डॉ. एम्. जी. के. मेनन

देश के विकास में बहुत बड़े पैमाने पर योगदान देनेवाले वैज्ञानिक

देश के हर एक राज्य का कारोबार चलाने का और संपूर्ण देश की वैज्ञानिक नीति आदि निश्‍चित करने का उत्तरदायित्व उस देश की सरकार पर होता है। इसके लिए प्रागतिक विचारों के केबिनेट मंत्रिमंडल का होना ज़रूरी होता है। देश के वैज्ञानिक विकास का लेखा-जोखा और सरकार को एक वैज्ञानिक सलाहगार के रूप में सलाह देनेवाले व्यक्ति की कार्यक्षमता एवं दृष्टिकोन पर इस देश की वैज्ञानिक प्रगति कैसे होगी यह निश्‍चित होता है। डॉ. मेनन ये ऐसे ही केबिनेट के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहगार के रूप में अपना कार्य पूरा करनेवाले मान्यवर वैज्ञानिकों में से एक संशोधनकर्ता हैं।

डेढ़ सौ वर्ष पराधीनता एवं गुलामी के अंधकार में यह देश डूबा था। विदेशी राज्यकर्ताओं को देश की वैज्ञानिक प्रगति में किसी भी प्रकार की रुचि नहीं थी। इसी लिए उस दौरान वैज्ञानिक सलाहगारों की नियुक्ति होती ही नहीं थी। प्रमुख वैज्ञानिक सलाहगार ही वैज्ञानिक समिति के अध्यक्ष हुआ करते थे। आज इस शास्र की अनेक शाखाएँ एवं उनकी विविध उपशाखाएँ हैं। पदार्थविज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, उपग्रह प्रक्षेपण शास्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, संगणक, आय टी, नॅनो टेक्नॉलॉजी आदि नानाविध क्षेत्र विकसित हो रहे हैं। इसी लिए इस प्रमुख वैज्ञानिक सलाहगार को विविध विज्ञान क्षेत्र में विशेषज्ञ माने जानेवाले संशोधनकर्ता के समन्वय का काम करना पड़ता है और यही काम देश के वैज्ञानिकों का भविष्य तय करता है।

२८ अगस्त १९२८ के दिन जन्मे डॉ. मांबिल्लिकालदिल गोविंद कुमार मेनन ने अर्थात एम.जी.के.मेनन ने १९५३ में ब्रिस्टॉल नामक महाविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

पंडित नेहरू जब प्रधानमंत्री के पद पर आसीन थे उस वक्त नियोजन मंडल के सदस्य के रूप में उन्होंने अपने कार्य का आरंभ किया। ‘टाटा फंडामेंटल रिसर्च इन्स्टिट्यूट’ नामक मुंबई में कार्यरत इस संस्था का संचालक पद उन्होंने सँभाला है। कुछ वर्ष पूर्व इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग क्षेत्र तेज़ी से विकसित हो रहा था। ‘इलेक्ट्रॉनिक कमिशन’ इस सरकारी मंडल के जरिए इनमें होनेवाले उतार-चढ़ावों का निर्णय होता था। इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों, उपग्रहों आदि के विषयों से संबंधित तकनीकी ज्ञान से तत्कालीन भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग का सचिवपद भी डॉ. मेनन के पास था और वे लंडन के रॉयल सोसायटी के सदस्य हैं। इसके साथ ही वे भारत के साथ साथ अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक विज्ञान संस्थाओं के पदाधिकारी हैं। पुणे की ‘महाराष्ट्र विज्ञान अकादमी’ इस संस्था की स्थापना में भी डॉ. मेनन का ही योगदान था।

डॉ. मेनन ये सही मायने में अणुऊर्जा क्षेत्र के संशोधनकर्ता हैं। टाटा फंडामेंटल रिसर्च संस्था में उनके मार्गदर्शन के अनुसार अंतरिक्ष में गुब्बारे (सायन्टिफिक बलून) उड़ाने का एक वैज्ञानिक प्रयोग किया गया। ‘कॉस्मिक रेंज’ इस विषय से संबंधित संशोधन में यह प्रयोग उपयोगी साबित हुआ। भू-चुंबकीय विषुववृत्तीय रेखा के करीब के समुद्री सतह से ऊँचे रहने वाले स्थान पर होनेवाले कॉस्मिक रेज के अध्ययन में उनका महत्त्वपूर्ण सहभाग था। डॉ. मेनन ने आण्विक मिश्रण पद्धति की एक अचूक मापन यंत्रणा विकसित की। विदेशी अणुकणों के गुणों का उन्होंने एक यशस्वी स्पष्टीकरण किया। उसमें मुख्य तौर पर पोटॅशियम के आयसोटोप KII2, K13, K12 यह था।

डॉ. मेनन को आठ महाविद्यालयों ने तथा चेन्नई के आय. आय. टी. ने ‘डॉक्टर ऑफ सायन्स’ नामक सम्मान प्रदान किया है। ‘डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर अ‍ॅवॉर्ड’, ‘खैतान मेमोरियल अ‍ॅवॉर्ड’, ‘केरल राज्य विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान संस्था की ओर से अ‍ॅवॉर्ड’ इन सभी सम्मनों सहित ‘पद्मश्री’, ‘पद्मभूषण’, ‘पद्मविभूषण’ ये सभी भारत सरकार के पद्म पुरस्कार उन्हें प्राप्त हुए हैं।

आज़ादी के बाद के भारत में स्वयं के मूलभत संशोधन कार्यसहित विभिन्न क्षेत्रों के पदों पर कार्यरत रहकर देश के समग्र विकास का ध्येय साध्य करनेवाले वैज्ञानिकों में डॉ. मेनन ये एक सम्माननीय व्यक्तित्त्व हैं।

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