चेन्नई (भाग-१)

Pg12_Chennaiदूर-दूर तक फैले  हुए सागर के किनारे और मन्दिरों के ऊँचे एवं विशाल गोपुर इस प्रकार का चित्र यदि मन के सामने उभरकर आता है, तो निश्चित ही याद आती है दक्षिणी भारत की और दक्षिणी भारत का नाम लेते ही इडली-वडा-डोसा इनसे लेकर फ़िल्टर कॉफी तक के रसना को तृप्त करनेवाले पदार्थ भी याद आते हैं।

दक्षिणी भारत का नाम लेते ही यक़ीनन याद आते हैं, अगस्त्य ऋषि। एक ही आचमन में सागर को प्राशन करनेवाले और विन्ध्याचल को झुकानेवाले अगस्त्य ऋषि।

अगस्त्य ऋषि के समय में भारत का यह दक्षिणी भाग ‘तमिळहम्’ इस नाम से जाना जाता था। इस ‘तमिळहम्’ नामक प्रदेश में आज के तमिलनाडू और केरल इन राज्यों का समावेश होता था। उनमें से तमिळनाडू राज्य की राजधानी है ‘चेन्नई’।

तमिलनाडू की यह भूमि बहुत ही प्राचीन समय से अस्तित्व में है, ऐसा माना जाता है। आर्यों का भारत में प्रवेश होने के पहले से तमिलनाडू में द्रविड़ लोग बसते थें। अगस्त्य ऋषि ने स्वयं तमिलनाडू जाकर कईं वर्षों तक वास्तव्य किया और भारत के इस दक्षिण भाग का मेल उर्वरित भारत के साथ करवाया और एकसन्ध भारतवर्ष का निर्माण किया।

ऐसे इन अगस्त्य ऋषि की वास्तव्यभूमि और कर्मभूमि है तमिलनाडू। इसी तमिलनाडू राज्य की राजधानी है ‘चेन्नई’। यह वो शहर है, जो हमें उसके ‘मद्रास’ इस भूतपूर्व नाम से ही अधिक परिचित है।

प्राचीन समय में अर्थात् साधारण तौर पर पहली शताब्दि में आज का चेन्नई यह शहर ‘तोंडैमंडलम्’ इस नाम के प्रान्त में बसा हुआ था। इस तोंडैमंडलम् प्रान्त की उस समय की राजधानी कांचीपुरम् थी। आज का चेन्नई यह शहर उस समय एक छोटासा कसबा था। इस तोंडैमंडलम् प्रान्त पर ३री शताब्दि से लेकर ८ वी शताब्दि तक पल्लव राजवंश का शासन था। उसके पश्चात् ९वी शताब्दि से लेकर १३वी शताब्दि तक यहाँ पर चोळ राजवंश की सत्ता थी। १३वी शताब्दि में चोळ वंश के राजा को परास्त करके पांड्य राजवंश ने यहाँ पर अपनी हुकूमत स्थापित की और १४ वी शताब्दि में तोंडैमंडलम् विजयनगर साम्राज्य के कब़्जे में चला गया।

विजयनगर के सम्राटों ने अपने साम्राज्य के कईं विभाग किये थें और उस हर एक विभाग पर भिन्न-भिन्न नायकों को नियुक्त किया था। ये नायक विजयनगर के राजा के मांडलिक थें, लेकिन फिर भी  स्वतन्त्र रूप से शासनव्यवस्था चलाने का अधिकार उनके पास था।

ऐसे ही एक नायक – दमर्ला वेंकटाद्री/वेंकटपथी नायकुडू के हाथों में उस समय के चेन्नई की सत्ता की बागड़ोर थी।

कुछ लोगों की राय ऐसी भी है कि इसी नायक के पिता का नाम इस शहर को दिया गया। ‘दमर्ला चेनप्पा नायकुडू’ इस नाम से अर्थात् चेनप्पा इस नाम से उस समय इस छोटे से कसबे का नाम ‘चेन्नई’ रखा गया। कुछ लोगों की राय से ‘चेन्नापटणम्’ इस नाम से ‘चेन्नई’ नाम रखा गया। अंग्रे़जों ने यहाँ जिस क़िले का निर्माण किया था, उसके इर्द-गिर्द बसे हुए गाँव का नाम ‘चेन्नापटणम्’ था। एक राय ऐसी भी है कि ‘चेन्ना केशव पेरुमल’ इस मन्दिर के कारण इस शहर को चेन्नई यह नाम प्राप्त हुआ। ‘चेन्नई’ इस नाम के इतिहास के बारे में कुछ लोगों का यह कहना है कि यहाँ पर ‘चेन्नी केशवार’ और ’चेन्नी मल्लीश्‍वरर’ ये दो प्राचीन मन्दिर थें। ये दोनों मन्दिर पूर्व दिशा में थें। ‘चेन्नी’ इस तमिल शब्द का अर्थ है ‘चेहरा’। ये दो मन्दिर कुछ इस तरह से स्थापित किये गये थें कि मानों वे उस गाँव का मुख-चेहरा ही हैं और इन्हीं मन्दिरों के कारण यह शहर चेन्नई इस नाम से जाना जाने लगा। इन सबका अर्थ यही है कि यह शहर प्राचीन समय से चेन्नई इस नाम से ही जाना जाता था।

