डॉमनिक् जीन लॅरी (१७६६-१८४२)

अनुभवों से जो सीख लेता है वही मनुष्य है, ऐसा कहा जाता है। आज तृतीय महायुद्ध की शुरुआत हो चुकी है। दो महायुद्धों के अनुभवों से कईं बातों का पता चला है। घायलों का प्रथमोपचार (फर्स्ट एड), जाँच, शुश्रुषा, वर्गीकरण (assessment, on site resuscitation, triage) एवं शास्त्रीय पद्धति के अनुसार वहन करना आदि बातें वैद्यकशास्त्र में समाविष्ट हो गई हैं। Ambulance core आज के इस विकसित देशों में होनेवाली दुर्घटनाओं एवं आकस्मिक वैद्यकशास्त्र का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

डॉमनिक जीन लॅरी

वैद्यकीय शिक्षा की बराबरी का यह सम-वैद्यक अभ्यासक्रम भी है। किसी घायल अथवा रूग्ण व्यक्ति को रूग्णालय में जल्द से जल्द पहुँचाते समय शास्त्रीय पद्धति के अनुसार प्रवास में बगैर किसी तकलीफ़ के, सजग होकर जितना संभव हो सके उतनी रुग्ण की मदद करना यह आज की तारीख में अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। हमारे देश में भी इस प्रकार के दुर्घटना वैद्यक विशेषज्ञों की बहुत आवश्यकता है।

घायल, बीमार व्यक्तियों को उठाकर ले जानेवाली एक काफ़ी पुरानी पद्धति है, जिसमें अनाज आदि रखा जाता है उन बोरियों का समावेश होता है। इसके पश्‍चात् घोड़ा-गाड़ी में इन बोरियों को रखने की व्यवस्था की गई। घोड़े, ऊँट अथवा खच्चर के साथ कपड़े की झोलियाँ अथवा उनके साथ कुर्सियाँ आदि को जोड़कर उनका ही अ‍ॅम्ब्युलन्स के रूप में उपयोग किया जाता था। ग्रीक, रोमन आदि देशों में रुग्णों को उठाकर ले जाने के लिए रथों का उपयोग किया जाता है। “Ambulant fielf hospital’ इस प्रकार का शाब्दिक उल्लेख मेरीयन वेबस्टर डिक्शनरी में दिखाई देता है। इसका सीधा-सादा अर्थ इस प्रकार है ambulant का अर्थ है – चलने की शक्ति न होनेवाला; और अ‍ॅम्ब्युलन्स का अर्थ है – बीमार अथवा घायल व्यक्ति को अस्पताल तक ले जाने वाला एक वाहन।

डॉ. डॉमनिक जीन लॅरी (१७६६- १८४२) नामक फ़्रेन्च सर्जन को (नेपोलियन की विशेष शल्य चिकित्सक) इन घायल लोगों को तत्काल ही वैद्यकीय सेवा उपलब्ध होने की जरूरत का अहसास हुआ। सेना के व्यूह रचना में कुछ बदलाव करके रुग्णवाहिका को आगे लाकर तोपखाने के करीब तैयार रखने का आदेश दिया गया। सर्जनों को प्रत्यक्ष रूप में लड़ाई के मैदान में, युद्ध की सीमा पर आने का अवसर प्राप्त हुआ। रुग्णवाहन को, उसके सुविधानुसार दो पहिएवाली गाड़ी की निर्मिति की गई। और उन्हें उड़ते हुए तोपगोलों के सान्निध्य में स्थान प्राप्त होने के कारण अपने-आप ही उनका नाम भी ‘उड़ती अ‍ॅम्ब्युलेन्सस’ रख दिया गया। डॉ. लॅरी ने डॉ. पर्सी नामक सहकरियों सहित अ‍ॅम्ब्युलन्स सैनिकों का एक गुट बनाकर अलग से ही रख दिया। उनमें शल्यचिकित्सक एवं स्ट्रेचर से लोगों को लाने-ले जाने की मदद करनेवाला विभाग भी उन्होंने तैयार कर दिया।

