इन्दोर भाग – १

Indore_1भगवान ने पहले इन्सान को बनाया या अन्न को? या फिर  इन दोनों को एकसाथ बनाया? जवाब जो भी हो, लेकिन अन्न यह हर एक मनुष्य के जीवन का एक अविभाज्य अंग है। इसीलिए मनुष्य के लिए आहार या आहार के लिए मनुष्य इस तरह की तात्त्विक चर्चाएँ भी कईं बार होते रहती हैं। लेकिन यह सब आज क्यों हम याद कर रहे हैं?

हमारे भारतदेश में कईं शहर हैं। उनमें से कुछ गाने के लिए महशूर हैं, कुछ खान-पान के लिए, तो कुछ अन्य किसी ख़ासियत के कारण। ऐसा ही एक शहर है, जो उस शहर की खाद्यसंस्कृति और वहाँ के कुछ खाद्यपदार्थों के लिए मशहूर है। मध्यप्रदेश का इन्दोर यह शहर। कुछ पाठक वहाँ की खाद्यसंस्कृति से परिचित भी होंगे।

खानपान की काफी चर्चा हो चुकी, अब जरा इस शहर के इतिहास की ओर झाँकते हैं।

मध्यप्रदेश का इन्दोर यह शहर सरस्वती नदी के किनारे पर बसा हुआ है। इन्दोर का नाम लेते ही याद आते हैं होळकरजी। ये दोनों नाम एक-दूसरे के साथ अटूटता से जुड़े हुए हैं।

इन्दोर शहर यह माळवा प्रान्त में बसा हुआ है। प्राचीन समय से इस विभाग को माळवा का पठार कहा जाता है। प्राचीन काल में, माळवा प्रान्त में इन्दोर के साथ साथ मध्यप्रदेश के अन्य शहर तथा मध्यप्रदेश के आसपास के राज्यों के भी कुछ शहरों का समावेश था। इस माळवा प्रान्त पर विभिन्न कालखण्डों में विभिन्न राजाओं का शासन था। मगध के सम्राट अजातशत्रु से लेकर फिर  मौर्यवंशीय, नागवंशीय, शक, हूण, सातवाहन, गुप्तवंशीय आदि राजाओं ने विभिन्न कालखण्डों में अपनी अपनी सत्ता यहाँ स्थापित की। लेकिन इस अवधि में उज्जैन यह शहर विकास में अग्रेसर  रहा। इन्दोर यह माळवा प्रान्त का एक हिस्सा होने के कारण बदलती हुकूमतों के साथ साथ यहाँ भी कुछ परिवर्तन जरूर हुए होंगे, लेकिन इसके बाद के कालखण्ड में एक शहर के रूप में इसका विकास हुआ।

एक शहर के रूप में इन्दोर की अपनी पहचान बनने से पहले उसपर जमीनदार और जागीरदार इनकी सत्ता थी। मुग़लों की हु़कूमत में इस प्रान्त पर जमीनदार और जागीरदारों का कब़्जा था और उन्हें एक राजा के समान अधिकार तथा प्रतिष्ठा प्राप्त थी। १८वी सदी में मुग़ल और मराठा इनके बीच की जंग ने काफी जोर पकड़ लिया था। उनकी इस जंग के कारण माळवा प्रान्त के नागरिकों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। इस जंग की परिस्थिति की वजह से परेशान हुए जमीनदार राव नन्दलाल चौधरी ने उसके अधिपत्य में रहनेवाले लोगों की सुरक्षा के उद्देश्य से उन्हें सरस्वती नामक नदी के किनारे पर स्थित ‘इन्द्रेश्‍वर’ के मन्दिर के आसपास ले आकर वहीं पर सभी की बसने की व्यवस्था की। निरन्तर चलते रहनेवाली जंग से अपने अधिपत्य में रहनेवाले लोगों को सुरक्षित रखने के लिए उसे यह स्थान महफूज़  लगा। उसने यहीं एक राजमहल भी बनवाया और उस स्थान को – गाँव को नाम दे दिया – ‘इन्द्रपुर’। समय के प्रवाह में इस ‘इन्द्रपुर’ का ‘इन्दोर’ हो गया। इन्दोर की जन्मकथा इस तरह से कही जाती है।

