बॉलपॉईंट का जन्मदाता- लासझ्लो बिरो (जन्म – १८९९, मृत्यु – १९८५)

‘जिस व्यक्ति के पास समय पर कलम उपलब्ध न हो, उस व्यक्ति के समान मूर्ख और कौन हो सकता है। और जिसके पास होती है, उसके समान होशियार और कोई नहीं होता।’ इस आशय से संबंधित मुहावरा अंग्रेजी में अकसर उपयोग में लाया जाता है। अर्थात् जिस व्यक्ति के पास उपयोग में लायी जानेवाली वस्तु समय पर यदि उपलब्ध न हो उसे मूर्ख माना जाता है। इसके लिए ही इस मुहावरे में कलम का उल्लेख किया गया है। इसी के आधार पर मनुष्य के दैनंदिन जीवन में उपयोग में लाये जानेवाले पेन का महत्त्व स्पष्ट होता है।

मनुष्य ने विभिन्न क्षेत्रों में आमूलाग्र विकास किया है। इसमें लिखा-पढ़ी का क्षेत्र भी अपवाद नहीं है। शिलालेख, धातु पर लिखे जाने से लेकर आगे चलकर लेखनों के साधनों का भी काफ़ी विकास हुआ है। अब लिखने के स्थान पर कम्प्युटर की सहायता से सीधे प्रिटींग करने की पद्धति प्रचलित हो रही है। फ़िर भी इस दौरान लिखने के साधनों को भी उतना ही महत्त्व प्राप्त हुआ है।

इन साधनों का उपयोग करके ही लेखन की वस्तुओं को अधिक से अधिक बेहतर बनाने की कोशिशें की जा रही हैं। कइन प्रयत्नों में सफ़लता प्राप्त करनेवालों के नामों में सहभागी रहने वाले वैज्ञानिकों में से एक हैं, ‘लासझ्लो बिरो’।

आज के जमाने में आधुनिक यांत्रिक ज्ञान की सहायता से कलम के साथ ही टॉर्च, केलेंडर, एक से एक अनेक रंग-बिरंगी स्याही वाली कलमें, डेकोरेटिल कलमें ग्राहकों को आकर्षित करती रहती हैं।

सबसे पहले बॉलपेन की रचना करने की आवश्यकता है, ऐसा एक हंगेरियन नागरिक को प्रतीत हुआ था। १९ दिसंबर, १८९९ के दिन बुड़ापेस्ट में जन्म लेनेवाले इस नागरिक का नाम था – लासझ्लो बिरो।

लासझ्लो बिरो

वैद्यकीय अभ्यासक्रम की ओर मुड़नेवाले बिरो के लिए उपाधि प्राप्त करने तक की शिक्षा पूरी कर लेना संभव नहीं हो सका। इसके पश्‍चात् संमोहन क्षेत्र में भी उन्हें निराशा प्राप्त हुई। फिर आगे की शिक्षा न लेकर उन्होंने एक तेल कंपनी में काम करने की शुरुआत की। परंतु काम में भी उनका मन न लगने के कारण उन्होंने अपना रुख पत्रकारिता की ओर कर दिया। भाई के साथ मिलकर उन्होंने पत्रकारिता में अपनी कार्यकारी एक नये सिरे से आरंभ कर दी।

दिनभर के परिश्रम के पश्‍चात् घर लौटने पर बिरो ने एक जर्नल शुरू किया। इस जर्नल को लिखते समय कलम की स्याही की समस्या के कारण उन्हें निरंतर रुकावटों का सामना करना पड़ रहा था। इन्हीं अड़चनों के कारण ऊब चुके बिरो पर ऐसे-ऐसे संकट आ रहे थे, जिससे कि उन्हें अपना लेखन कार्य रोक देना पड़ा। इसी दौरान उनके मन में यह विचार उठने लगा कि स्याही वाली कलम के बजाय किसी और कलम का उपयोग क्या हम कर सकते हैं? इससे संबंधित विचार बिरो के मन में चल रहा था। इसी दौरान अथक लेखनकार्य करने के लिए पेन बनाने की कल्पना बिरो के मस्तिष्क में उत्पन्न हुई।

कागज़ पर लिखते हुए स्याही के कागज़ पर आ जाने तक वह सूख जाती थी और कागज़ भी खराब हो जाता था। इस मुसीबत को टालने के लिए बिरो ने छपाई के लिए उपयोग में लाई जानेवाली स्याही का उपयोग अपने लेखन कार्य के लिए करने का प्रयत्न किया। परन्तु वह प्रयत्न भी असफ़ल रहा। इसके पश्‍चात् कागज़ पर निरंतर लिखा जा सके इसके लिए कलम में स्याही निरंतर रहना जरूरी है, इस विचार को केन्द्र में रखकर, इसी के अनुसार बिरो ने अपना संशोधन कार्य करना आरंभ कर दिया।

इस बार अचानक छपाई के लिए उपयोग में लायी जानेवाली प्रक्रिया की ओर बिरो का ध्यान खींचता चला गया। और इसी पार्श्‍वभूमि पर लेखन हेतु रचना तैयारी करनी चाहिए, ऐसी कल्पना बिरो को सूझी। इसी के अनुसार उन्होंने एक गोलाकार लम्बी लचीली नलीका में स्याही भरकर उस पर बॉल बेरिंग बिठा दिया। इसी बॉल बेरिंग की ही सहायता से स्याही का क्रम लगातार चलता रहता है और इससे लाभ यह हुआ कि इस प्रक्रिया द्वारा कागज़ पर निरंतर लिखा जा सकता है। इस प्रकार की रचना उन्होंने की। बॉल बेरिंग उस कलम में भरी हुई स्याही के पीछे रखी गई थी। इससे होना यह था कि इस बॉल बेरिंग की सहायता से वजन के कारण स्याही का क्रम निरंतर चलते रहने के कारण वह बॉल उसे आगे की ओर ढ़केलता रहेगा। इस तरह से उसमें सुविधा की गई थी।

इस प्रयोग के अनुसार फ़िलहाल प्रचलित बॉलपेन का उदय हुआ है। परन्तु इसके लिए बिरो ने काफ़ी वर्ष इसके संशोधन में गवाएँ हैं। पहली बार ही अस्तित्व में आनेवाली बॉल पॉईंट पेन ने बिलकुल ही कम समय में संपूर्ण विश्‍व में ख्याति प्राप्त कर ली है। बॉलपेन को लोकप्रियता प्राप्त होने से पहले ही १९४३ में बिरो ने अर्जेंटिना में प्रयाण कर लिया। वहीं पर उन्होंने बॉलपेन के संशोधन का पेटंट प्राप्त किया। इसके अन्तर्गत आगे चलकर काफ़ी सारे संशोधन किए गये। इसके साथ ही विभिन्न प्रकार की पेन भी कालान्तर में बाजारों में उपलब्ध हो गईं। इसी दरमियान बॉलपेन में उपयोग में लायी जानेवाली स्याही में भी संशोधन करके आमूलाग्र बदलाव लाया गया।

विरो के संशोधन के कारण ही आज लिखा-पढ़ी के लिए बॉल पेन का उपयोग ज़ोर शोर के साथ हो रहा है। इस बॉलपेन की कल्पना को सत्य में उतारने के लिए अनमोल योगदान देनेवाले लासझ्लो बिरो का जन्मदिवस अर्जेटिना में ‘इंव्हेंन्टर डे’ के रूप में माना जाता है।

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