युरोपीय देश बहुत ही भारी मात्रा में निर्वासितों का स्वीकार कर रहे हैं

दलाई लामा की स्पष्टोक्ति

DalaiLama

‘युरोपीय देश बहुत ही भारी मात्रा में निर्वासितों का स्वीकार कर रहे हैं’, ऐसा तिबेटी नेता तथा बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा है। ‘ये सारे निर्वासित युरोपीय समाज में घुल-मिल जायेंगे, ऐसी उम्मीद रखी नहीं जा सकती। वैसे ही, जर्मनी जैसे देश का ‘अरबीकरण’ होने दिया जा नहीं सकता। जर्मनी ‘जर्मनी’ रहा, तो ही अच्छा है। कुछ समय बाद निर्वासितों को उनके अपने अपने देश में भेजने का ध्येय युरोपीय देशों को अपने सामने रखना चाहिए’, इन स्पष्ट शब्दों में दलाई लामा ने निर्वासितों के प्रश्न पर अपनी भूमिका प्रस्तुत की।

तिबेटी नेता दलाई लामा ने जर्मनी के ‘एफ़एफ़झेड़’ इस दैनिक से की बातचीत के दौरान, युरोप में आ रहे निर्वासितों के मुद्दे पर अपने विचार ज़ाहिर किए। सन २०१५ में युरोपीय देशों ने निर्वासितों का स्वीकार करने की शुरुआत करने के बाद दलाई लामा ने उनके इन प्रयासों की सराहना की थी। लेकिन उसी समय ‘कोई भी देश मर्यादित संख्या में ही अच्छी सुविधाएँ दे सकते हैं, ऐसा भी दलाई लामा ने कहा था।

पिछले सालभर में युरोप में तक़रीबन १८ लाख से भी अधिक निर्वासित दाख़िल हुए होकर, इन निर्वासितों ने युरोपीय देशों के सामने नयीं चुनौतियाँ खड़ी की हैं। युरोपीय समाज में निर्वासितों के मुद्दे को लेकर दरार पड़ी हुई दिखायी दे रही है और निर्वासितों के ख़िलाफ़ असंतोष अधिक से अधिक तीव्र होता चला जा रहा है। ऐसे समय दलाई लामा की भूमिका ग़ौरतलब साबित हो रही है। निर्वासितों की समस्या पर अपनी भूमिका स्पष्ट करते हुए, ‘उन्हें मर्यादित समय तक ही आश्रय देना चाहिए’ ऐसा दलाई लामा ने स्पष्ट किया।

‘निर्वासितों को सहनी पड़नेवालीं कठिनाइयाँ और उनकी सहायता करने की हर एक की ज़िम्मेदारी इन दोनों बातों के प्रति आदर की भावना क़ायम रखकर भी यह कहना होगा कि युरोप में दाख़िल होनेवाले निर्वासितों की संख्या प्रचंड है’ ऐसा लामा ने कहा है। ‘अब युरोपीय देशों को चाहिए कि वे हालातों का जायज़ा लें। वैसा करने पर युरोपीय देशों की समझ में आ जायेगा कि नये से दाख़िल होनेवाले निर्वासित युरोपीय समाज में एकरूप हो नहीं सकते। थोड़े समय के लिए उन्हें आश्रय देने के बाद निर्वासितों को उनके देश भेजकर, उन्हें उनके देशों के पुनर्निर्माण के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए’, ऐसा आवाहन भी तिबेटी धर्मगुरु ने किया।
निर्वासितों के झुंड़ों के मुद्दे को लेकर युरोपीय देशों में तीव्र मतभेद हैं, यह स्पष्ट हुआ है। जर्मनी की चॅन्सेलर अँजेला मर्केल ने पिछले साल निर्वासितों के लिए ‘ओपन डोअर पॉलिसी’ की घोषणा की थी। शुरुआती दौर में कुछ युरोपीय देशों ने इस संकल्पना का समर्थन भी किया था। लेकिन निर्वासितों की संख्या हद से बाहर जा रही है, यह ध्यान में आ जाते ही, अधिकांश देशों ने इसके विरोध में आक्रामक भूमिका अपनाना शुरू किया।

फिलहाल युरोप के अधिकांश देशों ने निर्वासितों को रोकने के लिए मुहिमें हाथ ली होकर, महासंघ ने तुर्की के साथ समझौता भी किया है। लेकिन यह समझौता भी नाक़ाम हो रहा होने के संकेत मिलने के कारण युरोपीय देशों में डर का महौल है। यह समझौता यदि असफल हो जाता है, तो युरोप में पुन: भारी मात्रा में निर्वासितों के झुँड़ आ धमक सकते हैं। जबकि युरोपीय देशों की यंत्रणाएँ, भीतर आ चुके निर्वासितों की समस्याओं को सुलझाने में नाक़ाम साबित हो रही हैं, निर्वासितों के नये झुँड़ युरोप के लिए बड़ा संकट साबित हो सकते हैं।

इस पार्श्वभूमि पर, दलाई लामा द्वारा प्रस्तुत की गयी व्यवहार्य भूमिका निर्वासितों का विरोध करनेवाले युरोपीय नेताओं को राहत देनेवाली साबित हो रही है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.