हेरॉन (ईसा पूर्व पहली शताब्दी)

Heronईसा पूर्व पहली शताब्दी की बात है। इजिप्त के अलेक्झांड्रिया शहर के टिसेबिअस नाम की मशहूर अध्यापक की पाठशाला। विज्ञान जैसे विषय का हँसते-खेलते ज्ञान करवा देने में माहिर थे टिसेबिअस सर। इसी पाठशाला में खिड़की के पास बैठकर एक विद्यार्थी (छात्र) कुछ चमत्कारी कार्य करने में मग्न था। टिसेबिअस ने पहले-पहेल तो उस विद्यार्थी की कोई ध्यान नहीं दिया।

परन्तु बहुत जल्द ही उन्हें ऐसा लगा कि यह ‘मामला’ कुछ विशेष है। फिर उन्होंने उस विद्यार्थी की ओर विशेष ध्यान देकर उसे नयी-नयी बातें सिखाना शुरू कर दिया। कालांतर में यही बालक अलेक्झांड्रिया ही नहीं बल्कि संपूर्ण इजिप्त की शान के रूप में पहचाना जाने लगा। उस बालक का नाम था ‘हेरॉन’।

हेरॉन के जन्मतारीख अथवा वर्ष के संबंध में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन उनका संपूर्ण जीवन प्रवास ईसा पूर्व पहली शताब्दी में ही है, इस बात से सभी संशोधक एकमत हैं। हेरॉन बचपन से ही मनमौजी बालक के रूप में मशहूर थे। निरंतर कुछ न कुछ नयी चीजें बनाते रहने की उनकी आदत थी। ऐसे में टिसेबिअस के स्कूल में जब से हेरॉन जाने लगा, तब से यांत्रिक करामातों में उसका मन अधिक रमने लगा था। टिसेबिअस के स्कूल में कुछ समय तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्‍चात् हेरॉन ने स्कूली पढ़ाई छोड़कर अपने ढ़ंगी-बेढ़ंगी प्रयोगों का आरंभ कर दिया। प्रयोग के दौरान हेरॉन प्राचीन ग्रंथों में लिखे गए विशेष सिद्धान्तों के आधार पर ही अपने सभी प्रयोगों को अंजाम देता था। सभी प्रयोग घर पर ही चलते रहने के कारण घरवालों को अकसर इसी बात की चिंता लगी रहती थी कि इस लड़के का क्या होगा और इस घर का क्या होगा।

एक बार हेरॉन के घर पर काफी  मेहमान आये थे। मेहमानों के उपस्थिति के कारण हेरॉन के प्रायोगिक कार्य पर कुछ हद तक निर्बंध लगा दिया गया था। इसी लिए ऊब कर वह कुछ समय के लिए बाहर घुमने चला गया। घूमते-घुमते अचानक वह एक खाली स्थान पर रुक गया। उसके सामने सारी लकड़ियाँ जलाई जा रही थीं और उस पर एक बड़ा सा बर्तन रखा गया था, जिस में पानी उबाल रहा था और उस पानी से बहुत बड़े पैमाने पर भाप बाहर निकल रही थी।

इस घटना को देखते ही हेरॉन के मस्तिष्क में विचारों का चक्र घुमने लगा। इतनी सारी भाप यूँ ही व्यर्थ जा रही हैं, इसका कुछ उपयोग क्यों नहीं हो रहा है? अपने इस प्रश्‍न की पुष्टि उसने स्वयं ही की। पुष्टि करने के पश्‍चात् उसके समझ में यह बात आयी कि इस भाप में काफी  शक्ति है, उसका कुछ न कुछ उपयोग तो होना ही चाहिए। उसने उसकी उपयुक्तता का अंदाज़ा लगाने के लिए एक यंत्र बनाने का निश्‍चय किया।

