इगॉर सिकॉर्स्कि (१८८९-१९७२)

‘हेलिकॉप्टर’ … ‘अपने स्थान से ही आकाश में उड़ान भरने वाला विमान’ इगॉर सिकॉर्स्कि के समक्ष खड़े रहने वाले फ्रेंच  संशोधक बिलकुल धक्क से रह गए जैसे किसी भूत का नाम सुनने पर होता है। दोस्त तुम अच्छे विमान तैयार करते हो, इसमें अच्छे अवसर भी हैं। तुम मूर्ख की तरह हेलिकॉप्टर के झंझट में मत पड़ो क्योंकि यह कभी भी संभव हो ही नहीं सकता है।’

shodhak_igor-sikorskiविमान का यंत्र प्राथमिक अवस्था में था उसी समय दुनिया के अनेक तकनीक तज्ञ यह सोचकर कि हम भी विमान बना सकते हैं। इसी धून में अपने-अपने कार्य में लग गए थे। रशिया के कीव्ह शहर में २५  मई, १८८९  के दिन जन्म लेने वाले ‘इगॉर सिकॉर्स्कि’ भी इन्हीं में से एक हैं। इनकी माताजी एक वैद्यकशास्त्री थी एवं पिताजी प्राध्यापक थे ऐसे पालकों के घर जन्म लेने वाले इगॉर ने बाल्यावस्था में अकसर बालसुलभ कल्पना नुसार मुझे भी उड़ते आना चाहिए यह स्वप्न देखा था। मात्र वह स्वप्न, मैं ही स्वयं अपने बुद्धि, कौशल्य एवं परिश्रम के आधार पर पूरा कर सकता हूँ इस बात का अहसास उन्हें भी नहीं था।

वैसे देखा जाये तो मुझे हवाई अभियंता बनना है यह निश्‍चय भी इगॉर ने नहीं किया था। सेंट पीटर्स बर्ग के नौदल महाविद्यालय में शिक्षा हासिल करनेवाले इगॉर को बचपन का स्वप्न वैसे कुछ याद भी नहीं था। मात्र १९०८ में अपने पिता के साथ जर्मनी की यात्रा ने उनके जीवन की दिशा को ही बदल दिया। विमान की खोज़ को कुछ पाँच-छ: वर्ष ही हुए होंगे। विमान के जनक माने जाने वाले ‘राईट बंधु’ पर कौतुक-प्रशंसा का वर्षाव अभी भी चल रहा था। ऐसे में ही एक जर्मन वृत्तपत्र में ‘राईटबंधु’ के स्थान पर ऑरव्हिल राईट का उनके विमान के साथ छुपी हुई तस्वीर पर इगॉर की दृष्टि पड़ी।

कुछ तो जोरदार, दिल को दहला देनेवाली अकल्पित एवं दुनिया से कुछ अलग चीज़ दिखायी देने के कारण इगॉर उसे देखते ही रह गये। इसके पश्‍चात् हक़ीकत में ऐसा क्या चक्र चला यह तो इगॉर भी न जान पाये। परन्तु अगले २४ घंटों में ही उन्होंने अपने पिता के समक्ष उन्हे स्वयं को ‘विमान विद्या’ सीखनी है यह निर्णय जाहिर कर दिया। बात यही खत्म नहीं हुई बल्कि उन्होंने नौदल महाविद्यालयीन शिक्षा छोड़कर तत्काल ही पॅरिस में प्रस्थान किया।

उस समय यूरोप में पॅरिस यह विमान-विद्या एवं उससे संबंधित संशोधन कर्ताओं का मायका ही माना जाता था। ‘एस्टाका’ नामक यह पॅरिस की संस्था विमान विद्या की शिक्षा प्रदान करनेवाली सर्वोच्च संस्था के रुप में जानी-पहचानी जाती थी। इगॉर ने कुछ महीनों तक वहाँ पर शिक्षा हासिल की। इसी शिक्षा के दौरान ही इगॉर के दिमाग में अपनी जगह से आकाश में उड्डान करनेवाले विमान की कल्पना ने जन्म लिया। उन्होंने अपनी इस नयी कल्पना को एस्काटा के संशोधकों के समक्ष प्रस्तुत किया। परन्तु  हकीकत में अच्छे विमान अच्छी गति प्राप्त हुए बगैर उड़ ही नहीं सकेंगे यह विचार भी मन में दृढ़ था। ऐसे में फ्रेंच  संशोधकों ने इगॉर की गिनती अक्षरश: मुर्खों में की।

vought-sik_vs-300मात्र इगॉर ने हिम्मत नहीं हारी। कुछ महीनों के शिक्षा के पश्‍चात् वे रशिया में पुन: लौट आये वह भी २५ अश्वशक्ति की ‘अन्झानी’ इंजिन लेकर ही। इसी इंजिन की सहायता से इगॉर  ने अपने संशोधन कार्य का आरंभ कर दिया। लगभग दो वर्षों तक प्रयोग करने के पश्‍चात् भी यश प्राप्त न होने के कारण इगॉर ने अंत में रशिया के एक यांत्रिक ज्ञान संस्था में अभियंता के रूप में अपना काम आरंभ कर दिया। इस दौरान उन्होंने अपने विमान के प्रति होनेवाले प्रयोग को मात्र जारी रखा।

