कॅप्टन जेम्स कुक (१७२८-१७७९)

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अठारहवी सदी के प्रसिद्ध समुद्रयात्री एवं संशोधनकर्ता सैलानी माने जाने वाले जेम्स कुक का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ। सामान्य परिवार में जन्म लेनेवाले इस लड़के ने निरीक्षण, पसंद एवं अध्ययन इन तीनों गुणों के बल पर संपूर्ण विश्‍व के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया।

ब्रिटन के यार्क वसाहत के मार्टन नामक गाँव में २७ अक्तूबर १७२८ को जेम्स कुक का जन्म हुआ। पारिवारिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उम्र के सोलहवे वर्ष ही गाँव के पास के ही बंदरगाह में होने वाले एक दुकान में उन्हें नौकरी करनी पड़ी। आरंभ में नौकरी करने की इच्छा न रखने वाले जेम्स के मन में कुछ ही अवधि में बंदरगाह में आने जाने वाले खलासियों के प्रति कौतूहल निर्माण हो गया। और उनके मन में उत्पन्न होनेवाले इसी कौतूहल ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी।

दुकानदार ने बहुत जल्द ही इस बात का अंदाज़ा लगा लिया कि जेम्स को इस काम में दिलचस्पी नहीं हैं और इसीलिए उसने जेम्स को व्हिटबी बंदरगाह की जहाज़ कंपनी के मालिक वॉकर बंधुओं के हाथों सौंप दिया। वॉकर बंधुओं ने जेम्स को अपने पास के व्यापारी जहाज पर नौसिखिया खलासी के रूप में दाखिल कर लिया। यही से जेम्स के सागरी जीवन का प्रवास शुरू हो गया।

नौसिखिया खलासी के रूप में भर्ती हो जाने पर जेम्स ने धीरे-धीरे नौकानयन शास्त्र, गणित, भूमिति और खगोलशास्त्र इन विषयों का अध्ययन करना भी शुरू कर दिया। तीन वर्ष तक एक नौसिखिया खलासी के रुप में ब्रिटीश बंदरगाह में काम करने के पश्‍चात् जेम्स को मालढुलाई करने वाले जहाजों के साथ युरोप के विविध समुद्रों में भ्रमण करने का अवसर प्राप्त हुआ। कुछ ही वर्षों में जहाज पर ही एक प्रमुख अधिकारी के रुप में उनकी नियुक्ति हो गई।

इसी समय ब्रिटन एवं फ्रांस के बीच शुरु होने वाले युद्ध के दौरान ब्रिटीश में भर्ती शुरु हो गई थी। नौसेना (नेव्ही) में भर्ती होने पर अपने जीवन को नई दिशा प्राप्त होगी, साथ ही जल्द गति के साथ प्रगति भी होगी, इस हेतु से जेम्स ने नौसेना में भर्ती होने का निश्‍चय भी कर लिया। ब्रिटीश आर्मी के ‘ईगल’ नामक जहाज के साथ जेम्स कुक अमेरिका जा पहुँचे।

अमेरिका में ‘क्युबेक सिटी’ एवं ‘प्लेन्स ऑफ अब्राहम’ इन दोनों युद्धों में जेम्स ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। अमेरिका के न्यूफाउंडलंड इस सागरी प्रदेश का जेम्स के द्वारा किये गए सर्वेक्षण के कारण ब्रिटीश आर्मी ने उनका मान-सम्मान अधिक बढ़ गया। उनके कार्य की ज़िम्मेदारी ब्रिटीश आर्मी के प्रमुख एवं रॉयल सोसायटी ने भी ले ली। जेम्स जिस दिन के तलाश में थे आखिर वह दिन आ ही गया। व्यापारी नौकानयन की आकर्षक अवसर छोड़कर आर्मी में भर्ती होने का फैसला सही साबित हुआ था।

रॉयल सोसायटी ने जेम्स पर एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी ‘एन्डेव्हर’ इस जहाज के साथ १७६९ में शुक्र अधिक्रमण के अध्ययन हेतु एवं पॅसिफिक महासागर के सर्वेक्षण के लिए ताहिती बंदरगाह पर उन्हें भेज दिया गया। सौंपी गई ज़िम्मेदारी को भली-भाँति पार कर उन्होंने अपना रुख न्यूझीलंड की ओर किया। इससे पहले न्यूझीलंड यह एक खंडप्राय देश का भाग होगा ऐसा उनका मानना था।

जेम्स कुक ने न्यूझीलंड के दोनों प्रमुख बंदरगाहों के किनारों को देखकर उनका नक्शा तैयार किया। फिर भी लगभग तीन सप्ताह तक प्रयास करने के पश्‍चात भी जमीन के दिखाई न देने पर कुक परेशान हो गए। इसके साथ अगले दिन ही कुक ऑस्ट्रेलिया के पूर्व किनारे पर जा पहुँचे। तब तक उस स्थान पर किसी भी यूरोपीयन खलासी ने पैर नहीं रखा था। जेम्स कुक ने उस भाग को ‘न्यू साऊथ वेल्स’ का नाम देकर वहाँ पर ब्रिटन का झंडा लहरा दिया।

वापस लौट आने पर कुछ ही समय में रॉयल सोसायटी ने जेम्स कुक को पॅसिफिक के दक्षिण किनारे के प्रदेश के अध्ययन के लिए भेज दिया। अनेक कठिनाइयों का मुकाबला करते हुए उन्होंने दक्षिण अमेरिका के केपहॉर्न से लेकर न्यूझीलंड तक के प्रदेश को छान मारा। दक्षिण ध्रुव के पास के अंटार्क्टिका प्रदेश तक पहुँचते ही कुक को सफलता  प्राप्त हो गई। लेकिन खराब मौसम के चलते अंटार्क्टिका खंड के आखिर तक कुक पहुँच नहीं पाये। कुक की दृष्टि में उनके इस अभियान को कुछ खास सफलता  नहीं मिली। परन्तु सॉलोमन एवं न्यू जॉर्जिया इन बंदरगाहों की खोज करने में जेम्स कुक सफल  रहे।

इस सागरी प्रवास में कुक ने ६०  हजार सागरी मील का प्रवास किया। सागरी प्रवास की इच्छा रखनेवाले कॅप्टन जेम्स कुक ने १७७६ में अटलांटिक एवं पॅसिफिक महासागर को जोड़नेवाले सागरी मार्ग की खोज करने का अभियान कार्य शुरु कर दिया। बदकिस्मती से जेम्स कुक का यह आखिरी अभियान रहा। वापसी सफ़र में कुछ अप्रिय दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ा। इसी समय एक बंदरगाह पर आदिवासी टोलियों के बीच आपस में छिड़ने वाले संघर्ष में जेम्स की मृत्यु हो गई, ऐसा माना जाता है।

अपनी निर्भय एवं साहसी वृत्ति के बल पर ही कॅप्टन जेम्स कुक ने लगभग आधी दुनिया की यात्रा की। इस दौरान दुनिया के लिए अज्ञात रहनेवाले अनेक नये स्थानों को नाम देकर लोगों में उनकी पहचान बनाई। कुक के द्वारा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दिखाये गए उनके धैर्य का आदर्श आज भी दुनियाभर के समुद्रयात्रियों के सामने गर्व के साथ प्रस्तुत किया जाता है।

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