अस्थिसंस्था भाग – २७

पेलविस
कमर की दोनो हड्डियाँ और सॅक्रम इनके मिलने से जो जोड़ बनता है, उसे पेलविस अथवा पेलविक गर्डल कहते हैं। कमर और जाँघों को जोड़ने वाला यह भाग है। शरीररचनाशास्त्र के अनुसार जाँघों की  फिमोरल  अस्थि के सिरे से लेकर सॅक्रल कशेरुकाओं के बीच का भाग है पेलविस। जोड़ का यह भाग बड़ा और भारी होता है। क्योंकि शरीर का वजन व अन्य तनावों व इन भागों के स्नायुओंको के कार्य इत्यादि का सामना इस भाग को करना पड़ता है। स्त्री और पुरुष में पेलविस की रचना में काफी फर्क होता है। सिर्फ पेलविस की रचना को देखकर यह निश्‍चित रूप से कहा जा सकता है कि यह स्त्री का है या पुरुष का है। इस भाग का अध्ययन प्रसूतिशास्त्र, अपराध अन्वेषण शास्त्र, forensic शास्त्र एवं मानववंश शास्त्र इत्यादि के तिथे अत्यंत उपयुक्त है।

pelvis- पेलविस

सुविधा के लिये इसके दो भाग किये जाते हैं। ऊपरी भाग अर्थात बड़ा पेलविस व नीचे का भाग यानी छोटा पेलविस। बड़े पेलविस व छोटे पेलविक? में से छोटे पेलविस का हमें सविस्तर अध्ययन करना है।

बड़ा पेलविस :
सॅक्रम के ऊपर का व इनॉमिनेट आयलियाक अस्थि से फिरा हुआ यह भाग पेट की पोकली (abdominal cavity) का भाग होता है। अत: बहुधा इसे फिरा यानी झूठा पेलविस भी कहा जाता है।

छोटा पेलविस :
अस्थिसंस्था के दृष्टिकोण से यह बडे पेलविस से संलग्न भाग है। परन्तु इसके चारों ओर हड्डियों की बनी दीवारें होती हैं और ऊपरी मुख यानी पेलविक इनलेट व निचला मुख यानी आऊटलेट होता है। प्रसूतिशास्त्र की दृष्टि से पेलविस का यह भाग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके लिये इस भाग की मेजरमेंट्स महत्त्वपूर्ण होती हैं। अब हम इसकी जानकारी प्राप्त करेंगे।

१)पेलविस का ऊपरी मुख अथवा इनलेट(Inlet):
इसका आकार वर्तुलाकार अथवा लंबवर्तुलाकार होता है। सॅक्रम के शुरुआती भाग पर उभार होता है। इसे सॅक्रल प्रमोंटरी कहते हैं। इसके स्तर पर यह इनलेट शुरु होता है। प्रसूतिशास्त्र और मानववंशशास्त्र दोनों की दृष्टि में इसकी मेजरमेंट्स महत्त्वपूर्ण होती है। यह मेजरमेंट्स इस तरह हैं-
अ)सामने से पीछे की ओर जाने वाला व्यास (Anteroposterior diameter) :
सॅक्रल प्रमोंटरी का मध्यबिंदु व प्युबिक सिमफाइसिस का मध्यबिंदुओं के बीच यह व्यास मापा जाता है। पुरुषों में इसकी लम्बाई १००  मिमी. तथा स्त्रियों में ११२ मिमी. होती है।

ब)आडा व्यास (Transverse diameter) :
इसके बिंदु निश्‍चित नहीं होते। इस में एक-दूसरे से सर्वाधिक दूरी पर स्थित बिन्दुओं के बीच की दूरी मापी जाती है। पुरुषों में यह अंतर १२५ मिमी. तथा स्त्रियों में  १३१  मिमी. होती हैं।

क)टेढ़ा व्यास (Oblique diameter):
एक तरफ आयलियो-प्युबिक उभार से लेकर विरुद्ध दिशा के सॅक्रोआयलियाक जोड़ तक का अंतर होता है। यह अंतर भी स्त्रियों में ज्यादा यानी १२५ मिमी. तथा पुरुषों में १२० मिमी. होता है।

