शिलाँग

आसमान में काले घने बादल छा गये हैं, ठंडी हवा का झोंका आ रहा है और अब बादल किसी भी पल बरस सकते हैं, ऐसा बस हम सोच ही रहे हैं की यकायक बड़ी बड़ी बूँदें बरसने लगती हैं। हम सभी ने कभी न कभी किसी न किसी बारिश के मौसम में इस तरह का अनुभव अवश्य किया होगा। लेकिन आज कल के ग्लोबल वॉर्मिंग के जमाने में बारिश का ऐसा अनुभव प्राप्त करना का़फी मुश्किल बन चुका है। लेकिन मायूस मत हो जाइए, आज भी हमारे भारत में कुछ ऐसे गिने चुने स्थल हैं, जहाँ पर घने काले बादल आसमान में छा जाते हैं और देखते ही देखते वे बरसने भी लगते हैं।

आपने मेघालय इस राज्य का नाम तो सुना ही होगा। ईशान्य भारत का यह एक छोटा सा राज्य है। ‘मेघालय’ इस नाम में ही मेघों का यानि की बादलों का ज़िक्र है। ‘मेघालय’ इस शब्द का सरलार्थ है- ‘बादलों का घर’। इससे आप को थोड़ा बहुत अंदाज़ा आ ही गया होगा कि इस प्रदेश में बारिश की औसत कुछ अधिक ही रहेगी; क्योंकि बादल उनके अपने घर में तो अवश्य गरजेंगे भी और बरसेंगे भी।

हमारे भारत के ईशान्य में कई छोटे बड़े टीलें और पहाड़ हैं। इन्हीं में से कुछ पहाड़ी इलाकों से मिलकर ‘मेघालय’ यह राज्य बना है।

ऐसे इन बादलों के घर का सिरताज है – ‘शिलाँग’। शिलाँग यह मेघालय की राजधानी है। आज कल शहर का नाम लेते ही जो एक निर्धारित आकृतिबद्ध रचना हमारी मनश्‍चक्षुओं के सामने उभरकर आ जाती है, उसके लिए शिलाँग यह अपवाद है। इस शहर में आधुनिकीकरण की पगडंडियाँ नज़र तो अवश्य आती हैं, लेकिन उनकी पार्श्‍वभूमी बनकर साथ रहती है, मन को मोह लेनेवाली कुदरत की ख़ूबसूरती।

यदि संक्षेप में शिलाँग का वर्णन करना हो, तो ‘बेमिसाल ख़ूबसूरती’ इतना ही कहा जा सकता है। शिलाँग की इस ख़ूबसूरती की वजह है, उसका भौगोलिक स्थान। मेघालय यह पहाड़ी इलाक़ा है और एक पहाड़ पर ही बसा है, शिलाँग। शिलाँग के इर्दगिर्द भी पहाड़ियाँ हैं और इसीलिए वह एक हिल स्टेशन है।

भारत में हिल स्टेशन जाने के लिए यातायात के दो प्रमुख साधन उपलब्ध रहते हैं। एक है रेलमार्ग और दुसरा है सड़क। आज विज्ञान के विकास के कारण हवाई जहाज़ इस साधन को भी उपयोग में लाया जा रहा है। शिलाँग जाने के लिए तीन में से दो ही विकल्प हमारे पास हैं- सड़क और हवाई जहाज़।

हरे भरे पहाड़ों की गोद में से गुज़रनेवाली घुमावदार सड़क, १००% ऑक्सिजन प्रदान करनेवाली शुद्ध हवा, मन को सुकून देनेवाली ठंड़ी हवा और कदम कदम पर पहाड़ों से कूदकर हमारे सामने से गुज़रनेवाले कई शरारती झरनें और किसी मोड़ पर बरसने के आसार जतानेवाला और अगले ही मोड़ पर अचानक बरसकर हमें शराबोर कर देनेवाला नटखट सावन, जो बड़ी तेज़ी से बरसने लगता है। जिस शहर के प्रमुख दर्शन के पहले उसका ‘ट्रेलर’ ही मन को मोह लेता हो, वह शहर कितना सुंदर होगा!