रशिया के तत्कालिन राजकारण ने इगॉर के विमान विद्या के ज्ञान एवं कौशल्य को जानकर करते हुए उन्हें नयी रचना के विमान विकसित करने का प्रस्ताव दिया। इगॉर द्वारा तैयार किए विमानों का रशियन लश्कर ने स्वीकार किया और प्रथम विश्‍वयुद्ध के दौरान उनका यशस्वी रुप में उपयोग भी किया। परन्तु उसी दौरान होनेवाली रशियन क्रांति ने इगॉर  के भविष्य के प्रति की गई योजना को ठुकरा दिया। अपने यांत्रिक ज्ञान एवं कौशल्य की रशिया में कोई कदर नहीं होगी यह जानकर इगॉर  ने सीधे फ्रांस  की ओर प्रयाण किया मात्र यहाँ पर भी निराशा ही उनके हाथ आयी इसके पश्‍चात् इगॉर ने अमेरिका की ओर प्रयाण किया।

अमेरिका में भी आरंभ में इगॉर को बिलकुल एक प्राध्यापक के रुप में इंजिनियरिंग महाविद्यालय में सिखाने का काम करना पड़ा। मात्र इस महाविद्यालय में विद्यार्थियों ने ही इगॉर को आर्थिक सहायता दी और १९२३   में ‘द सिकॉर्स्कि एअरो इंजिनिअरिंग कॉर्पोरेशन’ की स्थापना हुयी।

इसके पश्‍चात् इगॉर ने मात्र अपना पूरा का पूरा ध्यान विमान के विकास एवं हेलिकॉप्टर के स्वप्न एवं पर ही केन्द्रीत किया। सिकॉर्स्कि द्वारा दो इंजिनों की सहायता से १९२४   में तैयार किया गया यह ‘एस-२९-ए’ नामक विमान यशस्वी साबित हुआ। अमेरिका के विमान औद्योगिक क्षेत्र की अधिकतर कंपनियों ने इस विमान का स्वीकार किया।

इस समय के दौरान इगॉर ने हेलिकॉप्टर के संबंध में सोची हुई सभी कल्पनाओं को संग्रहित कर रखा था। इतना ही नहीं बल्कि कुछ रुपरेखाओं का पेटंट भी अपने पास रखने की विद्यता उन्होंने दिखलाई थी। ‘सीधे एवं ऊपर तक उड्डान करनेवाले, आगे-पिछे सहज ही वेग पकड़ सकनेवाले और उसी समय एक ही स्थान पर स्थिर रह सकनेवाले विमान’ यह इगॉर सिकॉर्स्कि के हेलिकॉप्टर की संकल्पना थी। इस संकल्पना पर आधारित ‘वी-एस-३००’ नामक इस प्रथम हेलिकॉप्टर ने १४ सितंबर, १९३९ के दिन आकाश में यशस्वी उड्डान किया था, और दुनिया के इस ‘हेलिकॉप्टर’ के युग का जन्म हुआ।

इगॉर सिकॉर्स्कि ने इसके पश्‍चात् अपना पूरा जीवन हेलिकॉप्टर एवं उसके विकास इस कार्य में ही व्यतीत किया। युद्ध के साथ-साथ तथा शांतता के समय में भी हेलिकॉप्टर का उपयोग जब आरंभ हुआ उस समय इगॉर सिकॉर्स्कि को अपने इस संशोधन कार्य का सच्चा सुख प्राप्त हुआ। आज द्रुतगति के साथ प्रवास करनेवाले विमान के द्वारा अंतराल का भी प्रवास किया जा सकता है। इस प्रकार के विमान अवकाशयान एवं विमान यांत्रिक तज्ञ इनका संयोग होनेवाले विमान भी विकसित किये गए हैंऔर इस प्रकार की अनेक कोशिशें भी जारी हैं, मात्र नैसर्गिक आपत्ति के दौरान दुर्गम स्थानों से लोगों की जानें बचानी होगी तब हेलिकॉप्टर के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है। यही इगॉर सिकॉर्स्कि की सच्ची सफलता  माननी पड़ेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published.