लॅरी एवं उनकी उस बटालियन के द्वारा तत्परता एवं सावधानीपूर्वक की गयी वैद्यकीय सेवा से नेपोलियन की सेना का मनोबल बढ़ गया।

युद्ध को और साथ ही जख्मी, आपद्ग्रस्तों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए रेल गाडी एवं नावों का भी रुग्णवाहिका के रूप में उपयोग करना पड़ा। आगगाड़ियों में स्टोररूम, औषधियों का भंडार, शस्त्रक्रियागृह एवं रसोईघर का भी इंतज़ाम किया गया। परन्तु इन सब की अपेक्षा उन नावों की भी क्षमता अधिक होती थी। जखमियों को लेकर नावे अ‍ॅटलांटिक महासागर से फ़िलाडेस्फ़िया, वॉशिंग्टन अथवा न्यूयॉर्क की दिशा में प्रवास करते थे। स्नानगृह, रसोईघर, उष्ण/ठंड जल, परिचारिकाओं का निवासस्थान हवादार वॉर्ड, शस्त्रक्रिया के लिए विशेष व्यवस्था की गई होने के कारण पाणी में तैरनेवाला रूग्णालय का स्वरूप उन नावों में दिखाई देता था। अमेरिकन नौसेना की एक नाव ने इस तरह से लगभग २५००० रूग्णों की सेवा की।

१८६४ में Ambulance corps Act मंजूर किया गया। रेडक्रॉस की निर्मिति हुई। जिनिव्हा परिषद में सभी राष्ट्रों के जखमियों की शुश्रुषा करने से संबंधित करार किया गया। १८६९ में अ‍ॅम्ब्युलन्स सेवा मिलिट्री के अलावा नागरी जीवन के लिए अत्यावश्यक सेवा शुरू की गई। न्यूयॉर्क शहर के बोलेव्ह्यु अस्पताल में प्रशिक्षित परिचारिका विशेषज्ञ, जीवनरक्षक औषधियाँ, उपकरण जैसे सुविधानुसार उपयोगी सेवाएँ आरंभ कर दी गई।

१८९९ में अ‍ॅम्ब्युलन्स के रूप में मोटरगाडी आदि का उपयोग शुरू हो गया। सन् १९३७ में सर्वप्रथम वातानुकुलित अ‍ॅम्ब्युलन्स सड़कों पर दौड़ने लगी। मॉडलटी -फ़ोर्ड गाड़ियों ने अ‍ॅम्ब्युलन्स के रूप में हजारों सैनिकों के प्राणों की सुरक्षा करने में मदद की। इसके पश्‍चात् और भी अधिक तेज़ गति के साथ मरीजों को लाने में गरम हवा के गुब्बारों का भी थोड़ा-बहुत उपयोग किया गया। घण्टों का प्रवास मिनटों में होने लगा। रॉयल फ्लाईंग डॉक्टर्स सर्विस सेवा भी शुरू कर दी गई, जो आज भी सुचारु रूप से कार्यरत है।

इगॉर सिकोरस्की नामक इस रूसी वैज्ञानिक ने हैलिकॉप्टर अ‍ॅम्ब्युलन्स की निर्मिति की। दुनियाभर में आज अनेक बड़े-बड़े एवं अत्यानुधिक सेवाएँ देनेवाले अस्पतालों में छतों पर होनेवाले हेलिपॅड पर विराजमान होनेवाले ‘कॉप्टर’ अथवा ‘चॉपर’ आदि का विशेष महत्त्व है।

विज्ञान ने चाहे कितनी भी बाज़ी क्यों न मार ली हो, परन्तु पूर्णत: श्‍वेत रंग की गाड़ी, उलटे अक्षरों में ऊपर लिखे गए नाम, ऊपर जलनेवाली लाईट, रुग्ण के साथ होनेवाले लोगों के मन का भय, टेंशन, पीछे बजनेवाला सायरन हमारे भी दिल को दहलाते हुए आगे बढ़ जाता है। यही है वह अत्यावश्यक प्राणदायिनी अ‍ॅम्ब्युलन्स, डॉ. डॉमनिक जीन लॅरी नामक सर्जन की कल्पना का आविष्कार।

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