भारत के साथ राजनीतिक बातचीत करने के लिए चीन उत्सुक

नई दिल्ली – इंडोनेशिया में ७ और ८ जुलाई को ‘जी २०’ देशों की बैठक का आयोजन किया गया है। इस बैठक में भारत के विदेशमंत्री ए.जयशंकर और चीन के विदेशमंत्री वैंगई के बीच चर्चा होगी, ऐसी बात हो रही है। दोनों देशों के सीमाविवाद की पृष्ठभूमि पर हो रही यह चर्चा ध्यान आकर्षित कर सकती है। लद्दाख के ‘एलएसी’ पर चीन की गतिविधियाँ काफी खतरनाक होने की खबरें प्राप्त हो रही हैं और चीन ने लद्दाख के क्षेत्र में लड़ाकू विमानों की तैनाती बढ़ाई है। सैन्य स्तर की यह गतिविधियों के साथ ही चीन राजनीतिक स्तर पर अभी भी भारत के सीमा विवाद का तनाव कम करने के लिए पहल करता दिख रहा है।

राजनीतिक बातचीतपिछले हफ्ते हुई ‘जी ७’ की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल थे। भारत के आर्थिक और राजनीतिक स्तर की अहमयित इस बैठक में रेखांकित हुई थी। इसके बाद प्रधानमंत्री ने यूएई का दौरा किया था। इस यात्रा में खाड़ी देशों को महसूस हो रही भारत की अहमियत स्पष्ट तौर पर सामने आयी। यूक्रेन में हो रहे युद्ध की पृष्ठभूमि पर भारत ने पश्चिमी देशों का विरोध ठुकराकर रशिया के खिलाफ होना टाल दिया था। इसके बावजूद भारत को पश्चिमी देशों से मिल रहा रिस्पान्स और खाड़ी देशों के सहयोग के कारण भारत का स्थान अधिक ऊंचा हो रहा है। लेकिन, यूक्रेन युद्ध में रशिया के पक्ष में खड़े हुए चीन को पश्चिमी देशों से ऐसी सहुलियत प्राप्त नहीं हुई है।

रशिया को चीन से प्राप्त हो रहे समर्थन का मुद्दा अमरीका और यूरोपिय देश लगातार उठा रहे हैं। खास तौर पर इसी मुद्दे पर यूरोपिय देशों के चीन के साथ संबंध काफी बिगड़े हैं। इसी दौरान हाँगकाँग, ताइवान और तिब्बत संबंधी चीन की आक्रामक भूमिका और गतिविधियों को अनदेखा करना पश्चिमी देशों के लिए मुश्किल हो रहा है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की वर्चस्ववादी गतिविधियों के विरोध में प्रत्यक्ष कृति करने का अवसर बनने के संकेत देकर ऑस्ट्रेलिया, न्यूझीलैण्ड और जापान ने चीन के खिलाफ अमरीका से सहयोग करने का रणनीतिक निर्णय किया है। चीन का निवेश गले का फंदा होने की सोच पूरे विश्व में फैल रही है, इसकी वजह से अफ्रीकी देशों में भी चीन अप्रिय बना है।

ऐसी स्थिति में रशिया और अन्य चंद देशों के अलावा चीन को किसी भी ज़िम्मेदार देश का समर्थन नहीं है। इसका अहसास होने पर चीन ने भारत के साथ जारी विवाद का हल समझदारी से निकलाने की तैयारी शुरू की है।

लद्दाख के ‘एलएसी’ पर हुए संघर्ष के बाद लगातार भारत के विरोध में जहर उगलने वाले चीन के सरकारी माध्यम भी फिलहाल तीखी भाषा में भारत की आलोचना नहीं कर रहे हैं। बल्कि, भारत के विदेशमंत्री ने यूक्रेन के मुद्दे पर दबाव बना रहे यूरोपिय देशों को दिए मुँहतोड़ जवाब की चीन के सरकारी माध्यमों ने सराहना की थी। इसके ज़रिये चीन भारत को बातचीत के लिए संदेश देता हुआ दिख रहा है। मार्च में भारत के दौरे पर आए हुए चीन के विदेशमंत्री वैंग ई ने सीमा पर जारी तनाव कम करने के लिए बातचीत करने का प्रस्ताव भी रखा था। लेकिन, चीन ने भारत की माँगों के अनुसार अपनी सेना को पीछे हटाए बिना राजनीतिक स्तर पर चर्चा मुमकिन नहीं है, ऐसी भारत की भूमिका है।

सीमा विवाद पर दोनों देशों के सेना अधिकारी चर्चा करेंगे, इससे द्विपक्षीय सहयोग प्रभावित नहीं होना चाहिये, ऐसा निवेदन चीन लगातार कर रहा है। लेकिन आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के लिए सीमा पर सौहार्दता आवश्यक होने का बयान करके भारत चीन की यह माँग खारिज कर रहा है। इंडोनेशिया के बाली में भारत और चीन के विदेशमंत्रियों के बीच चर्चा हुई तब भी भारत अपनी भूमिका में बदलाव नहीं करेगा। यह चर्चा कामयाब करनी हो तो लद्दाख में घुसपैठ करने की मंशा रखनेवाले चीन को अपनी सेना पीछे हटानी पड़ेगी, ऐसे संकेत भारत ने अब तक अपनाई हुई सख्त भूमिका से दिए जा रहे हैं।

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