‘ब्रेक्झिट’ के बाद महासंघ की एकता कायम रखनें में युरोपीय देश नाक़ाम

ब्रातिस्लाव्हा/रोम, दि. १९ (वृत्तसंस्था) – ‘ब्रेक्झिट’ के फ़ैसले के बाद ब्रिटन की युरोपीय महासंघ से बाहर निकलने की तैयारी शुरू है| उसी समय महासंघ के अन्य सदस्य देशों में से भी नाराज़गी के सूर तीव्र होते दिखाई दे रहे हैं| पिछले हफ्ते स्लोव्हाकिया में, युरोपीय महासंघ की एकता और आगे का सफ़र इन मसलों पर महत्त्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया था|

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लेकिन असल में, इस बैठक के बाद युरोपीय महासंघ में रहनेवाले तीव्र मतभेद सामने आये हैं तथा आनेवाले समय में युरोप में दरार पड़ने के संकेत मिल रहे हैं| स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको ने तो, महासंघ विद्रोह की कगार पर होने की चेतावनी दी है|

पिछले कई हफ्तों से, अलग अलग युरोपीय नेताओं ने दिये बयानों से, ब्रातिस्लावा में हो रही बैठक महासंघ के भविष्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहेगी, ऐसे संकेत दिये जा रहे थे| ब्रिटन के बग़ैर होनेवाली इस बैठक में, महासंघ को एकसाथ रखते हुए, उनकी एकता को और मज़बूत कैसे बनाया जा सकता है, इस विषय में रहनेवाले प्रस्तावों पर बातचीत होनेवाली थी| इसके लिए बैठक में, अगले छः महीनों में महासंघ द्वारा उठाये जा रहें कदमों के सिलसिले में प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया गया था|

लेकिन इस प्रस्ताव में से रक्षा और सुरक्षा इन मसलों पर के सहयोग के अलावा, अन्य मुद्दों पर कुछ सदस्य देशों नें तीव्र नाराज़गी जतायी| इनमें इटली, हंगेरी और स्लोवाकिया शामिल थे| इटली यह महासंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक है| इसलिए इस देश द्वारा नाराज़गी जतायी जाना, यह ग़ौरतलब बात बन गयी है| इटली के प्रधानमंत्री मॅटिओ रेन्झी द्वारा आक्रामक शब्दों में महासंघ की आलोचना की गयी|

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‘बैठक के अंत में प्रकाशित किये गये निवेदन के बारे में मै असंतुष्ट हूँ| बैठक में तयार किये गये निवेदन में किसी भी तरह की चेतना अथवा दूरगामी दृष्टि नहीं है| यदि उसे मंज़ूर ही करना है, तो अन्य देश उनके सोचविचार के अनुसार मंज़ुरी दे सकते हैं| जर्मन चैन्सेलर जब ब्रातिस्लावा बैठक में रहनेवाली चेतना के बारे में बात करती हैं, तब उन्हें असल में क्या कहना है, यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है| यदि चीजें ऐसी ही होती रहीं, तो आगे चलकर ‘ब्रातिस्लावा की चेतना’ कहने के बजाय ‘युरोप का भूत’ ऐसा कहना पड़ेगा’ इन शब्दों में इटली के प्रधानमंत्री ने अपनी नाराज़गी जतायी|

ब्रातिस्लावा में, जहाज पर हुए एक अच्छी सी सफ़र के अलावा हाथ में कुछ नहीं आया और ब्रेक्झिट की वजह से आये संकट के इस तरह जवाब ढूँढ़े नहीं जा सकते, ऐसी चेतावनी भी प्रधानमंत्री रेन्झी ने दी| बैठक जे बाद प्रकाशित किये गये निवेदन में निर्वासित, स्थलांतरण और अर्थव्यवस्था के बारे में ठोस ऐसा कुछ भी नहीं है, ऐसी नाराजगी उन्होंने जतायी है| इटली के बाद हंगेरी ने भी बैठक की कड़ी आलोचना की है|
हंगेरी के प्रधानमंत्री व्हिक्टर ऑर्बन ने, निर्वासितों के मसले पर जर्मन चैन्सेलर द्वारा अपनायी गयी अड़िग भूमिका की आलोचना की| ‘निर्वासितों का स्वागत करने की मर्केल की नीति विनाशकारी और मूर्खताभरी है| उसमें जब तक बदलाव नहीं आता, तब तक युरोप में निर्वासितों की घुसपैंठ चालू ही रहेगी’, ऐसी चेतावनी ऑर्बन ने दी है|

बैठक का आयोजक देश रहे स्लोवाकिया ने भी, युरोपीय महासंघ की बैठक में लिये गये निवेदन पर नाराज़गी जतायी है| ‘युरोप में जो कुछ चल रहा है, वह सदस्य देशों की राजनीतिक व्यवस्था के लिए काफ़ी ख़तरा पैदा करनेवाला है| महासंघ के प्रति सदस्य देशों में काफ़ी नाराज़गी है| इसके आगे, राष्ट्रीय हितसंबंध और युरोप के हितसंबंध इनके बीच सही संतुलन लाना ज़रूरी होगा’, ऐसी सलाह स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको ने दी| महासंघ यदि अपनी नीतियाँ नहीं बदलता, तो सदस्य देशों में से विद्रोह होने का डर है, ऐसी चेतावनी भी उन्होंने दी है|

इटली, हंगेरी और स्लोव्हाकिया जैसे देश नाराज़गी का सूर अलाप रहे हैं; वहीं, जर्मनी और फ्रान्स द्वारा युरोपीय महासंघ की एकता तथा भविष्य के बारे में भरोसा दिलाने की कोशिश की गयी| लेकिन युरोपीय संघ के सदस्य देशों की बढ़ती नाराज़गी को देखते हुए, जर्मनी और फ्रान्स को आनेवाले समय में, एकता के मसले पर काफ़ी विरोध का मुक़ाबला करना पड़ सकता है, ऐसे संकेत विशेषज्ञों द्वारा दिये जा रहे हैं|

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