स्नायुसंस्था भाग – ०१

देहग्राम का हमारा प्रवास धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। मानवी देह की प्रथम कोशिका के निर्माण से हमने यह प्रवास शुरू किया। माँ के गर्भ में देह की निर्मिति एवं वृद्धि कैसे होती है, यह हमने देखा। बालक का जन्म देखा।

dehgram- देहग्रामआगे चलकर हमने इस संसार में जन्में मानव की देह के एक-एक भाग की जानकारी प्राप्त करना शुरु किया। हमनें अपनी पांचों ज्ञानेंद्रियों का अध्ययन किया। एकनाथ महाराज ने शरीर का वर्णन (स्थूल शरीर) नौ जगहों पर फटी हुयी धोती के रूप में करते हैं। इन नौ में से सात जगह ज्ञानेंद्रियों की हैं और शेष दो कर्मेन्द्रियों की है।

देखो उन परमात्मा का अकारण-कारुण्य कैसा है। ‘वो’ जब भी अवतार लेता है तब यही मनुष्यदेह धारण करता है। हमारे तरह की ही ‘धोती’ पहनकर आता है। परन्तु यहीं पर ‘वह’ एक अनोखी चतुराई करता है, जिसके कारण हम उसे जल्दी से पहचान नहीं पाते, हम भी मूर्खों की तरह फंस जाते हैं, वाद-विवाद करते रहते हैं।

परमात्मा, प्रभु, भगवान कैसा होता है, यह प्रश्‍न यदि पूछा जायें तो हम निरुत्तर हो जाते हैं। हम तुरंत उस प्रश्‍न का समर्पक उत्तर नहीं दे पाते। देव स्वयं कभी नहीं कहता की ‘वह’ देव है, मेरी पूजा करो, मेरे पैर पड़ो। जो उसे उसके किसी भी रुप में पहचान लेते हैं वे हीं अन्य लोगों को बताते रहते हैं कि ‘यह’ मेरा भगवान है। तात्पर्य यह है कि या तो मुझे स्वयं उसे पहचानना पड़ता है अथवा जिन्होंने उसे जाना है उनके कथन को ही प्रमाण मानना पड़ता है।

हम ज्ञानेंद्रियों व कर्मेन्द्रियों के बारे में अध्ययन कर रहे थे। हमारी ज्ञानेंद्रिय यानी हमारी ग्रहणशक्ति / निरीक्षण शक्ती के केन्द्र हैं। जानकारी का / ज्ञान का प्रथम ग्रहण/निरीक्षण ज्ञानेंद्रियों के बाहरी किनारों  पर यानी जिन्हें हम ज्ञानेंद्रिय कहते हैं, वहाँ होता है। यहाँ से निरिक्षण के ये संदेश चेतातंतुओं द्वारा मष्तिष्क में भेज़े जाते हैं। मष्तिष्क में प्रत्येक ज्ञानेंद्रिय के लिये एक-एक विभाग होता है। ये संदेश वहाँ पर पहुँचते हैं। उस विभाग की चेतापेशी व हैपाथॅलॅमस, पिट्युटरी व बेसल गॅँगलीया में इस जानकारी का विश्‍लेषक किया जाता है। जानकारी के आधार पर उचित निर्णय लिया जाता है। जो उचित जानकारी है उसे संचित किया जाता है(memory)। निर्णयानुसार उचित कार्य (action) करने का संदेश कार्यशक्ती के द्वारा पहुँचाया जाता है तथा कार्यशक्ती द्वारा उस कार्य को पूरा किया जाता है। इससे हमें तीन महत्त्वपूर्ण बातें समझ में आती हैं। हमारी निरीक्षण शक्ति यानी हमारी ज्ञानेंद्रिये, निर्णयशक्ती यानी चेतासंस्था, कार्यशक्ती यानी हमारी स्नायुसंस्था। हमारे शरीर के प्राय: सभी कार्य विविध स्नायुओं के माध्यम से ही होते हैं। आज से हम अपनी कार्यशक्ती की यानी स्नायु संस्था के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

ज्ञानेंद्रियों के बाद हमने अपनी अस्थिसंस्था की विस्तृत जानकारी प्राप्त की। उस समय हमने देखा था कि अस्थिसंस्था इस शरीर रुपी इमारत की आर.सी.सी. स्ट्रक्चर है। इन खड़ी-बेड़ी अस्थियों को एकत्रित बांधकर रखने का काम स्नायु करते हैं। हमारी ईंट-पत्थर की इमारत अचल होती है। परन्तु शरीररुपी इमारत चल अथवा गतिशील है। यह गतिशीलता स्नायुओं के कारण प्राप्त होती है।

हमारे शरीर में सभी जगह स्नायु होते हैं। शरीर के बाहरी स्नायु हमें ज्ञात होते हैं। बॉडी-बिल्डींग स्पर्धा में भाग लेने वाले स्पर्धक तो त्वचा के नीचे रहने वाले स्नायुओं को भी दिखाने का प्रयास करते हैं। बाहर से दिखायी पड़ने वाले स्नायुओं के अतिरिक्त शरीर के अंदरूनी हिस्सों में भी कुछ स्नायु होते हैं। अंदरुनी अवयवों में होते हैं। उदा.- हृदय, आँते इ. स्नायु अनेकों स्नायुपेशियों के इकट्ठा आने से बनते हैं। हमारे शरीर का ४० से ५० % वजन इन स्नायूओं के कारण होता है।

हमारे शरीर की स्नायु पेशियां ये विशेष अथवा स्पेशल पेशिंया हैं। हमारे स्नायुओं में आंकुचन व प्रसरण होता है। यह स्नायु पेशियों के कारण संभव होता है। जैसा की ऊपर बताया गया है स्नायु पेशी, विशेष पेशी होती हैं। अब इनकी विशेषता का अध्ययन करेंगें।

हमारी पेशी में पेशीप्राय अथवा cytoplasm होता है। हमारी पेशी में सिर्फ यही एक चीज होती तो सभी पेशियां पानी से भरे गुब्बारे की तरह गोल दिखायी देती। परन्तु ऐसा नहीं है। क्योंकि प्रत्येक पेशी में पेशी के अंदर जोड़ होता है। इसमें कुछ भाग ऐसे होते है कि जो अपना आकार बदल सकते हैं। आवश्यकतानुसार ये भाग छोटे अथवा लम्बे हो जाते हैं।

इसके फलस्वरुप पेशी का आकार आवश्यकतानुसार बदल सकता है। इसका उपयोग पेशियों को उनके विविध कार्यों में होता है। जैसे पेशी की गतियां, फरोसायटेसिस (रक्त के अथवा किसी भी टिश्यू के विषारी पदार्थ अथवा तकलीफदेह पदार्थ को कुछ पेशियां अपने आप में समाविष्ट कर लेती हैं और उन्हें नष्ट कर देती हैं, वह क्रिया)।

पेशी विभाजन अथवा मायटोसिस इत्यादि उपरोक्त वर्णन सभी पेशियों के लिए लागू है। इसके अलावा स्नायु पेशी में अलग भी कुछ होता है। यह क्या है इसकी जानकारी हम अगले लेख में देखेंगे ।

(क्रमश:)

Leave a Reply

Your email address will not be published.