अस्थिसंस्था भाग -१२

jointअ‍ॅपेडीक्युलर पिंजरे के बारे में जानकारी प्राप्त करते समय हमने थोड़ासा विषयान्तर किया है। हमारे हाथों और पैरों में अनेकों जोड़ हैं। इनके बारे में अच्छी तरह समझने के लिये यह विषयांतर किया गया है।

लगभग दो-तीन महिना पहले मेरा एक मित्र सबेरे-सबेरे मेरे घर आया। उसके चेहरे पर गुस्से के भाव थे। गर्दन हिलाते-हिलाते मन ही मन कुछ संवाद चल रहा था। मैंने पूछा, ‘‘अरे दोस्त, इतनी सुबह्र-सुबह यह कैसा विचारमंथन चल रहा है?’’ इसके बाद का हमारा संवाद इस प्रकार था –

मित्र – ‘‘अरे, अपना सचिन रे, कुछ  ठिक नहीं होत रहा है देखो।’’

मैं – ‘‘कौन सचिन?’’ (मेरा भोला प्रश्‍न)

मित्र – (एकदम जोश में आकर) ‘‘अरे, सचिन कौन, यह क्या पूछ रहे हों? अपना सचिन तेंडूलकर, इस संसार में देखो न्याय नाम की कोई चीज ही नहीं हैं।’’

मैं – अरे, सचिन पर क्या अन्याय हो गया बाबा?’’

(फिर से मेरा भोला प्रश्‍न। सचिन को संघ से बाहर निकालने की खबर सुनी नहीं थी।)

मित्र – ‘‘अरे, ऐसा क्या कर रहे हो? सचिन को ‘टेनिस एल्बो’ हो गया है, यह तो तुम्हें पता है ना? मैं उसी के बारे में बात कर रहा हूं।’’

मैं – ‘‘हो ग्या बोलो। ठीक होने के बाद फिर से सचिन खेलने लगा है ना?’’

मित्र – ‘‘अब तो वो खेलेगा ही रे, परन्तु मेरी समझ में यह नहीं आता की, बचपन में गलियों में टेनिस बॉल से क्रिकेट सचिन ने खेला परन्तु पिछले पच्चीस वर्षों के बाद यह टेनिस एल्बो का विवाद कैसे उठा? इस लिए मैं कब से परेशान  हूँ । संसार से न्याय गायब ही हो गया है!’’

जाने दो, इस तरह के संवाद को विनोद समझकर छोड़ा जा सकता है। परन्तु ऐसे प्रश्‍न को मन में संजोये रखनेवाले बहुत लोग हैं। कुछ लोग तो ऐसे भी मिले कि जिनका प्रश्‍न था – सचिन क्रिकेट खेलता है, तो उसे क्रिकेट एल्बो होना चाहिये, टेनिस एल्बो कैसे हो गया? इससे एक बात ध्यान में आती हैं कि इसका कारण है विषय की अधूरीजानकारी। इस विषय की जानकारी प्राप्त करने के लिये ही अब हम अपने शरीर के जोड़ों का परिचय करके लेनेवाले हैं।

हमारा अस्थिपिंजरा, हमारे शरीर को एक आकार व आकृती देता है। इसमें विभिन्न अस्थियां एक-दूसरे के सान्निध्य में रहती है। जहाँ पर दो अथवा करीब अती है तो वहाँ पर उनका जोड़ अथवा सांधा तैयार होता है। इस सांधे का क्या प्रयोजन हैं? वे हमारे लिये किस प्रकार उपयोगी साबित होते हैं, अब हम यह देखेंगे।

1)शरीर की बाढ़ :

शरीर की वृद्धि की अवस्था में हमारी हड्डियां बढ़ती रहती है। ऐसे समय में यह दो हड्डियां एक-दूसरे के साथ मजबूती से चिपक कर रह जाये तो उनकी वृद्धि के लिये जगह ही नहीं बचेगी। ऐसा न होने देने के लिये दो हड्डियों के बीच में थोड़ा रिक्त स्थान, जोड़ों के कारण बन जाता है तथा वृद्धिगत होने वाली हड्डियाँ बिना किसी अवरोध के बढ़ सकती हैं।

2)शरीर पर पड़ने वाले विभिन्न बलों का उचित वहन :

हमने देखा कि शरीर पर गुरुत्वीय बल, शरीर का वजन, दाब, खिंचाव इत्यादि बल कार्य करते हैं। शरीर का भार उठाना, अन्य बलों का उचित ढ़ंग से प्रतिकार करना, इन जोड़ों के कारण संभव होता है।

3)चलना- फिरना (हलचल करना) :

जोड़ों के फलस्वरूप हम आसानी से चल-फिर सकते हैं। यह हम सब जानते ही हैं। परन्तु जोड़ सिर्फ हिलना-डुलना ही नहीं करते बल्कि शरीर को स्थिरता प्रदान करते हैं। ताप्तर्य यह है कि हमारे शरीर की किसी भी क्रिया में स्थिरता व गतिशीलता दोनो रहती है। इन दोनों का योग्य समन्वय करने का काम ये जोड़ करते हैं (संधिनी शक्ती)। हम इसे समझने के लिये एक आसान उदाहरण लेते हैं। जब हम चलते हैं तो क्या होता है? जब हम चलते हैं तो एक पैर गतिशील अथवा चल होता है तभी दूसरा पैर स्थिर अथवा अचल होता है। यदि हमें दाहिना पैर उठाकर आगे रखन अहो तो बांये पैर को जमीन में स्थिर रखना ही पड़ता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हमारा संतुलन बिगड़ जाता है । ‘वाम पादेन अचलम् । दक्षिणेन् गतिकारकम्।’ भक्ति और सेवा में संतुलन। श्रद्धा और सबूरी में संतुलन। यह समीकरण सभी क्रियाओं पर लागू होता है। थोड़ा विचार करने पर हमारे ध्यान में आयेगा कि जोड़ों की प्रत्येक क्रिया में जोड़ों में सहभागी हड्डियों में से एक स्थिर तथा दूसरी गतिशील रहती है। हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार को जोड़ होते हैं। उन्हें वर्गीकृत करने के लिये अनेक तरीकें हैं। इनमें से सबसे आसान तरीके का हम अध्ययन करेंगे। जोड़ों को वैद्यकीय भाषा में (Arthrosis) आथ्रोस कहते हैं। इस आधार पर जोड़ों के दो प्रकार तथा उनमें से दो उप-प्रकार किये गये हैं जो इस प्रकार हैं –

1)सिन्आरथोस (Synarthrosis) इसके दो उप-प्रकार हैं –
अ)तंतुमय जोड अथवा (Fibre Joints)
ब)कुर्चा से निर्मित जोड़ (Cartilaginous Joints)

2) आरथ्रेसिस :

इसका दूसरा नाम है सायनोव्हियल जोड़। इसमें दो हड्डियां सायनोव्हियल पोकली में जुड़ती हैं। इसी लिये इसे रिक्त स्थलयुक्त जोड़ भी कहा जाता हैं। इस जोड़ के बारे में सविस्तर जानकारी हम अगले लेख में प्राप्त करेंगे।

(क्रमश:)

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