अथक परिश्रम के पश्‍चात् हेरॉनने एक गोले के समान यंत्र का निर्माण किया। इस यंत्र में एक नली का आधार दिया गया था। इस नली को भाप के दूसरे बर्तन से जोड़ दिया उस गोले के बगलवाली नलिका से भाप बाहर निकलने लगती थी तब वह गोला उस आधारभूत नलिका के चारों ओर घुमने लगता था। इस यंत्र को हेरॉन ने ‘एओलिपाईल’ नाम प्रदान किया। ‘एओलि’ तथा ‘पाईल’ इन दो ग्रीक शब्दों से उसने इस नाम को ढूँढ़कर निकाला था। उसमें से ‘एओलस’ यह ग्रीक वायुदेव का नाम था और ‘पाईल’ का अर्थ था पाईप अथवा नली।

देखने जाये तो ‘एओलिपाईल’ यह भाप की शक्ति का दुनिया में प्रथम प्रवाहित होने वाला आविष्कार था। इस आविष्कार के पश्‍चात् उसका दैनिक जीवन के व्यवहार में उपयोग में लाये जाने की कारीगरी वे नहीं दिखा पाये। वह उनके लगभग दो हजार वर्षों पश्‍चात् जेम्स वॅट नामक शास्त्रज्ञ ने कर दिखाया।

हेरॉन के इस प्रयोग की जानकारी गाँव से दूर रहनेवाले एक मंदिर के पुजारी तक जा पहुँची। उन्होंने तुरंत ही हेरॉन से इस प्रकार के किसी भी यंत्र को बनाकर देने की विनति की, जिससे सभी मंदिर की ओर आकर्षित हो सके। हेरॉनने उन्हें एक छोटा सा तीर्थ-यंत्र बनाकर दिया। इस यंत्र में एक सिक्का डालने पर उसमें से एक चम्मच तीर्थ (पवित्र जल) बाहर निकलता था। इस यंत्र को पाकर पुजारी आनंदित हो उठा।

इसके पश्‍चात् हेरॉन ने एक और भी चमत्कारी चीज़ बनाई और वह थी- मंदिरों के गर्भगृह में अनगिनत खाने एवं तरफे लगाकर, किसी विशिष्ट अवसर पर मंदिर के दरवाज़े अपने आप खोले जा सके, इस प्रकार की व्यवस्था किया गया यन्त्र । इसके पश्‍चात् हेरॉन ने केवल मनोरंजन अथवा धार्मिक कार्यों के लिए अपने चित्र-विचित्र प्रयोगों का उपयोग किया। परन्तु प्रयोग करते समय उससे कुछ व्यावसायिक लाभ भी होना चाहिए ऐसी सोच भी उनके मन में नहीं आयी थी।

केवल प्रयोग करके उस ज्ञान को अपने तक ही रखकर हेरॉन ने उस पर आधारित कुछ किताबें भी लिखी। उनमें से ‘न्युमॅटिक्स’, ‘डिऑप्ट्रा’, ‘ऑटोमेटा’ एवं ‘मेकॅनिक्स’ ये उनकी पुस्तकें विशेष मशहूर हैं। इनमें उनके द्वारा स्वयं किए गए विभिन्न प्रयोग, उनकी उपयोगिता एवं विभिन्न प्रकार के गणित एवं शास्त्रीय प्रकारों की जानकारी दी गई है।

‘तीर्थयंत्र’ अथवा ‘एओलिपाईल’ की निर्मिति करनेवाले हेरॉन का जन्म यदि कुछ शताब्दियों के पश्‍चात् हुआ होता तो शायद उनका भविष्य कुछ और ही होता। महज़ एक शताब्दी ही नहीं बल्कि अनेक शताब्दियों तक के सर्वश्रेष्ठ शास्त्रज्ञ के रूप में हेरॉन की अपनी पहचान रही होती। वैज्ञानिक दृष्टिकोन से देखा जाए तो अर्भकावस्था से केवल विज्ञान के प्रति प्रेम होने के कारण संशोधन करनेवाले हेरॉन निश्‍चित ही एक असामान्य शात्रज्ञ थे, इसमें कोई आशंका नहीं है।

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