इन्द्रेश्‍वरके कारण इस शहर को पहले इन्द्रपुर और बाद में इन्दोर ये नाम प्राप्त हुए।

मुग़ल और मराठों के बीच के सत्तासंघर्ष में आख़िर १८ वी सदी के मध्य में माळवा प्रान्त की सत्ता पेशवाओं के पास आ गयी। पेशवाओं ने फिर  इस माळवा प्रान्त की सुबेदारी मल्हारराव होळकरजी के पास दे दी और यहीं से फिर  होळकर माळवा पर, साथ ही इन्दोर पर भी शासन करने लगे। यहीं से होळकरजी और इन्दोर ये नाम हमेशा के लिए आपस में जुड़ गएँ।

इतिहास कहता है कि मल्हारराव होळकरजी का व्यक्तित्व यह बहुत ही शूर, पराक्रमी, उदार, स्वामीभक्त एवं धार्मिक था। जब माळवा की, अर्थात् साथ साथ इन्दोर की भी सुबेदारी उनके पास थी, उस समय मुग़ल और मराठा इनके बीच कड़ा संघर्ष चल रहा था और इसी वजह से मल्हारराव बहुतांश समय विभिन्न मुहिमों में व्यस्त रहते थें। इसी कालावधि में मल्हाररावजी के मार्गदर्शन में एक व्यक्तित्व उभर रहा था, जिनका नाम आज भी इतिहास बड़े सम्मान के साथ लेता है – अहिल्याबाई होळकरजी। बहुतांश समय मुहिमों में व्यस्त रहने के कारण मल्हाररावजी अपने राज्य के शासन की जिम्मेदारी अपनी बहू को सौंप देते थें और वे भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाती थीं।

महाराष्ट्र में जन्मी अहिल्याबाई की शादी उनकी उम्र के आठवें वर्ष में मल्हाररावजी के इकलौते बेटे के साथ हुई। शादी के बाद उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया गया और साथ ही कथा-कीर्तन के माध्यम से उनपर धार्मिक संस्कार भी हुए थें।

अहिल्याबाई के पति का छोटी उम्र में देहान्त हो गया। लेकिन उस समय पति की अन्य पत्नियों की तरह सति न जाते हुए उन्होंने अपने कर्तव्य को प्रधानता दी।  मल्हाररावजी की गैरहाजिरी में उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ शासनव्यवस्था को सँभाला। मल्हाररावजी के पश्‍चात् अहिल्याबाई के पुत्र को सूबेदारी मिली, लेकिन उनके पुत्र का भी आकस्मिक निधन हो जाने के कारण उन्होंने अपने एक रिश्तेदार को गोद ले लिया और उसे फ़ौज तथा मुहिमों की जिम्मेदारी देकर स्वयं बाकी की व्यवस्था को सँभाला।

अपने शासनकाल में उन्होंने कईं पुराने क़ायदों में उचित सुधार किए। उन्होंने प्रजा के लिए हितकारी काम किए और साथ ही उनके राज्य पर हुए कईं हमलों का भी मुँहतोड़ जवाब दिया।

इसके साथ ही अहिल्याबाई उन्होंने किये हुए दानधर्म के कारण भी मशहूर हैं। कईं पुराने मन्दिरों का जीर्णोद्धार करना, नये मन्दिरों का निर्माण करना, कईं तीर्थस्थलों में नदियों पर घाटों का निर्माण करना, वहाँ आनेवाले तीर्थयात्रियों के निवास के लिए धर्मशालाओं का निर्माण करना, लोगों के लिए कुएँ, प्याऊँ आदि का निर्माण करके पेयजल की व्यवस्था करना, अन्नसत्र के माध्यम से खाने की व्यवस्था करना, यात्रियों के लिए रास्तों का निर्माण करना, विद्वान-पंडितों का सम्मान करना, गरीब एवं जरूरतमन्दों को दान करना आदि कईं काम अहिल्याबाई ने उनके शासनकाल में किए। अहिल्याबाई का शासन इन्दोर पर था, लेकिन वे अपना कामकाज इन्दोर के समीप स्थित महेश्‍वर में रहकर ही करती थीं।

