होंने वितरित किये थे। इस जुलूस को अधिकृत ज्यूधर्मीय कौन्सिल की मान्यता नहीं थी। इस कारण, यह जुलूस वैसे कहा जाये तो अनधिकृत ही माना जा रहा था।

लेकिन उनके एक प्रतिस्पर्धी ज्यूधर्मीय सोशालिस्ट गुट ने भी इस मई दिवस के उपलक्ष्य में तेल अवीव में परेड़ का आयोजन किया था। जब ये दोनों गुट आमनेसामने आये, तब भी पहले वादविवाद होकर उसका पर्यावसान कुछ ही देर में हाथापायी में और बाद में भीषण दंगों में हो गया। ये दंगें शहर में फ़ैलते गये। कुछ ही समय में – ‘ये अरबों पर हमले किये जा रहे हैं’ ऐसी ख़बर किसीने फ़ैला देने के कारण जाफ्फा शहर के अरबों ने, हाथ में आये हथियार लेकर सैकड़ों की संख्या में ज्यूधर्मियों पर हमला बोल दिया और दंगें अधिक ही बढ़ गये।

१९२१ के अरब-ज्यू दंगों में जान खो चुके ज्यूधर्मियों का सामूहिक दफनस्थान

१ मई से ७ मई के दरमियान हुए इन दंगों में ४७ ज्यूधर्मीयों एवं ४८ अरबों की मौत हो गयी और सैंकड़ों लोग ज़़ख्मी हो गये। हाय कमिशनर हर्बर्ट सॅम्युएल ने ईमर्जन्सी घोषित कर प्रसारमाध्यमों पर सेन्सॉरशिप जारी की और इजिप्त में से अधिक सेना की माँग की। ब्रिटीश सेना के इजिप्त स्थित सेनानी जनरल अलेन्बी ने इजिप्त में से सेना की अधिक कुमक भेजने के बाद ही इन दंगों को क़ाबू में लाया जा सका।

इसी प्रकार के दंगे सन १९२१ के नवम्बर में भी हुए।

‘ब्रिटीश मँडेटरी पॅलेस्टाईन’ के पहले दो ही सालों में ज्यूधर्मीय और स्थानिक अरबों के बीच हुए ये दंगे अब ब्रिटिशों के लिए बढ़ते सिरदर्द का कारण बन चुके थे। पॅलेस्टाईनस्थित अरबों को ज्यूधर्मीय वहाँ पर चाहिए ही नहीं थे; वहीं, ज्यूधर्मीय अब पॅलेस्टाईन में सम्मान के साथ अपने खुद के घर का निर्माण करने के अलावा अन्य किसी विकल्प का स्वीकार करनेवाले नहीं थे।

यह समस्या और भी बढ़ती चली जा रही थी….(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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