एज्नार हर्ट्झस्प्रंग

आकाश में विभिन्न प्रकार के सितारे टिमटिमाते हुए दिखाई देते हैं। कुछ तारे बटु स्वरूप में हैं, कुछ विशाल (जायंट), कुछ का तापमान कम है तो कुछ का अधिक है, कुछ तेजस्वी हैं तो कुछ अधिक दिखाई देते हैं। कुछ के रंगों में फर्क है। तारों की ‘जमाती’ का अध्ययन करते समय उनकी जानकारी दर्ज करने के समान जो गुण होते हैं, वे हैं, सितारों की चमक, रंग, आकार एवं वर्णपंक्ति। इन सितारों का वर्गीकरण करने के लिए ‘आभासमान’ श्रेणी संकल्पना सामने आयी। (ज्युअल मैग्निट्युड) केवल निरीक्षणों के आधार पर इस पद्धति में तारों का स्थान निश्‍चित किया जाता है। परन्तु आभा समान होनेवाला स्थान केवल दिखावा ही होता है, इस बात का सहज ही पता चल जाता है। सामान्य तौर हम सोचते हैं कि यदि कोई तारा अतिशय दूर होगा तो वह धुँधला लगेगा, उसी की तुलना में कम तेजस्वी तारा अंतर में पास होने के कारण अधिक तेजस्वी दिखाई देता है। इस विरोधाभास को दूर करने के लिए एज्नार हर्ट्झस्प्रंग इस डॅनिश खगोल-शास्त्रज्ञ ने निरपेक्ष श्रेणी की (अ‍ॅबसोल्युट मैग्निट्युड) कल्पना का सुझाव दिया। इस पद्धति के अनुसार हर एक तारे को १० पार्सेक अंतर पर ले जाने पर उसकी श्रेणी क्या होगी इस बात का निश्‍चिय किया जाता है। १ पार्सेक = ३.२६ प्रकाशवर्ष। निरपेक्ष श्रेणी वाली संकल्पना के कारण तारों के तेज की प्रामाणिकता सिद्ध हो सकी।

एज्नार हर्ट्झस्प्रंगडेन्मार्क के फ्रेड्रिक्सबर्ग में ८ अक्तूबर १८७३ के दिन एज्नार हर्ट्झस्प्रंग का जन्म हुआ। १८९८ में उन्होंने केमिकल इंजिनियरिंग में उपाधि प्राप्त कर ली। अगले दो-तीन वर्ष इसी क्षेत्र में नौकरी का भी उन्होंने स्वीकार किया। परन्तु अधिक वर्षों तक वे इस क्षेत्र में नहीं रहे। नौकरी से इस्तीफा देकर कोपरहेगन के वेधशाला में उन्होंने खगोलशास्त्रीय संशोधन की शुरुआत कर दी। १९०९ में जर्मनी के ग्योहिंजेन वेधशाला में प्राध्यापक के रूप में वे कार्यरत हो गए। १९१९ के पश्‍चात् उन्होंने लायडन वेधशाला के संचालक पद को संभाला।

तारों की निरपेक्ष श्रेणी (प्रत) (दीप्तिस्रोत) एवं तापमान (वर्गवारी) इनका विशेष तौर पर कुछ संबंध होना चाहिए। यह बात सर्वप्रथम एज्नार हर्ट्झस्प्रंग की समझ में आयी। १९०८ में इसी के अनुसार उन्होंने तारों की निरपेक्ष श्रेणी एवं उनके तापमान का आलेख बनाया। यह आलेख जर्मनी के एक फोटोग्राफिक जर्नल में प्रसिद्ध हुआ। समकालीन खगोलशास्त्रज्ञों को उनका यह संशोधन समझ में नहीं आया। १९१३ में हेन्री नॉरिस रसेल नामक अमेरिकन खगोलशास्त्रज्ञ ने हर्ट्झस्प्रंग आलेख के समान ही आलेख इंग्लैड के रॉयल अ‍ॅस्ट्रॉनॉमिकल सोसायटी को पेश किया।

इसी कारण इस आलेख का श्रेय दोनों को ही प्रदान किया गया। यह वैशिष्ट्यपूर्ण आलेख ‘हर्ट्झस्प्रंग-रसेल-डायग्राम’ इस नाम से जाना जाता है। (एच.आर.डायग्राम, एच.आर.डी. अथवा कलर मैग्निट्युड डायग्राम के नाम से भी जाना जाता है।)

एच. आर. रेखाचित्र में विभिन्न आकार के एवं रंगों के तारे दर्शाये गए हैं। सूर्य यह तारा प्रथम अनुक्रमांक पर है। इसी आलेख में ऊपर दिए गए बायें कोने से नीचेवाले दायें कोने तक जानेवाली वक्र रेखाओं के आसपास अनेक तारों के होने के बारे में हमें पता चलता है। इसी स्रोत में मेन सिक्वेन्स स्टार्स (कम से लेकर मध्यम वर्ग के स्टार्स) के नाम हैं। सूर्य भी इसी श्रेणी से संबंधित है। इस रेखा के ऊपर दायी ओर के क्षेत्र के तारों को रेड जायंट्स (मैच्युअर स्टार्स) यह नाम हर्ट्झस्प्रंगने प्रदान किया; और वक्ररेखा के नीचे होनेवाले तारों की श्रेणी को उन्होंने ‘व्हाईट ड्वार्फ’ (श्‍वेतबटु डेड स्टार्स) कहा गया है।

मान लो किसी तारों के समूह का अंतर हमें ढूँढ़ना हैं और तारों के समूह की निरपेक्ष श्रेणी का पता हमें नहीं हैं। तब भी अभिव्यक्त श्रेणी की गणना संभव है।

ऐसे में ऐसे तारों के एच-आर रेखा चित्रों के लिए अभिव्यक्त श्रेणी का उपयोग करके एक रेखाचित्र बनाया जाता है। यदि निरपेक्ष श्रेणी की जानकारी हमें है तो इसके अनुसार भी हम तारों की श्रेणी के अंतर की गणना कर सकते हैं। यदि ये रेखाचित्र हम पारदर्शक कागज पर बनातें हैं तो इसे एक पर एक रखकर प्रमुख अनुक्रम भाग एक ही स्थान पर लाकर बना सकते हैं।

इस प्रकार का उपयोग करके हजारों पार्सेक तक के अंतर की गणना हम कर सकते हैं। एच-आर रेखाचित्र निकाला जा सके इतने तारे तो कम से कम उस समूह में होने चाहिए। अकेले, दुकेले तारे के लिए इस पद्धति का उपयोग नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार से तारों की जीवनगाथा लिखने के लिए अथवा तारों का विकास कम कैसा होता है। इस बात का निश्‍चय करने के लिए हर्ट्झस्प्रंग-रसेल आलेख यह अत्यन्त उपयोगी साबित होता है।

इस संशोधन के अतिरिक्त दो अश्‍नों की खोज करने का कार्य भी एज्नार हर्ट्झस्प्रंग ने किया।
१) १६२७ इव्हार (र्खींरी) – २४ सितंबर १९२९
२) १७०२ कलाहारी – ७ जुलाई १९२४

रॉयल अ‍ॅस्ट्रॉनॉमिकल सोसायटी की ओर से १९२९ में उन्हें गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। १९३७ में ब्रुस मेडलने उन्हें सम्मानित किया गया।

१९४५ में लायडेन वेधशाला के संचालक पद से वे निवृत्त हो गए एवं डेनमार्क में लौट आये। २१ अक्तूबर १९६७ को उनका निधन हो गया।

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