गर्टी तेरेसा कोरी

जिस दौर में स्त्रियों की शिक्षा पर विशेष तौर पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था, उस समय विज्ञान और गणित इन शाखाओं के साथ स्त्रियों का कोई संबंध ही नहीं है, ऐसी गलत धारणा फैली हुई थी। परन्तु समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी की बुलंदियों को छूकर महिलाओं ने अपनी तेजस्वी प्रतिभा का परिचय देकर विविध ज्ञानक्षेत्रों में अपना मकाम कायम कर दिया।

‘गर्टी तेरेसा कोरी’ ये झेकोस्लावियन वैज्ञानिक थीं, जो आगे चलकर जीवरसायनविशेषज्ञ के रूप में दुनिया भर में विख्यात हो गईं। ज्यू परिवार में १५ अगस्त १८९६ को प्राग नामक शहर में (पूर्व समय के ऑस्ट्रीया में) उनका जन्म हुआ था। उस समय के रूढ़ी के अनुसार उम्र के दसवें वर्ष तक उनकी शिक्षा घर पर ही पूरी हुई। उनके बालरोग-विशेषज्ञ चाचा ने उन्हें प्रोत्साहित किया। शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा होने के बावजूद भी गणित, विज्ञान इस प्रकार के विषयों से लड़कियों को वंचित रखा जाता था; क्योंकि उस समय यह धारणा थी कि इन विषयों का उनके लिए कोई उपयोग नहीं है। बचपन से ही बुद्धिमान गर्टी को शास्त्रविषयों में काफी रुची थी। इसी के अनुसार उन्होंने उपचार शास्त्रों का अध्ययन करने का निश्‍चय किया। परन्तु इससे पहले पाँच-छ: वर्षों तक उन्हें गणित का अध्ययन, भौतिक एवं रसायनशास्त्र का आरंभिक अध्ययन भी गहराई से करने का एवं लेटिन भाषा का ज्ञान यह सब कुछ उनके लिए जरूरी था। इसके लिए उन्हें समय भी अधिक लगनेवाला था।

‘जहाँ चाह वहाँ राह’ इस उक्ति के अनुसार गर्टी की मुलाकात संयोग से एक प्राध्यापक से हुई और उन्होंने उनके मार्ग में आनेवाली सभी रुकावटों को दूर करने में मदद की। निर्धारित कार्य को पूरा करना यह उनका स्वभाव था। परिश्रम और होशियारी के बल पर उन्होंने १९२० में अपनी वैद्यकीय शिक्षा पूरी करके डॉक्टरेट की उपाधि हासिल कर ली। यह शिक्षा हासिल करते वक्त उनके सहपाठी कार्ल कोरी जे साथ उन्होंने विवाह कर लिया। इस दौरान प्रथम महायुद्ध का अंतिम पड़ाव चल रहा था। ऑस्ट्रीया का वातावरण बिलकुल अशांत था। १९२२ में कार्ल को कुछ विशिष्ट रोगों का अध्ययन करने हेतु बुलाया गया। इसके पश्‍चात् कुछ ही समय में गर्टी भी अमरीका में स्थलांतरित हो गई।

९ से १० वर्षों तक ये दोनों ही न्यूयॉर्क के ‘स्टेट इन्स्टिट्युट फॉर स्टडी ऑफ मॅलिग्नंट डिसिझेस (रुझवेल पार्क कॅन्सर इन्स्टिट्युट) संस्था में संशोधन कार्य में मग्न रहे। उनकी ज्ञान-लालसा एवं तीव्र इच्छा देख इस संस्था ने उन्हें उसी संस्था में रहकर स्वतंत्र रूप में संशोधन करने की अनुमति प्रदान की और साथ ही आवश्यक सभी सुविधाएँ भी उपलब्ध करवायीं। शारीरिक वृद्धि का अध्ययन करने के लिए उन्होंने अनेकों प्रयोग किए।

१९३१ में गर्टी ने वॉशिंग्टन विश्‍वविद्यालय में जीवरसायनशास्त्र की सहायक प्राध्यापिका के रूप में अपना कार्यभार संभाल लिया। इन्सुलीन की खोज उस दौरान हो चुकी थी। इन्सुलीन का उपयोग करके शरीर की विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं का अध्ययन करना उन्होंने आरंभ कर दिया। अनेक प्राणियों पर प्रयोग-कार्य चल रहा था। पॉलीसॅकराईड फॉस्फोराईलस यह एन्झाझम अलग करके उसके शुद्धिकरण में उन दोनों को सफलता मिली।

१९४३ में ग्लायकोजेन प्रयोगनलिका में तैयार करने में उन्हें सफलता प्राप्त हुई। सजीवों के शरीर की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया की खोज हुई। यह प्रक्रिया ‘कोरी चक्र’ (कोरी सायकल) इस नाम से जानी जाती है। शरीर के ग्लायकोजेन का एक बड़ा हिस्सा मुख्य तौर पर यकृत में होता है, वहीं पर ग्लायकोजेन का रूपांतरण शक्कर में होकर वह हमारे खून में घुलमिल जाता है और पुन: मांसपेशी के ग्लायकोजेन में रूपांतरित होता है। मांसपेशी में ग्लायकोजेन ही विभाजित होकर लॅक्टिक अ‍ॅसिड तैयार होता है। इस विभाजन प्रक्रिया में निर्माण होनेवाली ऊर्जा का उपयोग मांसपेशियों के आकुंचन-प्रसारण के लिए होता है। इस लॅक्टिक अ‍ॅसिड से यकृत में पुन: ग्लायकोजेन की निर्मिति होती है। यह संपूर्ण संशोधन कोरी पती-पत्नी इन दोनों ने मिलकर रात-दिन प्रयोग करके पूरा किया। शरीर में होनेवाले ग्लुकोज से संबंधित प्रक्रियाओं पर ‘हार्मोन्स’ का क्या प्रभाव पड़ता है, इस संबंध में भी संशोधन इन दोनों ने मिलकर पूरा किया।

मनुष्य के शरीर की वृद्धि-प्रक्रिया को समझने की दृष्टि से भी इस संशोधन का बहुमूल्य योगदान था। इतना महत्त्वपूर्ण संशोधन करके भी गर्टी को १९५७ में उनके जीवन का अंत होने तक जीवरसायनशास्त्र के अध्यापक के पद पर ही सन्तोष करना पड़ा था। सर्वोत्तम महिला संशोधक मानी जानेवाली तीन महिलाओं में से तीसरी महिला संशोधक एवं प्रथम महिला अमरीकी संशोधक इनकी गणना में उनका नाम आता है।

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