माननीय डिजेल

पणडुब्बी, विशाल जहाज़, रेल्वे इंजन, विद्युतनिर्मिति केन्द्र, बोझिल सामग्री को ढोनेवाले ट्रक, चार पहिये वाले छोटे बड़े वाहन इत्यादि को चलाने के लिए इंधन के रूप में डिजेल का उपयोग होता है। साधारणत: १८९७ के पश्‍चात् यंत्रशक्ति के लिए डिजेल का उपयोग करना शुरू हुआ। यंत्र को कार्यान्वित करने के लिए डिजेल का उपयोग करने के अनुसन्धान-क्षेत्र में रूडॉल्फ डिजेल एक संशोधनकर्ता के रूप में प्रसिद्ध हुए।

रूडॉल्फ डिजेलबावारीया से पॅरिस में दाखिल होनेवाले परिवार में १८५८ में रुडॉल्फ का विशेष आकर्षण तरह तरह के इंजन विकसित करने की ओर था। अनेक प्रकार के औष्णिक इंजन का संशोधन करने के साथ साथ अन्य ऊर्जा पर चलनेवाले इंजन विकसित करने का श्रेय भी रुडॉल्फ डिजेल ने प्राप्त किया। विभिन्न प्रकार के इंजनों की रूपरेखा स्वयं ही तैयार करने के शौक के कारण रुडॉल्फ ने १८९७ में पहली बार ही डिजेल इंजन बनाया। बगैर किसी चिंगारी के ही उन्होंने इंजन के आरंभ करने की संभावना सिद्ध की। यह सिद्ध करने से पूर्व ही रुडॉल्फ द्वारा विकसित किए गए डिजेल इंजन का एक बड़ा विस्फोट हुआ था। इस विस्फोट में रुडॉल्फ बाल-बाल बच गए, परन्तु इस घटना के पश्‍चात् उनके ही नाम पर नयी सफलता दर्ज करवायी गयी। उनके द्वारा तैयार किए गए इंजन में ही डिजेल का पूर्णत: ज्वलन होता था। स्वयं के द्वारा विकसित किए गए इंजन का पेटंट प्राप्त करने हेतु उन्होंने अधिक कोशिशें शुरु कर दीं। १८९८ में उन्हें यह पेटंट मिल गया।

इससे पहले ऑग्झंबर्ग में १० अगस्त, १८९३ को रुडॉल्फ ने अपने डिजेल इंजन का प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किया। रुडॉल्फ डिजेल अरबपति बन गए। इसी दौरान रुडॉल्फ के डिजेल इंजन का उपयोग वाहनों के साथ साथ जलसंचय-वहन-संस्थान, खानों में तेल के कुँए आदि में भी किया जाने लगा। आज की परिस्थिति में डिजेल इंजन में आमूलाग्र बदलाव आ गया है, परन्तु इन सभी इंजनों का मूल आधार रुडॉल्फ का संशोधन ही रहा।

इंजन का ढ़ाँचा तैयार करके उसकी निर्मिति करते समय प्रमुख तौर पर रुडॉल्फ ने तीन मुद्दों को कायम रखा। नैसर्गिक एवं भौतिक नियमों पर आधारित समाजोपयोगी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही रुडॉल्फ ने अपने इंजन निर्माण का कार्यक्रम निरंतर शुरू रखा।

म्युनिक पॉलिटेक्निक में ग्रॅज्युएशन करनेवाले रुडॉल्फ डिजेल की संशोधनात्मक वृत्ति के कारण ही डिजेल जैसे वाजिब दाम में उपलब्ध होने वाले ईंधन के आधार पर वाहन अथवा यंत्र चलाना संभव हो सका। यहीं से आज के यातायात के अति-आधुनिक साधनों का विकास हुआ। इस विकास का सारा श्रेय जिन्हें जाता है, उन रुडॉल्फ डिजेल ने ३० सितंबर, १९१३ के दिन इस दुनिया से विदा ले ली।

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