विल्यम मेयो और उनका परिवार भाग – १

जीवनभर अपनी मेहनत, अपने परिवार की कमाई दूसरों के क्षेमकल्याण हेतु उपयोग में लाकर इस धरती पर स्वर्ग का निर्माण करनेवाले थे, डॉ. विल्यम मेयो। उनके द्वारा लगाए गए एक छोटे से पौधे ने आज विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लिया है।

डॉ. विल्यम

इंग्लैंड में ‘इक्कल्स’ नामक गाँव में ३१ मई १८१९ के दिन डॉ.विल्यम का जन्म हुआ था। जॉन डाल्टन के कार्य का उनके मन पर काफी गहरा असर हुआ। आगे चलकर वैद्यकशास्त्र का अध्ययन करके १८४५ में विल्यम ने न्यूयॉर्क के बेलेव्ह्युक हॉस्पिटल में औषधि विक्रेता का काम किया। आगे चलकर इंडियाना परगने में हॉल ऑफ फॅशन इस नाम से एक दर्जी की दुकान खोल दी। वैद्यकशास्त्र के साथ-साथ यह ज्ञान भी उन्होंने प्राप्त कर लिया था। कर्तन एवं सिलाई-बुनाई ये समान बातें दोनों ही व्यवसायों में थीं। इस बात का ध्यान रखते हुए विल्यम ने इंडियाना मेडिकल कॉलेज से १६ सप्ताह के एक कोर्स को पूरा करने के लिए वहाँ पर प्रवेश प्राप्त कर लिया।

१८५० में उन्हें अमरीका की वैद्यकीय उपाधि प्राप्त हो गई। एक वर्ष पश्‍चात् विल्यम लुई राईट नामक महिला के साथ विवाह बद्ध हो गए। अपने पति किसी भी एक स्थान पर अधिक समय तक न टिकनेवाले अवलिया हैं, इस बात का अहसास उन्हें हो गया था। इसी लिए स्वयं के उदर-निर्वाह का व्यवसाय उन्होंने कायम रखा था। मध्यकालीन समय में विल्यम मलेरिया के बुखार से त्रस्त होकर भ्रमण करते-करते मिनेसोटा पहुँच गए। वहाँ का मौसम काफी अच्छा था, वहाँ पर बीमरी का नामोनिशान तक नहीं था। विल्यम ने वहीं पर घर बनाकर अपने परिवार सहित वास्तव्य करने का निर्णय ले लिया। उत्पाद क्षमता बढ़ाने हेतु वे वैद्यकीय व्यवसायसहित खेती-बाड़ी का काम करते थे, मिनेसोटा नदी में एक बार सर्विस जहाज चलाते थे, एक समाचारपत्र भी चलाते थे; युद्ध में जख्मी होनेवाले सैनिकों की सेवा-शुश्रुषा भी करते थे, इस प्रकार के कार्य वे दोनों पति-पत्नी करते थे। १८६३ में रीचेस्टर में वैद्यकीय निरीक्षणकर्ता के रूप में विल्यम की नियुक्ति वहाँ पर हो गई। विल्यम मेयो उर्फ नाटे डॉक्टर के रूप में उनकी पहचान सर्वत्र होने लगी। शस्त्रक्रिया करनेवाले डॉक्टर के रूप में विल्यम मेयो लोगों में प्रसिद्ध हो गए।

विल्यम (ज्युनिअर) एवं चार्लस इन दोनों बच्चों का अपने पिता के कार्य में सम्मिलित होना यह उनके माता-पिता के प्रोत्साहन से शुरु हो चुका था। ऐसे ही किसी स्थान पर विजिट के लिए जाते समय उनका एक बेटा बग्गी चलता तो दूसरा उनकी मेडिकल बैग का ख्याल रखता था। इन बच्चों की माँ को खगोलशास्त्र पसंद था, उसी तरह वनस्पतिशास्त्र का भी उन्हें ज्ञान था। घर के दिवानखाने में शोभा देने वालीं वस्तुओं के बजाय, छत तक ऊँची-ऊँची पुस्तकों की थहें लगाई हुई थीं। उसी तरह घर में एक तीन फीट लंबी दूरबीन भी थी। उनके दोनों बच्चों का बचपन एवं उनका अपना वैद्यकीय विश्‍व इनमें भली-भाँति रंग चुका था।

पिता को यदि शवविच्छेद के लिए बुलाया जाता तो जुनियर विल्यम उनके साथ चला जाता और उस विच्छेदित शव को सिलाने का काम पूरा कर वह भी लौट आता तो कभी ऑपरेशन के वक्त वह अपने पिता के साथ सहायक के रूप में काम करता था। डॉ. विल्यम मेयो का स्त्री बीजांड़ों से जुडे ऑपरेशन का हुनर नवाज़ने लायक हुआ करता था। एक बार ऐसा ही कुछ ऑपरेशन करते समय अ‍ॅनेस्थेसिस्ट को चक्कर आ गई, ऐसे में उनके छोटे बेटे चार्ली ने उनका स्थान ग्रहण कर, उस समय उपयोग में लाये जानेवाले अल्कोहल, क्लोरोफॉर्म एवं इथर इन का एसीई मिक्स्चर बनाकर उसका उपयोग किया। चार्ली ने अपनी उम्र के बारहवें वर्ष ही उस अ‍ॅनेस्थेसिस्ट की ज़िम्मेदारी अच्छे से निभायी। उस ज़माने में कायदे-कानून आदि के बंधन का नियम भिन्न था, इसलिए इस बात को किसी ने आपत्तिजनक नहीं माना। विल्यम मेयो आस-पास के प्रदेशों में होनेवालीं वैद्यकीय परिषदों, व्याख्यानों आदि में अपने बच्चों को साथ में ले जाते थे। गर्मी की छुट्टियों आदि में औषधियों के दुकानों में, फार्मसी आदि में औषधि बनानेवालों की मदद करने उन्हें भेजते थे। वैद्यकीय सेवातत्त्व तथा नीतिमूल्यों की पहचान उन बच्चों में अपने-आप हो जाती थी।

१८८३ में एक समुद्री तूफान के कारण रोयेस्टर में काफी हानि हुई। मेयो का दवाखाना भी तितर-बितर हो गया। विल्यम मेयो ने ऐसे में अस्थायी उपचार केंद्र चर्च में शुरू कर दिया। आगे चलकर उम्र के ७० वें वर्ष में उन्होंने सेंट मेरी अस्पताल का निर्माण किया। कई लोगों के मतानुसार इस अस्पताल का कोई भविष्य नहीं था। परन्तु खुशकिस्मती से दुनिया के वैद्यकीय विश्‍व में ये एक असली हिरा साबित हुआ। आज अमरिका के वैद्यकीय विश्‍व में रोचेस्टर का, मेयो का नाम गौरव के साथ लिया जाता है।

१९११ में डॉक्टर विल्यम वोरॅल मेयो का देहांत हो गया। पिता के देहांत के पश्‍चात् उनके दोनों बेटों ने अर्थात् डॉक्टर विल्यम (ज्युनिअर) एवं डॉक्टर चार्ली ने श्रद्धांजलि अर्पण करते समय ये उद्गार प्रकट किए कि हमें प्राप्त होनेवाली सबसे अधिक बड़ी एवं महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमें ऐसे माता-पिता प्राप्त हुए।

अगले लेख में हम चर्चा करेंगे ‘मेयोक्लिनिक’ के संबंध में।

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