डॅनिअल फॅरनहीट (१६८६-१७३६)

निसर्ग के किसी भी घटक पर आघात होता है तो निसर्ग का सन्तुलन बिगड़ जाता है। निसर्ग का सन्तुलन बिगड़ जाने से ही आज दुनिया भर के तापमान में वृद्धि हो गई हैं। यही बात प्राणि, मनुष्यप्राणि इनके संबंध में भी लागू होती है। दाह, सूजन, गाँठ, इन्फेक्शन इस प्रकार का कोई भी हमला शरीर पर होते ही शरीर उसका प्रतिकार करता है। इस प्रतिकार से ही शरीर के तापमान में वृद्धि होती है। तापमान में होनेवाली वृद्धि अर्थात सब ठीक-ठाक नहीं चल रहा है इस बात की चेतावनी होती है। हाथ को जरा सा भी बदन गरम लगा कि बिलकुल गाँवों तक के घरों में भी विशेष तौर पर उपयोग में लाया जानेवाला उपकरण है ‘थर्मामीटर’।

तापमानपाँच शताब्दी पूर्व उष्णता का मापन करने के लिए किसी भी प्रकार का परिमाण नहीं था। तापमान की जाँच करने के लिए डॉक्टर भी रूग्ण के माथे पर हाथ रखकर निदान करते थे। भारतीय वैद्यक शास्त्रज्ञ नाड़ी की परीक्षा करके निदान करते थे। परन्तु तापमान की जाँच करने के लिए आँकड़ेवाला कोई भी मापक नहीं था।

सोलहवी सदी में मुर्गी के छोटे से अण्डे के समान ‘थर्मास्कोप’ नामक उपकरण का आविष्कार हुआ। ‘थर्म’ अर्थात उष्णता एवं ‘मेट्रम’ अर्थात मापन करना इस प्रकार के दो ग्रीक शब्दों को मिलाकर थर्मामीटर नामक शब्द बना।

आज हम जिससे परिचित हैं वह थर्मामीटर काँच का बनाया गया है। फॅरनहीट अथवा सेल्सियस के आकड़े हमें तापमान का मापन करने में मदद करते हैं। थर्मामीटर के भीतर होनेवाले द्राव तापमान का मापन करने का काम करते हैं।  शरीर के चढ़ते हुए तापमान के कारण द्रावों के अणुरेणु प्रसरण होने लगते हैं। इस प्रसरण होनेवाले थर्मामीटर के गहराई में होनेवाली काँच की नलिका में से द्राव तेज़ी से ऊपर चढ़कर बिलकुल उस विशेष आँकड़े के पास आकर थम जाता है। वही आँकड़ा हमें हमारे शरीर का तापमान दर्शाता है।

थर्मामीटर नामक इस साधन के पीछे अनेक संशोधकों का योगदान है। उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण नाम इस प्रकार हैं – गॅलिलीओ, सँटोरिओ (थर्मोस्कोप को संख्या का परिमाण प्रदान किया), रेने रेमट अ‍ॅडर्स सेल्सियस (१७०१-१७४४) आदि इनके द्वारा बनाया गया थर्मोस्कोप हवा के दबावानुसार होनेवाले बदलाव को दर्शाता है। इसी कारण वह अचूकता में कम साबित हुआ था।

तापमानजर्मन संशोधक डॅनिअल फॅरनहिट का योगदान महत्त्वपूर्ण साबित होता है। एक अमीर व्यापारी के पाँच बच्चों में से यह बड़ा लड़का। उसकी उम्र के पंद्रहवे वर्ष ही माता-पिता की अकस्मात मृत्यु हो गई। व्यवसाय में होनेवाली असफलता के कारण फॅरनहीट डाँझिंग से अ‍ॅमस्टरडॅम में स्थलांतरित हो गए। उनमें व्यापार की अपेक्षा वैज्ञानिक उपकरणों एवं उनकी निर्मिती में अधिक चाह निर्माण हुई। मौसम विभाग का मापन करनेवाले उपकरण, काँच के उपकरण बनाने का विशेष ज्ञान उन्होंने आत्मसात किया। १७०७ के दरमियान उष्णता/तापमान का मापन करने का साधन बनाने पर उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित किया।

१७१४ में उन्होंने पहली बार ही पारे का उपयोग करके थर्मामीटर बनाया। इस मापक  में उपयोग में लाये गए पारे की रासायनिक दृष्टि से शुद्धता अधिक थी। यह पारा काँच के नली में चिपकता नहीं था। एक निश्‍चित स्थिर गति के साथ ऊपर अथवा नीचे जाता था। एकदम कम अथवा एकदम अधिक तापमान दर्शाने में वह यशस्वी हुआ। डॅनिअल ने कुछ मापक निश्‍चित किया। बर्फ एवं नमक इनके मिश्रण से तापमान शून्य अंश, मानवी शरीर का तापमान ९६ अंश साबित हुआ था। इस मापन श्रेणी में पानी के जम जाने का तापमान ३२ फॅरनहीट वहीं पानी के उबलने का २१२ फॅरनहीट साबित हुआ। १७३६ में फॅरनहीट का निधन हो गया। उनके द्वारा बनाया गया थर्मामीटर बिलकुल अचूक साबित हुआ। परन्तु मानवी शरीर का तापमान ९६ के बजाय ९८.६ अंश ग्राह्य मानना शुरू हो गया।

१७४२ में डॅनिअल फॅरनहीट को ब्रिटीश रॉयल सोसायटी का सभासदत्व प्रदान किया गया। सच पूछा जाए तो किसी भी प्रकार का विशेष औपचारिक वैज्ञानिक प्रशिक्षण न होने के बावजूद भी केवल उनके नाम पर एक प्रबंध दर्ज करवा देने पर उन्हें यह सम्मान प्राप्त होना यह एक महत्त्वपूर्ण बात साबित हुई।

पारे के समान चंचलता इस प्रकार के शब्द का उपयोग अकसर किया जाता है। काँच में रहकर भी स्थिर न रहनेवाला, तापमान में होनेवाले फर्क के अनुसार नियमित वेग के साथ प्रसरण प्राप्त करनेवाला, स्वयंका स्वत्व रखनेवाला इस प्रकार के पारे के समान ही रहने वाले डॅनिअल फॅरनहीट को थर्मामीटर के क्षेत्र में एक अटल स्थान प्राप्त हुआ।

विज्ञान के प्रगतिनुसार नये नये प्रकार के थर्मामीटर की निर्मिति हुई। उपयोग में लाये जाने वाले पारे के समान ही इस थर्मामीटर की प्रगति का आलेख भी चढ़ता रहा। जन्म लेने वाले शिशु से लेकर नब्बे, सौ वर्षों के बुजुर्गों तक के जीवन में समय-समय पर साथ निभानेवाला, मददगार रहने वाला, ऐसा है यह थर्मामीटर। डॅनिअल फॅरनहीट की कल्पनाशक्ति से ही इसका जन्म हुआ।

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