होळकरों के शासनकाल में इन्दोर यह शहर एक व्यापारी शहर के रूप में काफी विकसित हुआ।

अहिल्याबाई होळकरजी के बाद इन्दोर की राजगद्दी होळकरों के पास ही थी, लेकिन अब अंग्रे़जों ने उनकी ब्रिटीश ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिये व्यापार का नाटक करते हुए समूचे भारतवर्ष में अपनी जड़ें म़जबूत करना शुरू किया था।

अंग्रे़जों के शिकंजे से इन्दोर भी भला अछूता कैसे रह सकता था? १९ वी सदी के पूर्वार्ध में अंग्रे़ज और मराठों के बीच घमासान युद्ध हुआ। फिर  एक सुलह (मन्दसौर की सुलह) के अनुसार होळकरों की जिसपर सत्ता थी, उसमें से काफी सारा प्रदेश अंग्रे़जों के कब़्जे में चला गया और उसी समय होळकर अपनी राजधानी महेश्‍वर से इन्दोर ले आए। उस समय सत्ता की डोर सँभालनेवाले होळकरों के वंशज ने अपनी पूरी ताकत के साथ अंग्रे़जों का मुक़ाबला करने की कोशिशें की, लेकिन वे कोशिशें नाक़ाम साबित हुईं और अन्त में इन्दोर के साथ होळकरों के राज्य को अंग्रे़जों ने अपने कब़्जे में ले लिया। जिस युद्ध के कारण यह इतिहास घटित हुआ, वह महिदपुर का युद्ध १८१७-१८१८ के आसपास हुआ और इस तरह से इन्दोर पर रहनेवाली होळकरों की हु़कूमत समाप्त होकर अंग्रे़जो की हु़कूमत शुरू हुई।

भारत की आ़जादी की जंग में भी इस शहर ने अहम भूमिका निभायी। १९४७ को भारत के आ़जाद होने के बाद अन्य रियासतों की तरह ही इन्दोर रियासत भी भारतीय संघराज्य का एक हिस्सा बन गयी। उस समय नियोजित किये गये मध्य भारत का इन्दोर यह एक हिस्सा बन गया और इन्दोर को इस नये रूप से स्थापित राज्य की गर्मी की राजधानी का दर्जा दिया गया। आगे चलकर १ नवम्बर १९५६ को मध्यप्रदेश यह राज्य बना और इन्दोर यह उस राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर बन गया।

माळवा प्रान्त में इन्दोर का भौगोलिक स्थान कुछ इस तरह से है कि वहाँ दोपहर की ते़ज धूप के बाद शाम एवं रात को सुखद शीतल हवाएँ बहती हैं और इसीलिए यह प्रदेश सुखद एवं शीतल हवाओं की रात के लिए प्राचीन समय से मशहूर है।

इस लेख की शुरुआत में हमने देखा कि इन्दोर वहाँ की खाद्यसंस्कृति के लिए मशहूर है। पोहा-जिलेबी से शुरू होनेवाली खाद्यपदार्थों की सूचि काफी लंबी है। केवल खाने की ची़जें ही नहीं, बल्कि शिकंजीजैसे पेय से लेकर अन्य प्रकार के शरबतों एवं फलों  के रसों का यहाँ का स्वाद भी मशहूर है। इतना ही नहीं, इन्दोर की ख़ासियत होनेवाले इन पदार्थों के साथ साथ भारत के अन्य प्रान्तों के पदार्थ भी यहाँ उपलब्ध हैं। इन्दोर का सराफा यह विभाग अच्छे खाद्यपदार्थ खिलाकर आपको तृप्त करने में अग्रेसर  है, ऐसा कहा जाता है।

आज इन्दोर यह शहर मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी के रूप में जाना जाता है, अर्थात् होळकरों के शासनकाल में जिस तरह यह शहर व्यापार के लिए मशहूर हुआ, उसी तरह आज भी यहाँ कईं उद्योग कार्यान्वित हैं।

सर्दी के मौसम में कड़ाके की ठण्ड़ से ठिठुरनेवाला और गर्मी के मौसम में ते़ज धूप से तपनेवाला, मग़र फिर  भी शाम एवं रात को बहनेवाली सुखद शीतल हवाओं का, ऐसा है यह शहर।

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