ब्रिटेन चीन जैसे देश का ‘क्लायंट स्टेट’ ना बने – अमरीका और ब्रिटेन के पूर्व मंत्रियों का इशारा

लंदन/बीजिंग – चीन द्वारा नैसर्गिक साधन संपत्ति एवं ऊर्जा स्रोत पर वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश जारी है और इसे चुनौती देना ज़रूरी है। मौसम के बदलाव जैसे क्षेत्र के अपने उद्देश्‍य प्राप्त करने की होड़ में ब्रिटेन चीन जैसे खतरनाक देश का ‘क्लायंट स्टेट’ बनकर नहीं रह सकता, ऐसी गंभीर चेतावनी अमरीका और ब्रिटेन के पूर्व मंत्रियों ने दी है। एक ब्रिटीश अखबार में लिखे गए लेख में अमरीका के रॉबर्ट मैक्‌फार्लेन और ब्रिटेन के लिआम फॉक्स ने चीन के बढ़ते प्रभाव की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

‘क्लायंट स्टेट’बीते दो वर्षों से चीन और पश्‍चिमी देशों के बीच अलग अलग मुद्दों पर विवाद हो रहा है और दोनों ओर तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। ‘५ जी’ तकनीक, साउथ चायना सी, हाँगकाँग, उइगरवंशी, जासूसी, सायबर हमले, कोरोना की महामारी जैसे मुद्दों पर पश्‍चिमी देश चीन की शासक हुकूमत को लक्ष्य कर रहे हैं। यह करने के साथ ही चीन आर्थिक बल पर पश्‍चिमी देशों में बढ़ा रहे प्रभाव का मुद्दा भी लगातार सामने आ रहा है। अमरीका और यूरोप के कई संवेदनशील क्षेत्र एवं शीर्ष कंपनियों में चीन के निवेश और इसके असर भी सामने आ रहे हैं।

इस पृष्ठभूमि पर रॉबर्ट मैक्‌फार्लेन और लिआम फॉक्स जैसे पूर्व वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा चीन के खतरे की ओर ध्यान आकर्षित करना अहमियत रखता है। रॉबर्ट मैक्‌फार्लेन अमरीका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं। लिआम फॉक्स ने ब्रिटेन के रक्षा एवं व्यापारमंत्री के तौर पर ज़िम्मेदारी संभाली है। अपने लेख में उन्होंने चीन ने अहम क्षेत्रों में किए निवेश और इसके संभावित परिणामों का अहसास कराया है। चीन, विश्‍व की दूसरे क्रमांक की अर्थव्यवस्था है और इसके असली एजंड़ा की ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अच्छी तरह से ध्यान देना होगा, यह इशारा ‘मैक्‌फार्लेन-फॉक्स’ ने दिया है।

‘क्लायंट स्टेट’काँगो जैसे देश के कोबाल्ट खनिज के ६० प्रतिशत भंड़ार पर चीन का नियंत्रण है। चिली के लिथियम के खदानों पर भी चीन ने कब्ज़ा किया हुआ है। विश्‍वभर के ९६ प्रमुख बंदरगाहों पर फिलहाल चीन का कब्ज़ा है। इनमें एशिया और अफ्रीका समेत यूरोप के बंदरगाहों का भी समावेश है। ‘बेल्ट ऐण्ड रोड़’ जैसी योजना से चीन अपने परिधि में आनेवाले स्थानों की सूचि बढ़ाता जा रहा है, इस ओर अमरीका और ब्रिटेन के पूर्व मंत्रियों ने ध्यान आकर्षित किया।

‘चीन जैसे देश का खतरा तेज़ी से सामने आकर जागतिक व्यवस्था पर अपनी पकड़ बना रहा था। फिर भी शीतयुद्ध के बाद पश्‍चिमी देश ढ़ीले पड़े हैं। राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने वर्ष २०१३ में सूत्र अपने हाथों में लेने के बाद ‘अनरिस्ट्रिक्टेड वॉरफेअर’ जैसी नीति का प्रयोग शुरू किया। शिकारी अर्थनीति के माध्यम से चीन ने अन्य देशों पर प्रभाव ड़ालना शुरू किया’, यह दावा ‘मैक्‌फार्लेन-फॉक्स’ ने किया।

शीतयुद्ध के असर सामने आने के बाद भी चीन के शी जिनपिंग की तानाशाही हुकूमत की भूख खत्म नहीं हुई हैं। उनका मानव अधिकारों का उल्लंघन करना लगातार जारी है। खोए हुए इलाके दोबारा प्राप्त करने के लिए कोशिश जारी है। जिनपिंग किसी सम्राट की तरह चीन का साम्राज्य खड़ा करने की महत्वाकांक्षा रखते हैं, इस ओर भी अमरिकी और ब्रिटेन के अफसरों ने ध्यान आकर्षित किया।

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