युक्रेन तथा खाडी में तनाव की पृष्ठभूमि पर कच्चे तेल की कीमत ९० डॉलर्स प्रति बैरल पर

Crude-Oil-90-dollarदुबई/लंडन – रशिया-युक्रेन समेत खाडी तथा मध्य एशिया में बढते तनाव की पृष्ठभूमि पर, कच्चे तेल की कीमतों ने ९० डॉलर्स प्रति बैरल पर छलांग लगाई है। इससे पहले अक्तूबर २०१४ में कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल ९० डॉलर्स दर्ज हुई थी। पिछले कुछ महीनों से ईंधन की मांग बढ रही है और इस पैमाने पर आपूर्ति बढ नहीं रही है इसलिए कच्चे तेल की कीमतों में बढोतरी हो रही है। अंतरराष्ट्रीय वित्तसंस्थाए तथा अध्ययन मंडलों ने कच्चे तेल की कीमत बहुत जल्द १०० डॉलर्स प्रति बैरल पर पहुंची हुई दिखाई देंगी, ऐसा पूर्वानुमान किया है।

युक्रेन एवं रशिया के बीच तनाव दिनोंदिन अधिक बढता जा रहा है और इसके परिणाम अंतरराष्ट्रीय बाजार पर दिखाई देने लगे हैं। बुधवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों ने लगभग दो प्रतिशत छलांग लगाते हुए ९० डॉलर्स प्रति बैरल तक पहुंची हैं। गुरुवार को सुबह के सत्र में जरासी फिसलन के बाद फिर से एक प्रतिशत की बढोतरी दर्ज करते हुए कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल ९०.८५ डॉलर्स तक पहुंची। अमेरिका के ‘डब्ल्यूटीआय क्रूड’ तेल की कीमतें भी प्रति बैरल ८८ डॉलर्स तक पहुंची हैं। यह कीमतें अक्तूबर २०१४ के बाद के सर्वाधिक कीमतें हैं और यह सात वर्षों में नया उच्चांक साबित हुआ है।

Crude-Oil-90-dollar-01कच्चे तेल में बढती कीमतों की पृष्ठभूमि पर अंतरराष्ट्रीय वित्तसंस्था तथा अध्ययन मंडलों ने यह बढोतरी १०० डॉलर्स तक उछल सकती है, इस ओर ध्यान आकर्षित किया है। अमेरिकी वित्तसंस्था गोल्डमन सैक्स ने इस संदर्भ में पूर्वानुमान किया है और अगले वर्ष के आरम्भ में १०५ डॉलर्स प्रति बैरल तक बढोतरी होने की बात कही है। ’एटलांटिक कौन्सिल ग्लोबल एनर्जी संटर’ ने दावा किया है कि, अगले कुछ दिनों तक कीमतें ८५ डॉलर्स से ऊपर रह सकती हैं। तो ’रायस्टड एनर्जी’ के विश्लेषकों ने १०० डॉलर्स प्रति बैरल कीमत वास्तव में उतर सकती है, इस ओर ध्यान आकर्षित किया है।

कच्चे तेल बढती कीमतों के पीछे रशिया-युक्रेन तनाव के अलावा अन्य कारण भी होने का दावा विश्लेषक कर रहे हैं। युएई पर हौथियों के ड्रोन हमले, तत्पश्चात येमन में संघर्ष की बढती तीव्रता, इराक-तुर्की ईंधन वाहिनी दुर्घटना और नायजेरिया एवं कज़ाकिस्तान में फैली अस्थिरता जैसी बातें भी ईंधन की कीमतें बढाने में सहायक साबित हुई हैं। तो, ’ओपेक’ तथा सहकारी राष्ट्रों ने भले ही कच्चे तेल का उत्पादन बढाने का निर्णय लिया हो फिर भी सारे राष्ट्र अपेक्षित उत्पादन नहीं कर पाए हैं। इसलिए मांग के रहते हुए भे ईंधन की आपूर्ति मर्यादित रही है। इसका प्रभाव अगले कुछ समय तक ईंधन बाजार पर दिखाई देगा, ऐसा दावा विश्लेषक कर हैं।

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