रशियन ईंधन की कमी पर विकल्प के तौर पर यूरोपिय देश कोयले का इस्तेमाल बढ़ाएँगे

बर्लिन/मास्को – रशिया ने यूरोप के प्रमुख देशों की ईंधन आपूर्ति कम करने से इन देशों में ड़र का माहौल फैला है। इस वजह से पिछले महीने तक हरित और अक्षय ऊर्जा के महत्वाकांक्षी नारे लगाने वाले यूरोपिय देशों ने अपना रुख फिर से कोयले की ओर मोड़ दिया है। जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रिया, डेन्मार्क और नेदरलैण्डस्‌ जैसे प्रमुख देशों ने कोयले के बिजली प्रकल्प शुरू करने की गतिविधियाँ शुरू की हैं। इसके लिए दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया से कोयले का आयात बढ़ाया जाएगा और ग्रीस में कोयले की खदानों को फिर से शुरू किया गया है।

पिछले हफ्ते तकनीकी वजह बताकर रशिया ने यूरोप के प्रमुख देश जर्मनी की ईंधन सप्लाई कम की थी। साथ ही फ्रान्स, इटली और ऑस्ट्रिया की कंपनियों ने भी रशिया से हो रही ईंधन वायु की आपूर्ति कम होने के दावे किए थे। इस पृष्ठभूमि पर यूरोप में ईंधनवायु के दर में ६० प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ प्रति हज़ार घनमीटर के लिए डेढ़ हज़ार डॉलर्स तक जा पहुँचे हैं। इसमें अधिक बढ़ोतरी होने की संभावना होने से यूरोपिय अर्थव्यवस्था काफी मुश्‍किल में घिरी है।

यूरोपिय जनता एवं उद्योगक्षेत्र को ईंधन आपूर्ति के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं दिख रहा है और इस कारण यूरोपिय देशों ने आखिर में कोयले का इस्तेमाल करने की तैयारी की है। ‘यह काफी दर्दनाक निर्णय होने के बावजूद फिलहाल इसकी आवश्‍यकता है। अब गतिविधियाँ नहीं की तो साल के अन्त तक राजनीतिक नज़रिये से बंधक बनाए जाने का ड़र है’, इन शब्दों में जर्मनी के वाणिज्यमंत्री रॉबर्ट हैबेक ने कोयले के इस्तेमाल का समर्थन किया।

यूरोपिय देशों द्वारा हो रहे रशियन ईंधन के आयात में कोयले का भी समावेश है। पिछले साल कोयले का आयात करने के लिए यूरोपिय देशों ने रशिया को चार अरब युरो चुकाए थे।

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