तो फिर इसका नाम ‘मद्रास’ कैसे हुआ? ‘मद्रासपटणम्’ इस गाँव के कारण इस शहर का नाम ‘मद्रास’ हुआ, ऐसा कहा जाता है। अंग्रे़जों ने इस पर कब़्जा करने के बाद यहाँ एक क़िले का निर्माण किया। इस क़िले के पास ही मद्रासपटणम् नाम का गाँव था और इसी गाँव के कारण इस स्थान को ‘मद्रास’ कहा जाने लगा। अंग्रे़जों ने अपने दस्तूर के मुताबिक़ चेन्नई का नाम मद्रास कर दिया। अर्थात् मद्रास इस नामकरण के बारे में भी विभिन्न मतमतान्तर हैं। कुछ लोगों का कहना है कि पुर्तगालियों ने इस शहर को (उस समय के गाँव को) ‘मद्रास’ यह नाम दिया।

ख़ैर, जो भी है। चेन्नई-मद्रास इस तरह नामों का सफर करते करते आख़िर इसवी १९९६ में इस शहर का नाम अधिकृत रूप से ‘चेन्नई’ किया गया।

कईं छोटे-छोटे कसबों का एकत्रीकरण करके आज का चेन्नई यह शहर बना है। १७ वी शताब्दि में अंग्रे़ज यहाँ आएँ और यहीं से इस स्थान को ऊर्जितावस्था प्राप्त होने लगी और २० वी शताब्दि में जब तक अंग्रे़जों का भारत पर शासन था, तब तक मद्रास प्रेसिडेन्सी इस विभाग की यह राजधानी थी।

अंग्रे़जों से भी पहले भारत आये हुए पुर्तगालियों ने और उनके बाद आये हुए डच लोगों नें इस स्थान के आसपास उपनिवेशों का निर्माण किया। क्योंकि यह स्थान एक बन्दरगाह होने के कारण उन्हें व्यापार की दृष्टि से बहुत ही फायदेमंद था। लेकिन पुर्तगाली या डच इनकी इस गाँव-स्थान का स्वरूप बदलने की दिशा में जरासी भी मदद नहीं मिली। वहीं १७वी शताब्दि में आयी हुई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस स्थान का रूप ही बदल दिया।

भारत से कॅलिको कपड़ा युरोप में भेजने के उद्देश्य से अंग्रे़जों ने आर्मगाँव में एक फैक्ट्री शुरू करने का फैसला किया, लेकिन वहाँ का कपड़ा और बन्दरगाह दोनों भी बातें अंग्रे़जों को रास नहीं आयीं। इसी कारण फ्रांसिस डे नाम के कंपनी के अधिकारी ने उचित स्थान की खोज शुरू कर दी। चेन्नई शहर पर उस समय दमर्ला वेंकटाद्री नायकुडू (पूर्व में उल्लेखित) इस नायक की सत्ता थी। फ्रांसिस डे इस अधिकारी का दुभाषिया (इंटरप्रीटर) और वेंकटाद्री नायकुडू के भाई एक-दूसरे के दोस्त थें और उनकी इस मित्रता के कारण ही फ्रांसिस डे को इस स्थान के बारे में पता चला और वेंकटाद्री नायकुडू से उसने यहाँ की थोड़ीसी जमीन प्राप्त की। अर्थात् यह स्थान अंग्रे़जों के व्यापार के लिए उत्तम भी था एवं फायदेमंद भी। इस तरह वेंकटाद्री नायक से अंग्रे़जों के फ्रांसिस  डे नामक अधिकारी ने थोड़ीबहुत जमीन प्राप्त करने के बाद २० फरवरी  १६४० को वह ‘मद्रासपटणम्’ में अपने सहकर्मियों के साथ पहुँच गया। यहीं से धीरे-धीरे उस कसबे का रूप बदलता रहा और आज पूरी तरह बदलकर वह एक महत्त्वपूर्ण शहर बन चुका है।

अंग्रे़ज और नायक इनके बीच तय हुए जमीन के इस क़रारनामें की अवधि सिर्फ दो वर्ष तक ही सीमित थी। उस गाँव में अंग्रे़जों ने निवास के उद्देश्य से २३  अप्रैल १६४० को एक क़िले का निर्माणकार्य शुरू किया। यही है वह सेंट जॉर्ज क़िला (सेंट जॉर्ज फोर्ट)। इसी क़िले के इर्द-गिर्द धीरे-धीरे लोग आकर बसने लगे।

अंग्रे़ज और नायक इनके बीच का यह क़रारनामा दो वर्ष बाद समाप्त हुआ और चन्द्रगिरी के राजा के साथ अंग्रे़जों ने पुनः नया क़रार किया। चन्द्रगिरी का राजा विजयनगर के साम्राज्य का ही मांडलिक था।

इस तरह व्यापारी बनकर भारत आये अंग्रे़जों ने धीरे-धीरे इस भूमी पर कब़्जा करना शुरू कर दिया। इस प्रक्रिया में भले ही उन्होंने कई गाँवों का रूपान्तरण शहरों में कर दिया हो, मगर उन्होंने आ़जाद भारत को गुलामी की जंजीरों में जकड़ दिया, इस बात को हमें कभी भी नहीं भूलना चाहिए।

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