एडवर्ड जेन्नर (१७४९-१८२३ )

Edward_Jennerप्रकृति के प्रति प्रेम रखनेवाला विश्‍व का एक ब्रिटीशयन नौजवान। अठारहवी शताब्दि में संपूर्ण यूरोप में मशहूर रहनेवाले दर्यावर्दी कॅप्टन जेम्स कूक ने अपने आगामी सफर  के लिए सहज वैज्ञानिक के रुप में उसका चुनाव किया। परन्तु वैद्यकशास्त्र के अध्ययन में मग्न रहनेवाले उस नौजवान ने उनके साथ सफर  के लिए जाने से साफ़-साफ़  मना कर दिया। उस समय में अनेकों ने उसकी गिनती पागलों में की। परन्तु वह नौजवान अपने निश्‍चय पर अटल रहा। उसके सफर  पर न जाने के दृढ़ इरादे के कारण लोगों के मन में अलग अलग बातें आती रहीं, परन्तु दो दशकों के पश्‍चात् उस छूट जाने वाले सफर  के कारण दुनिया को एक जानलेवा बीमारी से मुक्त होने का उपाय सामने आया।

वह नौजवान था, एक मशहूर वैद्यक संशोधक एडवर्ड जेन्नर। अपने संशोधन के बल पर संपूर्ण जगत को ‘देवी’ (चेचक) (स्मॉलपॉक्स) नामक बीमारी से मुक्त कर जेन्नर ने उन्हें नया जीवन प्रदान किया ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा।

एडवर्ड जेन्नर का जन्म १७ मई १७४९  में ब्रिटन के ग्लुस्टर शायर नामक प्रांत में हुआ था। प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे हुए स्थान पर एडवर्ड का बचपन व्यतीत होने के कारण उन्हें पक्षियों के अंडों से लेकर प्राचीन अवशेषों तक की किसी भी वस्तु आदि को एकत्रित करके उसे अपने पास संजोकर रखने का शौक था। अचानक उनके माता-पिता का देहान्त हो जाने के कारण उन्हें उम्र के चौदहवे वर्ष से ही ड़ॉ. लुडलों के यहाँ प्रशिक्षण कर्ता के रुप में काम करना पडा।

लगभग सात वर्षों तक प्रशिक्षणकर्ता के रुप में काम करने के पश्‍चात् वैद्यकीय शिक्षा की आस मन में लिए एडवर्ड लंडन जा पहुँचे। खुशकिस्मती से उन्हें उस काल में एक मशहूर सर्जन के रुप में जाने-माने जॉन हंटर के यहाँ असिस्टंट के रुप में सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। लंडन के अस्पताल में काम करने वाले गुरुशिष्य की यह जोड़ी आजीवन बनी रही। उस समय अपने लाडले शिष्य को दी गई यह सलाह ‘सोचो मत, प्रयास करो’ इसका पालन जेन्नर ने आजीवन किया।

जॉन हंटर के मार्गदर्शन एक वैद्यकीय शिक्षा पूरी कर एडवर्ड जेन्नर ने अपने गाँव में आकर एक सर्जन के रुप में अपने कार्य का आरंभ किया। एडवर्ड जेन्नर ने जिस समय अपने वैद्यकीय व्यवसाय का आरंभ किया उस समय चेचक की बीमारे बड़े जोर-शोर के साथ फ़ैली हुई थी। उसे रोकने का उपाय तो था, परन्तु उससे जान को खतरा था।

चेचक की बीमारी होने वाले मरीज के शरीर पर आने वाले फोड़ो में से द्रव निकाल दिया जाता था और उसे निरोगी व्यक्ती के शरीर में टीके के रुप में दिया जाता था। परन्तु इस उपाय में काफी  खतरा हुआ करता था। एक तो यह उपाय चेचक की फैलने वाली बीमारी को रोकने के लिए तात्कालीन उपाय के रुप में उपयोग में लाया जाता था। दूसरी बात यह थी कि जिस निरोगी व्यक्ति को इस द्रव का टीका लगाया जाता था उसका चेहरा बदसूरत होने अथवा उसकी जान जाने का भी खतरा इस में रहता था। यह उपाय अति भयानक होने के बावजूद भी इसका उपयोग किया जाता था क्योंकि इसके अलावा और कोई रास्ता भी न था।

JENNERबिलकुल नये सिरे से अपना वैद्यकीय व्यवसाय का आरंभ करनेवाले एडवर्ड जेन्नर ने चेचक जैसी बीमारी को दूर करने के लिए किया जाने वाला उपाय मजबूरी में अपनाया था। परन्तु इसके साथ ही दूसरा कोई आरामदेह उपाय ढूँढ़ने का उनका प्रयास चलता ही रहा। बचपन में अपने शौक को पूरा करने के दौरान आस-पास के ग्रामवासियों से जेन्नर ने एक बात सुन रखी थी कि, जिसे ‘काऊ पॉक्स’ नामक बीमारी होती है उसे चेचक (स्मॉल पॉक्स) की बीमारी नहीं होती। उस समय उस बालक एडवर्ड ने उसे एक मजाक समझ कर नजर अंदाज कर दिया था।

