समय की करवट (भाग ७३) – क्रायसिस् आख़िरकार मिट तो गया, लेकिन….!

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-३३

अब यह ‘क्युबन मिसाईल्स क्रायसिस’ ज्वलनबिंदु (‘फ्लॅशपॉईंट’) तक आकर पहुँच चुका था। पूरी दुनिया को अपने साथ घसीटकर ले जानेवाले इस क्रायसिस से ग़ुस्सा होकर, दुनियाभर के अमरिकी दूतावासों के बाहर ‘अब पुनः युद्ध नहीं चाहिए’ इस आशय की संतप्त प्रतिक्रियाएँ ज़ाहिर करते हुए स्थानीय लोग प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन खुद अमरिकी जनता तो केनेडी के निर्णय के बढ़ता समर्थन दर्शा रही थी।

अमरीका ने, ऐसे सोव्हिएत क्षेपणास्त्र क्युबा में गुप्त रूप में तैनात किये हैं, ऐसा घोषित कर सोव्हिएत को अच्छाख़ासा पेंच में पकड़ा था। क्युबा की सागरी नाकाबंदी करने के साथ ही अमरिकी हवाईदल और सेना भी किसी भी संभाव्य प्रसंग के लिए सुसज्जित रखी गयी थी। पूरी दुनिया और अमरीका भी साँस थामकर अब सोव्हिएत प्रतिसाद (रिस्पाँज़) की प्रतीक्षा कर रहे थे। केनेडी यह हरगिज़ नहीं चाहते थे कि अगले चुनावों में ‘क्युबा’ यह मुद्दा अपने खिलाफ़ अपने विरोधकों के काम आयें।

ये क्षेपणास्त्र क्युबा में से स्थलांतरित करें, ऐसी अंतिम चेतावनी अमरीका ने सोव्हिएत को दी तो सही, लेकिन अब तक के इतिहास पर ग़ौर करते हुए, ऐसी चेतावनियों को सोव्हिएत कितना महत्त्व देंगे इस बारे में खुद अमरीका के मन में ही आशंका थी। उल्टा अब संघर्ष अटल है, इस बात का यक़ीन अमरिकी सरकार और सेना को हो चुका था।

….और यदि संघर्ष हो चुका होता, तो दोनों पक्षों के आण्विक शस्त्रबल को देखते हुए दोनों पक्षों का, अर्थात् पूरी दुुनिया का सर्वनाश अटल था। लेकिन दुनिया के सौभाग्य से दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस बात को भली-भाँति जान रहे होने के कारण दोनों ने भी संयम प्रदर्शित किया और वह घड़ी नहीं आयी।

लेकिन तब तक यह क्रायसिस धीरे धीरे प्रत्यक्ष युद्ध की दिशा में चल ही रहा था। आग में तेल डालने का काम दोनों पक्ष कर रहे थे।

२४ अक्तूबर को क्युबा की दिशा में जा रहे सोव्हिएत जहाजों को रोककर अमरिकी नौदल ने उनका मुआयना किया।

उसपर खौलकर ख्रुश्‍चेव्ह ने केनेडी को एक लंबाचौड़ा तीख़ा ज़ाहिर पत्र भेजा –

‘क्युबा की चहूँ ओर के आंतर्राष्ट्रीय सागरी एवं हवाई मार्ग की घेराबंदी कर आपने हमें मानों अंतिम चेतावनी ही दी है कि ‘यदि तुम हमारी आज्ञा का पालन नहीं करोगे, तो अमरीका तो ज़बरदस्ती करनी पड़ेगी’। मि. प्रेसिडेन्ट, आप क्या बोल रहे हैं, क्या इसका भान आपको है? आप यदि खुद को हमारे स्थान पर रखकर देखें, तो क्या इस प्रकार अन्य किसी ने दी हुई चेतावनी को क्या आप मान लोगे? मुझे यक़ीन है कि आप इस प्रकार का कोई भी दबाव मान्य नहीं करोगे। इसी कारण हमें भी आपकी यह अंतिम चेतावनी मंज़ूर नहीं है।

क्युबा के चारों ओर के आंतर्राष्ट्रीय सागरी एवं हवाई मार्ग की घेराबंदी करने की जो चरमसीमा की कृति आपने इकतरफ़ा की है, वह यानी दुनिया को तेज़ी से आण्विक युद्ध की खाई में धकेल देनेवाली ग़ैरज़िम्मेदाराना आक्रमणकारी कृति है, ऐसा सोव्हिएत सरकार का मत है। यह कृति करने का अधिकार आपको किसने दिया? क्युबा कहो, या अन्य कोई देश, उनके साथ होनेवाले हमारे राजनैतिक संबंध यह केवल और केवल हम दो राष्ट्रों की बीच का द्विपक्षीय मामला है ऐसा हम मानते हैं….और यह द्विपक्षीय मामला किसी अन्य तीसरे राष्ट्र के हिसाब से चलें, यह हम कदापि नहीं मान्य करेंगे।

अमरिकी अध्यक्ष ने ऐसी कृति केवल क्युबन जनता के प्रति होनेवाली नफ़रत के चलते ही नहीं, बल्कि अमरिकी चुनावों पर नज़र रखकर ही की है, यह बात ज़ाहिर है। लेकिन ऐसे ग़ैरज़िम्मेदाराना बर्ताव से आप आपके विरोधकों के हाथों में आपके खिलाफ़ एक और मुद्दा दे रहे हैं, यह ध्यान में लीजिए।

