सर जोसेफ बँक्स (१७४३- १८२०)

यूरोप के अनेक देश एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका खंड में उपनिवेश स्थापना करने के उद्देश्य से शोध मुहिम निकालते थे। इस मोहिम की पूर्व तैयारी करने के लिए उस प्रदेश के जानवर, वनस्पतियाँ, मनुष्य इनके बारे में विभिन्न प्रकार की जानकारी इकट्ठा की जाती थी। इस काम के लिए भेजे जानेवाले विशेषज्ञों में जीवशास्त्रज्ञों का समावेश किया जाता था। अठ्ठारहवें शतक के इन शास्त्रज्ञों में साहसी ब्रिटीश जीवशास्त्रज्ञ ‘सर जोसेफ़ बॅक्स’ इनका उल्लेख प्रमुख रूप से करना चाहिए।

जोसेफ़ बॅक्स

लंडन के अमीर ज़मीनदार परिवार में जोसेफ़ बॅक्स का सन् १७४३ में जन्म हुआ। निसर्ग के इतिहास को जानने की रुचि बचपन से ही उन्हें थी। वनस्पतिशास्त्र की ओर उनका अधिक झुकाव था। शालेय जीवनकाल में ही उन्हें वनस्पतियाँ इकठ्ठा करने में रुचि निर्माण हो गई थी। इटन में उनकी स्कूली पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने ऑक्सफ़र्ड में वनस्पतिशास्त्र का अध्ययन किया।

सन् १७६० वर्ष की शुरुवात से ही उन्होंने अपने पसंदीदा क्षेत्र की ओर संपूर्ण ध्यान केन्द्रित करने का निश्‍चय किया। ऑक्सफ़र्ड के तीन वर्ष के शिक्षण के बाद जोसेफ़ ने ‘नायगर’ नामक जहाज़ पर निसर्ग वैज्ञानिक के रूप में काम किया। न्यु फ़ाऊंडलंड और लॅब्रोडोर के किनारे के पास छह-सात महीने निसर्ग का निरीक्षण करने का परिश्रम उन्होंने किया। वनस्पति, जानवर और मनुष्यों का अभ्यास करके उनका सांख्यिकीय अध्ययन किया। इंग्लैड और स्पेन के वनस्पति-जगत् का अध्ययन करके उसके बारे में उन्होंने जानकारी प्रसिद्ध की।

ब्रिटीश नौदल और रॉयल सोसायटी ऑफ़ लंडन ने मध्यपूर्व की ओर एक मोहिम शुरु की। ‘द इंडेव्हर’ जहाज का नेतृत्व कॅप्टन जेम्स कुक कर रहे थे। जोसेफ़ बँक्स की इस जहाज पर एक उत्कृष्ट जीवशास्त्रीय प्रयोगशाला थी। उनके साथ और भी कई जीवशास्त्रज्ञ और तंत्रज्ञ थे। किसी अज्ञात भूखंड पर जाकर संशोधन करने का अवसर यह वैज्ञानिक के लिए किसी दूसरे ग्रह पर जाने के अवसर के समान था। जेम्स कुक ने न्यूझिलैन्ड, ताहिती, न्यु गिनी इन प्रदेशों का सर्वेक्षण किया। विशाल समुद्री प्रवास के बाद ऑस्ट्रेलिया के पूर्व किनारे पर जहाज पहुँचा।

बहुत बड़े पैमाने पर तरह तरह की वनस्पतियाँ इस नौका पर के संशोधकों को बंदरगाह में प्राप्त हुई। उस भाग को ‘बॉटनी बे’ ऐसा नाम दिया। इस इकठ्ठा की गई सामग्री को सुरक्षित रखने के लिए विशेष रूप से उसकी निगरानी करना आवश्यक है, ऐसा जोसेफ़ को लगा। और उनके द्वारा किए गए जानवर एवं वनस्पति संबंधित अध्ययन यह वैज्ञानिक दृष्टि से उत्कृष्ट है, इस बात को वैज्ञानिकों ने मान लिया। अधिकांश रूप से इकठ्ठा किए इन नमूनों में से कुछ शुष्क वनस्पतियों के नमूने में साधारणत: ११० नये प्रकार थे। लगभग १३०० प्राणि/वनस्पति स्वतंत्र वर्ग के थे। सन् १७७१ वर्ष में वे एंडेव्हर बंदरगाह पर वापस आए। जोसेफ़ बँक, कुक और निसर्ग वैज्ञानिक सोलँडर इनके द्वारा दर्ज की गई बातें, जानकारी और सारे चित्र ब्रिटीश म्युझियम को सुपूर्द की गई।

सन् १७७३ वर्ष में तीसरे जॉर्ज ने वैज्ञानिक सलाहगार के रूप में जोसेफ़ की नियुक्ति की। वैसे ही क्यू (Kew) के रॉयल बोटॅनिकल गार्डन के प्रमुख पद को भी उन्हें सौंपा गया। ब्रिटीश साम्राज्य के सभी ओर से विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ इकठ्ठा करके इस गार्डन में लाई गई। सारे ब्रिटीश जहाजों को जोसेफ़ बँक्स के कहने के अनुसार नये प्रदेश की वनस्पतियों को यहाँ लाने की सूचना दी गई। इस गार्डन में वनस्पतियों को प्रायोगिक तत्त्व पर लगाने की व्यवस्था की गई।

सन् १८०५ वर्ष में बँक्स ने न्यु साऊथ वेल्स के उपनिवेश में अर्थ-व्यवहार किस तरह चलाना है, इस पर एक योजना का सुझाव दिया। जीवशास्त्र का ज्ञान यह उपनिवेशवादी धोरण के लिए उपयोगी साबित हुआ। नया उपनिवेश बसाते समय वहाँ की फ़सल, सब्ज़ी, फ़ल इत्यादि और वन्य जीवों का शोध लेकर उसके ऊपर संशोधन करने के लिए उन्होंने निश्‍चित योजना बनाई थी। ब्रिटीश साम्राज्य में बँक्स ने अनेक वनस्पति उद्यानों का निर्माण किया। अँट होने इस पोलिश वनस्पतिशास्त्रज्ञ को सन् १७८८ में गुजरात में भेजकर वहाँ की औषधि वनस्पति एवं उच्च दर्जे के रुई के बीजों को इकठ्ठा करके मँगाया गया।

जोसेफ़ बँक्स ‘रॉयल सोसायटी ऑफ़ लंडन’ के इकतालीस वर्ष अध्यक्ष थे। आर्थिक स्थिति से भी संपन्न होने के कारण लंडन के सामाजिक, राजकीय स्तर पर एक प्रभावी व्यक्तित्व के रूप में वे प्रसिद्ध थे।

सर जोसेफ़ बॅँक्स ये नियोजनपूर्वक संशोधन करनेवाले शास्त्रज्ञ थे। कार्य एवं शोध के स्वरूप की आवश्यकता के लिए साहसी सफ़र और बाद में प्रयोग, संशोधन करना ही उनके कार्य की व्याप्ति थी। ब्रिटीश सरकार को उनके गुणों का लाभ देश के साम्राज्य को विस्तार करने में हुआ। ऑस्ट्रेलिया के न्यु साऊथ वेल्स इस उपनिवेश स्थापना उन्हीं के कारण हुई, ऐसा माना जाता है। ब्रिटन और ऑस्ट्रेलिया में उनके अभ्यास एवं संशोधन कार्य का प्रभाव लक्षणीय है।

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