२)छोटे पेलविस की खाली जगह (Cavity):
इसका सामने का व निचला भाग प्युबिक अस्थि से बनता हैं। इस में प्युबिक अस्थि, उसके दोनों दंड़ों एवं सिमफाइसिस सभी का समावेश होता है। पीछे की ओर  सक्रम व कॉक्सीक्स होती हैं। दोनों तरफ आयलियम व इश्‍चियम की अन्दरूनी बाजू होती हैं। इस प्रकार बनी हुयी यह पेलविक कॅविटी अथवा गुहा है। इसके सामने की बाजू में मूत्राशय होता है। पीछे की ओर रेक्टम अर्थात गुदभाग का अंतिम सीधा सिरा होता है। स्त्रियों में इन दोनों के बीच में गर्भाशय होता है। गर्भावस्था में इसी भाग से होकर गर्भ का प्रवास होता है। उस में भी गर्भ के सिर का प्रवास महत्त्वपूर्ण होता है।

अ)अ‍ॅँटिरोपोस्टीरिअर व्यास :
सक्रम के तीसरी कशेरुका की मध्य बिंदु से लेकर सिमफाइसिस के पिछली बाजू की मध्य बिंदु तक का अंतर पुरुषों में १०५   मिमी तथा स्त्रियों में १३०  मिमी होता है।

ब)ट्रान्सवर्स व्यास :
दोनों बाजुओं की दीवारों में बीच का ज्यादा से ज्यादा अंतर पुरुषों में १२० मिमी व स्त्रियों में १२५ मिमी होता है।

क)ऑबलिक व्यास:
सॅक्रोआयलियाक जोड़ का सबसे निचली बिंदु से लेकर ऑबच्युरेटर मेंब्रेन की मध्यबिंदु तक का (विरुद्ध दिशा में) अंतर पुरुषों में  ११० मिमी व स्त्रियों में १३१  मिमी होता है।

३)पेलविस का निचला मुख अथवा आऊट लेट(Outlet):
इसकी कोई सीमा रेखा तय नहीं की जा सकती। पेलविस का मुख ज्यादा लचीता होता है। प्रसूती के दौरान बच्चे के सिर का योनिमार्ग में प्रवास इस लचीलेपन से आसान हो जाता है। सिर पर कम दबाव होता है। इसके पिछले भाग में सॅक्रम का निचला भाग व कॉक्सीक्स आते है। दोनों तरफ इश्‍चियल अस्थि के उभार अथवा ट्युबरॉसिटिज होते हैं। सामने की बाजू प्युबिक सिमफाइसिस के नीचे रिक्त ही रहती है। इसके सामने की परिघि पर दोनों ओर की इश्‍चियोपुबिक रेमायनी से बनी प्युबिक कमान होती है। पीछे कॉक्सीक्स व इश्‍चियम के उभारो के बीच में सायारिक नॉच नाम की कमान होती है।

अ) अँटिरोपोस्टीरिअर व्यास :
प्युबिक सिमफाइसिस के निचले किनारे के मध्यबिंदू से कॉक्सीक्स के सिरे तक का अंतर पुरुषों में ८० मिमी व स्त्रियों में १२५ मिमी होता है।

ब)ट्रान्सवर्स व्यास:
इॅश्‍चियल ट्युबरॉसिटिज के निचले किनारों का अंतर पुरुषों में ८५ मिमी तथा स्त्रियों में  ११८ मिमी होता है।

क)ऑबलिक व्यास :
एक ओर के सॅक्रोट्युबरस लिंगामेंटस् का मध्यबिंदु व दूसरी ओर के इश्‍चियोप्युबिक जोड़ का अंतर पुरुषों में १००  मिमी तथा स्रियों में ११८ मिमी होता है।

इसके अलावा पेलविस का दो महत्त्वपूर्ण स्तर इस प्रकार है –
-पेलविस का सबसे अधिक मेजरमेंट्स वाला स्तर – यह स्तर प्युबिक सिमफाइसिस के ऊपरी ओर से लेकर पीछे की ओर दूसरी-तीसरी सॅक्रल कशेरुका के मध्यभाग तक जाता है।