मूलतः अमरीका को इस तरह निवेदन प्रसृत करने का अधिकार ही नहीं है। क्योंकि इस दुनिया में आंतर्राष्ट्रीय क़ानून अभी तक अस्तित्व में है और इस आंतर्राष्ट्रीय क़ानून ने आंतर्राष्ट्रीय सागरी प्रदेश के मामले में भी दुनिया के सभी देशों के अधिकार मान्य किये हैं। अतः (क्युबा के इर्दगिर्द सागरी घेराबंदी करने की) अमरीका की यह कृति महज़ समुद्री तस्करी का ही एक प्रकार है और हम अमरीका की यह समुद्री तस्करी को हरगिज़ सहन नहीं करेंगे। यदि अमरीका ने इस मामले में ज़बरदस्ती की, तो आगे जो कुछ होगा उसकी पूरी ज़िम्मेदारी अमरीका की होगी। क्योंकि फिर हम भी अपनी पद्धति से उसका मुँहतोड़ जवाब देंगे ही….उसके लिए किसी भी हद तक जाने की हम पूरी तरह तैयार हैं।’

इस तीखे पत्र पर व्हाईट हाऊस में विचारविमर्श शुरू हुआ।

क्युबा में सोव्हिएत मिसाईल्स होने का सबूत संयुक्त राष्ट्रसंघ के सामने प्रस्तुत करते हुए अमरिकी प्रतिनिधि

२५ तारीख को संयुक्त राष्ट्रसंघ में इस क्रायसिस पर प्राथमिकता से चर्चा की गयी। क्युबा में सोव्हिएत मिसाईल्स हैं यह तुम्हारा दावा सिद्ध कर दिखायें, ऐसी चुनौती सोव्हिएत प्रतिनिधी द्वारा दी जाने के बाद अमरिकी प्रतिनिधि ने, क्युबा में सोव्हिएत मिसाईल्स होने का सबूत (टोह विमान द्वीरी खींची गयीं तस्वीरें) संयुक्त राष्ट्रसंघ की बैठक के सामने प्रस्तुत किया।

दुनिया के सामने ये ज़ाहिर गतिविधियाँ चल रहीं थीं, तभी परदे के पीछे की गतिविधियाँ भी तेज़ हुईं थीं; जिनमें उच्चस्तर पर काँटेक्ट्स होनेवाले कुछ पत्रकार, उनके अमरिकी और सोव्हिएत गुप्तचर मित्र आदि कई लोग समाविष्ट थे।

२६ तारीख़ को ख्रुश्‍चेव्ह ने केनेडी को समझौते का विकल्प देनेवाला एक ‘गोपनीय’ पत्र भेजा, जिसमें – ‘अमरीका यदि क्युबा पर आक्रमण न करने की गारंटी देती है, तो सोव्हिएत ‘उन’ क्षेपणास्त्रों के पुरज़े खुले कर उन्हें पुनः रशिया ले जायेंगे’ ऐसा कहा था।

इस पत्र पर व्हाईटहाऊस में विचारविमर्श शुरू हुआ ही था कि तभी दूसरे ही दिन ख्रुश्‍चेव्ह ने दूसरा पत्र केनेडी को भेजा, जिसमें – ‘तुर्कस्तान और इटली में स्थित अपने क्षेपणास्त्र यदि अमरीका हटा देती है, तो हम क्युबास्थित सोव्हिएत मिसाईल्स हटा देंगे’ ऐसा कहा था।

लेकिन २७ तारीख को यह क्रायसिस और भी भड़क गया। क्युबा पर नज़र रखनेवाला एक ‘यू-२’ अमरिकी विमान सोव्हिएत मिसाईल्स ने गिरा दिया। अब जैसा की केनेडी ने पहले ही घोषित किया था, क्युबा तथा सोव्हिएत को खिलाफ़ युद्ध घोषित करने का मशवरा केनेडी के सलाहगारों ने उन्हें दिया। लेकिन मौ़के की नज़ाकत को जानकर केनेडी ने उस मशवरे को नहीं माना, बल्कि परदे के पीछे की गतिविधियाँ और तेज़ कर दीं। ख्रुश्‍चेव्ह के दूसरे पत्र में लिखी शर्त को अमरीका ज़ाहिर रूप में नहीं मानेगी, ऐसा सोव्हिएत को बताकर, पहले पत्र में लिखित ‘क्युबा पर हमला न करने की’ शर्त ज़ाहिर रूप में मान ली।

ख्रुश्‍चेव्ह भी इन पेचींदा हालातों से बाहर निकलने का मौक़ा ही देख रहा था। इसलिए उसने अमरीका की यह गारंटी भी क़बूल कर, २८ तारीख़ को मॉस्को रेडिओ पर से एक निवेदन प्रसृत किया, जिसमें – ‘क्युबा पर आक्रमण न करने की गारंटी अमरीका ने दी होने के कारण हम ये मिसाईल्स वहाँ से हटा रहे हैं’ ऐसा घोषित किया।

नवम्बर के पहले हफ़्ते तक क्युबा में से सोव्हिएत मिसाईल्स हटा देने की यह प्रक्रिया पूरी हुई।

इस तरह पूरी दुनिया को अणुयुद्ध की कगार पर लेकर जा रहा यह क्रायसिस आख़िरकार मिट तो गया, लेकिन….!

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