विश्व के लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा चीन की तानाशाही से – ब्रिटेन के प्रभावी सांसद लॉर्ड एल्टन

लंदन – ‘चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत अपनी ही जनता की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, धार्मिक अधिकार कुचलने की कार्रवाई करके मानव अधिकारों का गंभीर उल्लंघन कर रही है। देश में लोकतंत्र के खिलाफ कम्युनिस्ट हुकूमत ने शुरू की हुई इस कार्रवाई का असर पश्चिमी देशों के लिए भी उतना ही खतरनाक साबित होता है। चीन को सही समय पर रोका नहीं गया तो लोकतंत्र और तानाशाही देशों के बीच संघर्ष शुरू होगा’, ऐसा इशारा ब्रिटेन के प्रभावी सासंद लॉर्ड डेविड एल्टन ने दिया। ब्रिटीश सरकार ने चीन के प्रति अपनाई हुई सौम्य भूमिका पर गुस्सा जताकर एल्टन ने यह इशारा दिया है।

चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत झिंजियांक के उइगरवंशी इस्लामधर्मियों पर काफी अत्याचार कर रही है, ऐसी खबरों के साथ लगाए जा रहे आरोपों का जवाब देने के लिए चीन की सरकार ने हुकूमत के वफादारों का दल झिंजियांग की स्थिति का जायजा लेने हेतु भेजा था। कम्युनिस्ट हुकूमत के इस वफादार दल ने राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग की हुकूमत को क्लीन चिट भी दी थी। चीन की सरकार ने इससे संबंधित रपट जारी करने पर पूरे विश्व में इसकी आलोचना हुई थी। इसके बावजूद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रिषी सुनाक ने चीन के खिलाफ सख्त बयान नहीं किया था।

ब्रिटेन के वरिष्ठ सांसद लॉर्ड डेविड एल्टन ने प्रधानमंत्री सुनाक के चीन संबंधी सौम्य बयान पर गुस्सा व्यक्त किया। चीन द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सिर्फ चुनौती ही नहीं, बल्कि सबसे बड़ा खतरा होने की बात एल्टन ने रेखांकित की। साथ ही ब्रिटेन चीन पर निर्भरता कम करें, ऐसी फटकार भी एल्टन ने लगायी। ब्रिटेन का चीन के व्यापार से घाटा कुल ४० अरब पौण्ड हुआ है और चीन पर निर्भर रहना आनेवाले समय में ब्रिटेन के हित में नहीं होगा, ऐसा इशारा एल्टन ने दिया। वर्तमान यूक्रेन युद्ध में रशियन ईंधन पर निर्भर जर्मनी की स्थिति का दाखिला एल्टन ने दिया।

साथ ही चीन की हुकूमत द्वारा उइगरवंशियों की हत्याओं को भी ब्रिटेन अनदेखा न करे। चीन के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष डेंग ने ने हाँगकाँग को लेकर ‘एक राष्ट्र दो यंत्रणा’ नीति अपनाने का वादा किया था। लेकिन, जिनपिंग की हुकूमत ने हाँकगाँक की स्वतंत्रता छीनी और इससे पहले कभी भी चीन का हिस्सा ना होने वाले ताइवान के साथ भी यही हो सकता है, ऐसी चिंता एल्टन ने व्यक्त की। चीन के राष्ट्राध्यक्ष ने सैन्य कार्रवाई के बलबूते पर ताइवान का विलयन करने की धमकी दी थी, इस पर भी एल्टन ने ध्यान आकर्षित किया। इसकी वजह से चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत की हरकतों पर नजर रखने की ज़रूरत है, ऐसा इशारा एल्टन ने दिया है।

विकसित देश आज भी चीन द्वारा हो रहे मानव अधिकारों के हनन को अनदेखा करते रहे हैं। चीन से प्राप्त होने वाली व्यापारी रियायत और लाभ की वजह से ही विकसित देश मानव अधिकारों का और विस्तारवादी नीति का मुद्दा उठाकर चीन का विरोध करने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन, अब चीन से विकसित देशों के लोकतंत्र को ही खतरा निर्माण हुआ है और अपनी व्यवस्था की रक्षा करने के लिए विकसित देशों के जनप्रतिनिधि कोशिश करने लगे हैं। एल्टन ने अपने देश को चीन के खिलाफ दिया हुआ यह इशारा इन्हीं कोशिशों का हिस्सा है।

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