अस्थिसंस्था भाग – ३७

सेसमाईड अस्थि

अपने देहग्राम की अस्थिसंस्था पर आधारित लेखमाला का यह आखिरी लेख है। इसके अंतर्गत आज हम कुछ पीछे छूट गये परन्तु महत्त्वपूर्ण चीजों के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले हैं। अपने अस्थिपंजर की अस्थियों व कुर्चों के बारे में हमने जानकारी प्राप्त की। अपने शरीर में इसके अतिरिक्त भी कुछ छोटी-छोटी हड्डियां होती हैं। मोहरी के दाने के आकारवाली वास्तव में कुछ मिलीमीटर साईज की यें अस्थियां होती हैं। अंग्रेजी में मोहरी को sesame seed कहते हैं और इसी लिये इन हड्डियों को सेसमाईड अस्थि कहा जाता है। परन्तु इनका आकार व आकारमान भिन्न-भिन्न हो सकता है। ज्यादातर सेसमॅाईड अस्थियां अपेन्डीक्युलर जोड़ में पायी जाती हैं। ये अस्थियां पूरीतरह ऑसिफाइड नहीं होती है।  आधे से ज्यादा हिस्सा ऑसिफाइड तथा शेष भाग तंतूमय अथवा कुर्चा का बना दिखायी देता है। ये अस्थियां स्नायुओं के टेडन्स अथवा जोड़ के पास के लिंगामेंटस् में होती हैं। साथ ही साथ वे जिस जोड़ से संबंधित होती हैं, उस-उस जोड़ की सायनोवियल पोकली में होती हैं।

seasmide- अस्थिसंस्था

इन अस्थियों में सबसे बड़ी हड्डी है घुटने की कटोरी अथवा पटेला। ये हड्डियां गर्भावस्था में ही बन जाती हैं। हाथ के पंजे और पैरों के पंजें में हड्डियां ज्यादा मात्रा में पायी जाती हैं।

अस्थिसंस्था की लेखमाला में एक चीज का उल्लेख बार-बार होता रहा है और वो है अस्थियों का ऑसिफिकेशन व उनके ऑसिफिकेशन केन्द्र। अस्थि के विकास के बारे में हमने देखा कि प्रारंभ में सभी हड्डियां कुर्चा की बनी होती है और कालांतर में ऑसिफिकेशन के बाद इनका रुपांतरण अस्थियों में होता हैं। ऑसिफिकेशन जी यह प्रक्रिया जहाँ से शुरु होती हैं उसे ऑसिफिकेशन कहा जाता है। एक निश्‍चित उम्र के बाद ये केन्द्र दिखायी देने लगते हैं। इस बात का उल्लेख हमने बारम्बार देखा हैं। आपके मन में यह प्रश्‍न उठ रहा होगा कि ये केन्द्र कहाँ दिखायी देते हैं। यदि हड्डियों का एक्स-रे निकाला जाय तो उसमें ये केन्द्र दिखायी देते हैं। इनका उपयोग व्यक्ति की आयु तय करने के लिए किया जाता है। उदाहरणार्थ रेडिअस में कलाई के पास एपिफिसिस में उम्र के पहले साल में ये केन्द्र दिखायी देते हैं वहीं कोहनी के पास सिरे पर चौथे से पांचवे वर्ष। यदि एक्स-रे में इन दोनों में से एक ही केन्द्र दिखायी दें तो समझना चाहिये कि बच्चे की उम्र चार साल से कम हैं। यदि दोनों केन्द्र दिखायी दे रहे हो तो यह निश्‍चित कहा जा सकता हैकि बच्चे की उम्र कम से कम पाँच वर्ष हैं।

इस जानकारी का दूसरा उपयोग हड्डी की वृद्धि का अंदाजा लगाने के लिये किया जाता है। लंब अस्थि की वृद्धि उसकी एपिफिसिस वाले सिरे की ओर होती है । जब तक लेब अस्थि का एपिफिसिस का केन्द्र दे रहे हो तो यह निश्‍चित कहा जा सकता है कि बच्चे की उम्र कम से कम पाँच वर्ष हैं।

इस जानकारी का दूसरा उपयोग हड्डी की वृद्धि का अंदाजा लगाने के लिये किया जाता हैं। लंब अस्थि की वृद्धि उसकी एपिफिसिस वाले सिरे की ओर होती हैं। जब तक लेब अस्थि का एपिफिसिस का केन्द्र मुख्य शॅफ्ट से अलग दिखायी देता है, तब तक यह निश्‍चित रुप से कहा जा सकता है कि उस सिते से लंब अस्थि की वृद्धि हो रही है। ये केन्द्र मुख्य शॅफ्ट के साथ जैसे ही एकरुप हो जाते है, वैसे ही हड्डी की वृद्धि रुक जाती है। इससे हम इन ऑसिफिकेशन केन्द्रों के महत्त्व को समझ सकते हैं।

आज तक हमने अस्थिसंस्था के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। इससे संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण बातों पर हमनें यहाँ विचार नहीं किया। उदा.- जोड़ों के रोग, हड्डियों के रोग, उनका उपचार (इत्यादि-इत्यादि की जानकारी हम उचित समय पर प्राप्त करेंगें। विविध संधिवात, उनके लक्षण, उपचार आदि का हम अध्ययन करने वाले हैं।) जोड़ों पर की जानेवाली विभिन्न शस्त्रक्रियायें, जिसमें कभी-कभी पूरा जोड़ बदला जाता है। इत्यादि सब के बारे में हम आगे जानकारी हासिल करनेवाले हैं।

अपने देहग्राम का प्रवास आगे भी शुरु ही रहेगा। देह की अन्य संस्थाओं की जानकारी भी हम इसी प्रकार प्राप्त करने वाले हैं। कभी-कभी किसी रचना की विस्तृत जानकारी पढ़कर हमारे मन में कुछ सवाल उठेंगें कि आखिर इस जानकारी का मुझे क्या उपयोग? किसी को वैद्यकीय परिक्षा थोड़े ही देनी हैं। परन्तु किसी भी प्रकार का ज्ञान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। कहीं पर भी, कभी भी उसका उपयोग होता ही है। यह मेरे शरीर के बारे में जानकारी हैं। जीवित, चलते, बोलते, धडकने वाला, भाग-दौड़ करने वाले शरीर को कष्ट, रोग, बीमारी न हो, इसके लिये हमें क्या क्या सावधानियां बरतनी चाहिये, इससे यह हम समक्ष सकेंगें। मुझे कोई भी बीमारी होने पर वो कहाँ पर हैं और किस तरह की है, यह हम अच्छी तरह समझ पायेंगे। इसीलिए यह सारा प्रयास किया जा रहा हैं।

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