स्कूल में ईशान्य भारत और वहाँ के राज्यों की कुछ जानकारी हमें मिलती है। फिर कभी कोई मुसा़फिर बनकर या कामकाज के सिलसिले में वहाँ जाता है और इस प्रदेश से रूबरू हो जाता है। बाकियों के लिए यह प्रदेश स्कूली शिक्षा के दायरे में सिमटकर ही रह जाता है। इसीलिए शिलाँग की सैर करने से पहले आइए, पहाड़ी सड़क के इस मोड़ पर थोड़ी देर के लिए रुककर यह शहर जिस मेघालय का अविभाज्य अंग है, उस मेघालय के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी प्राप्त करते हैं।

ईशान्य दिशा की कई पहाड़ियों में से गारो, खासी और जैंतिया इन पहाड़ियों को मिलाकर एक राज्य स्थापित किया गया, जिसे नाम दिया गया मेघालय। दरअसल इन पहाड़ियों पर प्राचीन समय से वन्य जनजातियाँ बस रही थी। पहाड़ियों के नाम से उन जनजातियों के नाम रहते थे। जैसा कि गारो पहाड़ियों पर बसनेवाले गारो लोग, खासी पहाड़ियों पर बसनेवाले खासी लोग आदि । मेघालय राज्य की स्थापना भारत को आज़ादी मिलने के बाद हुई।

इन छोटी बड़ी पहाड़ियों पर रहनेवाली वन्य जनजातियों की अपनी अपनी स्वतंत्र रियासतें थीं और उनके नियमों के अनुसार वहाँ का कारोबार चलता था। इन वन्य जनजातियों के लोग आत्मसम्मानी थें। अंग्रेज़ों द्वारा भारत में चंचुप्रवेश करने के बाद भी वे अंग्रेज़ों से आज़ाद ही रहें । इस प्रदेश पर कब्ज़ा करने के लिए अंग्रेज़ों को उन्नीसवी सदी की पौ फटने तक रुकना पड़ा। विदेशी अंग्रेज़ों ने इन पहाड़ी इलाकों का समावेश असम में कर दिया। आगे चलकर बंगाल के बटवारे के कारण आज के मेघालय को पूर्व बंगाल और असम प्रदेश में शामिल किया गया। इस बटवारे के रद हो जाने के बाद पुन: आज का मेघालय पहले कि तरह ही असम प्रदेश का हिस्सा बन गया।

आगे चलकर भारत के आज़ाद हो जाते ही इन गारो, खासी और जैंतिया पहाड़ियों पर रहनेवाली अंग्रेज़ी हुकूमत भी ख़त्म हो गयी।

लेकिन अंग्रेज़ों के ज़माने से ही शिलाँग नाम के एक छोटे से गाँव का सफर धीरे धीरे शुरू हो चुका था, एक शहर बनने की ओर, राज्य का एक मध्यवर्ती थाना बनने की ओर।

१९वीं सदी के मध्य तक छोटासा गाँव रहनेवाला शिलाँग, एक लंबे अरसे तक पूर्व बंगाल और असम प्रदेश का ‘समर कॅपिटल’ बना रहा। आगे चलकर जब पुन: उसका समावेश असम प्रदेश में किया गया, तब वह असम प्रदेश की राजधानी बन गया। अंग्रेज़ी हुकूमत के समय ही शिलाँग एक प्रमुख शहर या राजधानी का शहर इस रूप में उदयित हो ही चुका था।

भारत के आज़ाद हो जाने के बाद इन ईशान्य पहाड़ी इलाक़ों को देश की मुख्य धारा में शामिल करने की दृष्टि से सोचविचार शुरू हुआ। उसके अनुसार फिर मेघालय राज्य का निर्माण किया गया और शिलाँग बना उसकी राजधानी। मेघालय के साथ साथ ही नागालँड, मिझोराम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा आदि ईशान्यी राज्यों का भी निर्माण किया गया।

इस तरह गारो, खासी और जैंतिया इन पहाड़ी इलाकों से बना मेघालय और शिलाँग बना उसकी राजधानी। १९७० के बाद कि यह घटना है।

सात ज़िलों से मिलकर बना मेघालय यह एक छोटा सा राज्य है। पूर्वी गारो पहाड़ियाँ, पूर्वी खासी पहाड़ियाँ, जैंतिया पहाड़ियाँ, रि-भोइ, दक्षिणी गारो पहाड़ियाँ, पश्‍चिमी गारो पहाड़ियाँ और पश्‍चिमी खासी पहाड़ियाँ ये मेघालय राज्य के सात ज़िले हैं।

