मानवनिर्मित हिरों के जनक – ट्रेसी हॉल

‘हिरा है सदा के लिए।’ मन को, खास कर स्त्रियों के मन को आकर्षित करनेवाले विज्ञापनों का दौर तो बढ़ता ही चला जा रहा है। अब तक साबुन, कपड़े आदि लक्झरी के वस्तुओं का विज्ञापन तक तो ठीक था, परन्तु आजकल हिरों की निर्मिति करने वाली और उनके गहने बनाने वाली, बेचने वाली दुकानों और कंपनियों के दर्जन भर विज्ञापन दिखायी देते हैं, आज के दौर में विज्ञापनों का प्रमाण बढ़ रहा है, इससे पता चलता है कि दुर्लभ होनेवाले हिरों की खरीदारी अब जोरदार हो रही है, यह निष्कर्ष गलत साबित नहीं हो सकता है।

हिरों की निर्मिति

मध्यमवर्गीय लोग भी अपनी इच्छा पूर्ण कर सके, ऐसे दरों में भी अब हिरे उपलब्ध करवाने में व्यावसायिकों ने सफलता प्राप्त कर ली है। परन्तु मानवनिर्मित हिरे से हिरे बनाने की प्रक्रिया अब शुरु हो चुकी है और इस क्षेत्र में क्रांति आ गई है ऐसा व्यापारी क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है और यह सत्य साबित कर दिखाने का काम किया है एक अमरिकन फिजिकल केमिस्ट ने।

‘ट्रेसी हॉल’ का जन्म युहाट नामक स्थान पर ओडना गाँव में हुआ। ओडन नामक गाँव में जन्म लेनेवाले इस बच्चे ने हिरा निर्मिति के क्षेत्र को एक नयी पहचान दी। स्कूल शिक्षा के समय अकसर प्रथम क्रमांक के स्थान पर जमे रहनेवाले ट्रेसी ने बचपन में ही जनरल इलेक्ट्रिक क्षेत्र में काम करने का ध्येय निश्‍चित कर लिया था। अपनी कुशाग्र बुद्धिमत्ता की झलक तो ट्रेसी ने बचपन से ही दिखलानी शुरु कर दी थी। ट्रेसी ने बी.एस. की उपाधि हासिल करके साथ ही साथ पदव्युत्तर शिक्षा भी पूरी की।

हिरों की निर्मिति

इसके पश्‍चात् अगले दो वर्षों तक ट्रेसी ने नौदल में कनिष्ठ अधिकारी के रूप में काम किया। पर इसके पश्‍चात् ट्रेसी ने पुन: युटाह विश्‍वविद्यालय में आना पसंद किया और अपनी भौतिक रसायनशास्त्र विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की अपने बचपन के स्वप्न को पूरा करने के लिए ट्रेसी शेनेक्टेडी के जनरल इलेक्ट्रिक रिसर्च लॅबोरेटरी में काम करने लगे। यहाँ पर सिंथेटिक डायमंड अर्थात मानवनिर्मित हिरा तैयार करनेवाले विभाग में वे काम करने लगे। इस प्रकल्प का कोड नाम था, ‘प्रोजेक्ट सुपर प्रेशर’।

इस समूह के द्वारा पहली बार किए गए प्रयोग में हिरा बनाने के लिए २० टन वजन का ऑटोमोबाईल जैक का उपयोग किया गया था। इसे ‘कार्व्हर प्रेस’ नाम दिया गया। उस समय के दौरान कार्बन द्वारा हिरा बनाने का यह पहला ही आधुनिक प्रयोग साबित हुआ। लगातार चार वर्षों तक इस संशोधनकर्ताओं के समूह का काम चलता रहा। लेकिन जैसे-जैसे असफल प्रयोगों की संख्या बढ़ने लगी, उससे दुगुने प्रमाण में संशोधकों का धैर्य टूटने लगा। इसके पश्‍चात् संशोधकों में संघर्ष, विवाद, मनमुटाव आदि बातें शुरु हो गईं। इसी लिए इस समूह के संशोधकों में से हर एक संशोधक ने अपना-अपना मार्ग बदल दिया। असफलता के कारण ट्रेसी ना तो निराश हुए और ना ही उन्होंने फिज़ूल बातों की ओर ध्यान दिया। ट्रेसी का ध्यान अपने ध्येय से कभी नहीं हिला।

हिरों की निर्मिति

सन १९५२ में न्यूयॉर्क से कुछ हिरे अपने प्रयोग में उपयोग में लाने के लिए ट्रेसी ले आये थे। इस बार हिरों की रचना कार्बन से कैसे ही जा सकती है, यह जानने के लिए अथवा निष्कर्ष निकलाने के लिए ट्रेसी ने ‘सीड क्रिस्टल्स’ इन छोटे हिरों की पट्टी का प्रयोग किया। सीड क्रिस्टल ने उनके इस प्रयोग में काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

मानव निर्मित हिरा तैयार करने के लिए ट्रेसी को अनेक अड़चनों का सामना करना पड़ा। परन्तु इस बार ट्रेसी का उद्धार किया, उनके ड्राफ्टिंग क्लासेस ने। ड्राफ्टिंग की कल्पना को प्रत्यक्ष में लाने की कला ट्रेसी को अवगत हुई और मानव निर्मित हिरे बनाने की प्रक्रिया का आरंभ हुआ।

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