-पेलविस का सबसे कम मेजरमेंट्स वाला स्तर – यह साधारणत: पेलविस के मध्य में आता है तथा इसके दोनों ओर इश्‍चिअल स्पाइन्स होते हैं। प्रसूति के दौरान आने वाली कठिनाइयों में से अधिकतर कठिनाइयाँ इस भाग से ही जुडी होती हैं। (बच्चे का सिर अटकना, सिर पर ज्यादा दबाव पड़ना इत्यादि।)

अब तक हमने जो भी लिखित मेजरमेंट्स की जानकारी प्राप्त की, जिनका महत्व सिर्फ प्रसूतीशास्त्र तक ही सीमित है। इन मेजरमेंट्स का विचार करते समय, जीवित व्यक्ति के अंदरूनी अवयवों को छोड़कर मेजरमेंट्स ली जाती हैं क्योंकि जीवित व्यक्ति के पेलविस का एक्स-रे लेकर उस पर ये मेजरमेंट्स ली जाती हैं। वर्तमान में सोनोग्राफी  की सहायता से भी हम ये माप सकते हैं। उपरोक्त दी गयी मेजरमेंट्स अनेकों अस्थिपंजरों का अध्ययन करके उससे निकाली गयी स्टॅटिस्टिकल अ‍ॅक्रेजेस है। माँ-बाप व प्रसूतितज्ञ की दृष्टिकोण से यह एक मार्गदर्शक फलक है।

प्रत्येक माँ के लिये उसके पेलविस की मेजरमेंट्स महत्त्वपूर्ण होती हैं। इसका मेलजोल गर्भस्थ शिशु के सिर की माप से करना पड़ता है। इन दोनों मापों के आधार पर प्रसूतीतज्ञ यह तय कर सकते हैं कि प्रसूती के दौरान बच्चे के सिर का प्रवास सरविक्स व योनी मार्ग से सहजता से होगा या नहीं। इसके आधार पर ही डॉक्टर यह तय कर सकते हैं कि प्रसूती नार्मल यानी योनिमार्ग से अथवा सिझेरिअन करवाना है। सोनोग्राफी किरणों के द्वारा जब माँ के पेलविस की मेजरमेंट्स ली जाती हैं, तब उसे पेल्विमेंट्री (pelvimetry) कहते हैं तथा जब गर्भस्थ शिशु के सिर की माप ली जाती है तो उसे सिफॅलोमेट्री (cephalometry) कहते हैं।

पेल्विमेट्री की सहायता से मानवी पेलविस के चार प्रकार सिये जाते हैं –

१)मेझॅटिपेलिक :-
इस में आडा व्यास सर्वाधिक होता है। तथा अँटिरोपोस्टीरिअर व्यास मध्यम होता है। ज्यादातर स्त्रियों में इस प्रकार का पेलविस ओता है।

२)डॉलिकोपेलिक :-
इसका अँटिरोपोस्टिरिअर व्यास सर्वाधिक तथा आड़ा व्यास सबसे कम होता है। ज्यादा करके लड़को व पुरुषों में इस प्रकार के पेलविस पाये जाते हैं। परन्तु निग्रो वंशीय स्त्रियों में इसका प्रमाण लगभग ४०% होता है।

३)प्लॅटिपेलिक :-
इस में अँटिरोपोस्टिरिअर व्यास सबसे कम तथा आड़ा अंतर सबसे ज्यादा होता है। यह पेलविस स्त्रियों में काफी कम प्रमाण में (११/२ से २१/२% तक) पाया जाता है।

४)ब्रॅक्रिपेलिक :-
इस में दोनों व्यास मध्यम माप के होते हैं। ङ्गलस्वरूप इसका आकार त्रिकोणी बनता है। लगभग ३०  से ३५ % स्त्रियों में यह पेलविस पाया जाता है। इस प्रकार के पेलविस वाली महिलाओं में प्रसूति के दौरान ज्यादा से ज्यादा अड़चनें होने की संभावना होती है।

प्रसूतिशास्त्र की दृष्टि से पेलविस की अँटिरोपोस्टिरिअर व उनका महत्त्व हमने जान लिया। अब हम स्त्रियों और पुरुषों के पेलविस में रहनेवाली भिन्नता का अध्ययन करेंगे।

(क्रमश:)

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