त्वचा – रचना व कार्य भाग ६

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अब हम त्वचा के माध्यम से होनेवाले स्पर्शज्ञान के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

‘स्पर्श’ यह कितना सुंदर शब्द है ना! उसके द्वारा प्यार की अनुभूति भी उतनी ही सुंदर होती है। दो व्यक्तियों के बीच भाव-भावनाओं का, आदान-प्रदान का यह अतिउत्तम साधन है। ऐसा माना जाता है कि सभी प्राणियों में अनुभूति यह एक महत्त्वपूर्ण बात होती हैं। इसका अनन्यसाधारण महत्त्व है। स्पर्श प्यार का, स्पर्श प्रेम का, क्रोध, तिरस्कार, वासना, लोभ इत्यादि सभी भावनाओं को व्यक्त करनेवाला होता है स्पर्श। आनंद के समय हमारे आनंद को दो गुना करनेवाला स्पर्श, कौतुक करने के लिये थपथपायी गयी पीठ, दुःखों में, संकटों में, पीठ पर फेरा जानेवाला एक आश्वासक स्पर्श- मैं हू नॉं ! छोटे बच्चों का आलिंगन, दो प्रेमियों का आलिंगन- स्पर्श ही हैं। एक स्पर्श, सैकड़ों शब्दों का काम कर जाता है। कुछ कहना ही नहीं पड़ता। जन्म से लेकर मृत्यु तक हर कोई इन विविध प्रकार के स्पर्शों के लिये आतुर ही रहता है। गूंगे प्राणियों को भी स्पर्श में रहने वाले फरक का पता चलता है। अंधा व्यक्ति भी अपने स्पर्शज्ञान को बढ़ाकर दृष्टि की कमी की क्षतिपूर्ति करता है। ब्रेल लिपी स्पर्श पर ही आधारित है। ऐसा है यह हमारे संपूर्ण जीवन में व्याप्त स्पर्श ! हम सभी को जीवन में जिस स्पर्श की आतुरता होनी चाहिए, आशा होनी चाहिए, वह है हमारे जीवन में परमेश्वरीय करुणा का स्पर्श कब होगा, कैसे होगा !

यह स्पर्शज्ञान हमें कैसे होता है किस-किस प्रकार से होता है , अब हम इसकी जानकारी प्राप्त करेंगे। त्वचा के माध्यम से हमें मुख्यतः चार प्रकार का स्पर्शज्ञान होता है-

१) टॅक्टाइल सेन्स (उपरोक्त वर्णित सभी प्रकार के स्पर्श)
२) पोझिसनल सेन्स – हमारे शरीर की / हाथ-पैरों की स्थिति बतानेवाला स्पर्श।
३) थर्मोरिसेप्टर – पदार्थों के तापमान की जानकारी प्रदान करनेवाला।
४) पेन सेन्सेशन – सभी प्रकार के दुखदायक , क्लेशदायक स्पर्श।

इन सभी स्पर्शों का ज्ञान हमें त्वचा के सेन्सरी रिसेप्टर्स अथवा संवेदनशीली पेशियों के कारण होता है। हमारी त्वचा में छः विविध प्रकार की संवेदनशील पेशियां होती है जो विविध प्रकार की संवेदनाओं को ग्रहण करती है।

१) टॅक्टाइल सेन्स अथवा स्पर्श – मृदु स्पर्श से लेकर अधिक तीव्र होते जानेवाले विभिन्न स्पर्शों का ज्ञान हमें त्वचा के माध्यम से होता है। उपरोक्त वर्णित विभिन्न स्पर्शों के अलावा चार उप प्रकार के स्पर्श हम जान सकते हैं। वे हैं- गुदगुदी, खुजली, त्वचा पर दबाव और लहरों का ज्ञान (व्हायब्रेशन सेन्स)।

२) पोझिशनल सेन्स अथवा स्पर्श – हमारे शरीर के चल व अचल स्थिति का ज्ञान अर्थात पोझिशनल सेन्स। हमारा पूरा शरीर अथवा कोई हाथ या पैर, ऑखें, गर्दन स्थिर है या उनमें कुछ हलचल हो रही है, इसका ज्ञान त्वचा की संवेदनशील पेशियां से होता है। हलचल की गति का भी ज्ञान होता है।

उपरोक्त दोनों प्रकार के स्पर्शज्ञान, उनकी संवेदनाएं त्वचा के नीचे स्थित संवेदनशील तंतुओं द्वारा सर्वप्रमि हमारे मज्जारज्जू में तथा वहॉं से मस्तिष्क के मुख्य भाग सेरेब्रल कारटेक्स में पहुँचते हैं, यदि इनका रेखाचित्र मस्तिष्क में बनाये तो क्या दिखायी देता है। सेरेब्रल कॉरटेक्स के उपरी हिस्से में शरीर के निचले हिस्सों का ज्ञान पहुँचता है और कॉरटेक्स के निचले हिस्से में सिर व चेहरे का स्पर्शज्ञान पहुँचता है। अर्थात हम यदि इसे चित्रित करें तो हमारे शरीर का सिर नीचे और पैर उपर दिखायी देंगे।

यदि किन्हीं भी कारणों से बीमारी से, चोट से, ऑपरेशन के कारण यदि मस्तिष्क का यह भाग निष्क्रिय हो जाऐं तो भला क्या होगा ?

अ) किसी भी प्रकार का स्पर्श हमारे शरीर पर कहॉं हुआ है, हम यह नहीं समझ सकेंगे। उदा. ऐसा व्यक्ति यह तो बता सकेगा कि स्पर्श दांये हाथ को हुआ है या बांये हाथ को, परंतु वो यह नहीं बता सकेगा कि स्पर्श निश्चित रुप मे कहॉं पर हुआ है।
ब) अपने शरीर पर पड़नेवारला दाब क्म है या ज्यादा इसका ज्ञान नहीं होता है।
क) वस्तुओं के वजन का अंदाज पाना कठिन होता है।
उ) वस्तुओं के विविध प्रकार नहीं पहचान पायेंगे। इसे ऍस्ट्रोगनोसिस कहते हैं।
इ) वस्तु कैसी है यानी मुलायम या कठोर, चिकनी या खुरदरी यह नहीं समझ सकेंगे।

सेरेब्रल कॉरटेक्स के निष्क्रिय हो जाने पर भी स्पर्शज्ञान पूरी तरह निष्क्रिय नहीं होता। इसका कारण यह है कि मस्तिष्क को थॅलमस एवं वेसल गँगलिया नाम के हिस्से इन संवेदनाओं को ग्रहण करके उनकों कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते हैं।

स्पर्शज्ञान के पहले दो प्रकारों के बारे में हमने जान लिया। अगले लेख में शेष दो प्रकारों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। (क्रमशः)

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