परन्तु अब वैद्यकीय शिक्षा प्राप्त एडवर्ड जेन्नर ने उस मजाक में टाल दी गई बात पर ही अपना ध्यान केन्द्रीत करने का निश्‍चय कर लिया। जेन्नर ने अपने गुरु जॉन हंटर के साथ इस विषय पर विचार-विमर्श किया। हंडर ने उन्हें बर्क ले इस स्थान पर ही रहकर अपना प्रयोगकार्य एवं निरीक्षण आदि करने की सलाह दी। सौभाग्यवश १७९६ में ‘काऊ पॉक्स’ की एक केस जेन्नर के हाथों में आन पड़ी।

साराह नेल्म्स नामक एक ग्वालन अपने हाथों पर रॅश आ जाने के कारण उपचार हेतु एडवर्ड जेन्नर के पास गई थी। जेन्नर ने उसे काऊपॉक्स हुआ है यह बतलाया। एडवर्ड जेन्नर के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण अवसर था। उन्होंने सराह के हाथों पर होनेवाले जखम से द्रव निकालकर अपने पास ही काम करनेवाले माली के आठ वर्षीय बालक जेम्स फिप्स  को उस द्रव का टीका लगा दिया।

कुछ ही दिनों पश्‍चात् जेम्स काऊ पॉक्स नामक बीमारी से ग्रसित हो गया। परन्तु कुछ हफ्ते भर में ही वह अच्छा भी हो गया। इसके पश्‍चात् जेन्नर ने चेचक के बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के फोड़ो से द्रव निकाल कर जेम्स को उस द्रव का भी टीका लगा दिया। अब यहाँ से आने वाला हर दिन मानो एडवर्ड जेन्नर की सत्त्वपरिक्षा ही थी। अंत: जेन्नर को सफलता प्राप्त हुई। चेचक की बीमारी का द्रव टीके के माध्यम से देने के बावजूद भी जेम्स के ऊपर उसका कोई भी असर नहीं हुआ था। एडवर्ड जेन्नर ने अपने इस संपूर्ण प्रयोग, निरीक्षण एवं अध्ययन को १७९८ में एक प्रबंध के रुप में प्रकाशित किया।

उस काल के वैद्यक तज्ञों ने जेन्नर के इस संशोधन कार्य को मंजूरी देने से इंकार कर दिया। लंडन की मशहूर रॉयल सोसायटी ने भी जेन्नर के लिखे गए इस प्रबंध को प्रकाशित करने से मना कर दिया। फिर  भी अपनी धुन के पक्के जेन्नर बिलकुल भी विचलित न होते हुए चेचक से संबंधित अपने प्रयोग करते ही रहे। चेचक की बीमारी से संबंधित बीस से भी अधिक केस एवं उसके निरीक्षण आदि को प्रस्तुत करने के पश्‍चात् सेंट जेम्स् अस्पताल के डॉ.क्लाईन ने जेन्नर के इस संशोधन कार्य की जिम्मेदारी उठते हुए अपने अस्पताल में उनके द्वारा बनाये गए टीकों का उपयोग करना शुरु कर दिया।

आखिरकार १८०२ में ब्रिटीश संसद ने डॉ. जेन्नर के इस निरपेक्ष संशोधन पर ध्यान आकर्षित किया। चेचक जैसी जानलेवा बीमारी का लसीकरण करने के लिए संसद ने दस हजार पौंड की रक्कम जेम्स के सुपूर्द की। बहुत जल्द ही जेन्नर के कार्यकारी की महत्ता संपूर्ण यूरोप में  फ़ैल गई। फ्रांस  के सम्राट नेपोलियन ने तो जेन्नर को उनके इस कार्य के प्रति विशेष सम्मान सहित गौरावान्वित किया।

डॉ.जेन्नर ने चेचक की बीमारी पर लसीकरण शास्त्रशुद्ध पद्धतिनुसार बहुत बड़े पैमाने पर हो इसके लिए १८०३ में ‘रॉयल जेन्नरियन सोसायटी’ की स्थापना की। जेन्नर ने आजीवन चेचक की इस बीमारी के प्रति अपना संशोधन कार्य जारी रखा। इसके साथ ही साथ अपने बचपन के प्राकृतिक विविध वस्तुओं के निरीक्षण का शौक भी कायम रखा।

आज इक्कीसवी सदी में चेचक का नामोनिशान भी दिखाई नहीं देता। वैश्‍विक आरोग्य संघटना ने १९८० में ही ‘चेचक की बीमारी का हमारी पृथ्वी से उच्चाटन हो गया है’ ऐसी घोषणा की है। मगर इस दुनिया से इस जानलेवा एवं संसर्गजन्य बीमारी का नामोनिशान मिटा देने में अग्रगण्य रहनेवाले एडवर्ड जेन्नर को कोई भी भुला नहीं सकेगा।

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