घने विशाल जंगल, तेज़ बरसात और पहाड़ी इलाक़ा, इस तरह की भौगोलिक परिस्थिति के कारण हालाँकि खेती यह यहाँ के लोगों की रोज़ी रोटी का साधन है, मग़र साथ ही वन्य उत्पादनों का व्यवसाय भी यहाँ के लोग करते हैं। लेकिन यह सच है कि यहाँ के लोगों को का़फी मेहनत करनी पड़ती है। पहाड़ों में खनिज संपत्ति भी का़ङ्गी प्रमाण में है, जिसे खोजकर उसपर आधारित उद्योग शुरू करने से इन लोगों की आमदनी बढ़ सकती है।

प्राचीन समय से खासी और गारो ये वन्य जनजातियाँ इस प्रदेश में बसी हुई हैं।

मेघालय के इतिहास तथा निर्माण के बारे में जानने के बाद आइए इस पहाड़ी घुमावदार सड़क से अब चलते हैं, मेघालय की राजधानी की ओर।

इस स्थान का नाम शिलाँग कैसे हुआ, इस विषय में कईं मत हैं। यहाँ के सब से बड़े शिखर का नाम है, ‘शायलाँग’ और उसीके कारण इस शहर का नाम हुआ ‘शिलाँग’, ऐसी कुछ लोगों की राय है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि यहाँ के स्थानीय देवता के नाम से इस शहर को ‘शिलाँग’ कहा जाने लगा।

शिलाँग से कुछ ही दूरी पर एक बहुत बड़ी झील है। ‘उमियाम लेक’ अथवा ‘बड़ा पानी’ इस नाम से वह जानी जाती है। इसके अलावा शिलाँग में ऐसी अन्य भी कुछ झीलें हैं।

पानी यह शिलाँग की भूमि का एक अविभाज्य घटक है। यहाँ पर आपको ज़मीन पर झीलों और तालाबों के रूप में पानी दिखायी देगा और साथ ही आसमान से होनेवाली बारिश का पानी भी। पहाड़ों के कारण कई छोटे बड़े प्रपातों (वॉटर फॉल) के साथ भी हमारी मुलाक़ात होती रहती है। उन्हीं में से कुछ ख़ास ऐसे बड़े और साल भर बहनेवाले वॉटर फॉल सैलानियों के आकर्षण का विषय हैं।

शिलाँग का अंग्रेज़ों ने अपने इस्तेमाल के लिए उपयोग करते हुए यहाँ पर कुछ वास्तुओं तथा रचनाओं का निर्माण किया। उन्हीं में से एक है, शिलाँग का ‘गोल्फ कोर्स’। यह गोल्फ का सबसे बड़ा मैदान माना जाता है। १९वीं सदी के अन्त में अंग्रेज़ों ने यहाँ पर गोल्फ की शुरुआत कर ९ होल्स के गोल्फ के इस मैदान को बनाया। आज का गोल्फ मैदान १८ होल्स का है। बारिश में बार बार भीगनेवाला यह मैदान दुनिया के गोल्फ मैदानों में कुछ ख़ास माना जाता है।

आज के शिलाँग में मेघालय के पुराने निवासियों के साथ साथ भारत के अन्य हिस्सों से आये हुए लोग भी रहते हैं। इस वजह से इस शहर को एक आधुनिक पहचान मिली है।

घने विशाल जंगल, तेज़ बरसात और पहाड़ी इलाक़ा, इस तरह की भौगोलिक परिस्थिति के कारण यहाँ पर वनसंपदा यानि कि पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों के कई प्रकार पाये जाते हैं। फूलों में जिनकी फिलहाल अधिक माँग है, ऐसे कई प्रकार के, कई रंगों के ऑर्किड्स् यहाँ पर दिखायी देते हैं।

दर असल पर्यटक के रूप में कहीं पर जाने के बाद ‘साईट सीइंग’ तो हम अवश्य करते हैं। शिलाँग जैसे शहर में भी ऐसे कई पर्यटन स्थल हैं। लेकिन सच कहूँ, ऐसी जगह जाने के बाद वहाँ के कुदरत के करिश्मों को जी भरकर देखना चाहिए और पूरे गाँव की सैर करनी चाहिए।

ऐसे इस शिलाँग से कुछ ही दूरी पर है, दुनिया में सबसे अधिक बारिश जहाँ होती है वह ‘चेरापुंजी’।

मान लीजिए कि जहाँ हम रहते हैं, उस जगह से यदि सावन राजा कभी रूठ जाता है और हमें उन काले घने बादलों की और बरसात की बड़ी बड़ी बूँदों की याद आ जाती है, तो हमें या तो मन ही मन में शिलाँग के उन नज़ारों को याद करना चाहिए या फिर सीधा शिलाँग पहुँच जाना चाहिए।

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