चेन्नई भाग-७

Pg12_Chennaiहमारे भारत में विभिन्न कालखण्डों में भिन्न-भिन्न मंदिरों का निर्माण किया गया। उनमें से कुछ मंदिर समय की धारा में लुप्त हो गएँ, वहीं कुछ मंदिर आज भी अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं। पिछले भाग में हमने चेन्नई शहर के ऐसे ही एक विख्यात पार्थसारथि मंदिर के बारे में जानकारी हासिल की। चेन्नई शहर के ऐसे ही पुराने मंदिरों में से और एक मंदिर है, ‘कपालीश्वरर’ मंदिर।

चेन्नई के मैलापुर नामक उपनगर में यह मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण सबसे पहले ८वी सदी में पल्लव राजाओं ने किया, लेकिन आगे चलकर वह मंदिर नष्ट हो गया और इस विद्यमान मंदिर का निर्माण साधारणतः तीनसौ साल पूर्व किया गया है। पल्लव राजाओं द्वारा निर्मित मूल मंदिर समुद्री तट पर था, लेकिन विद्यमान मंदिर समुद्री तट से कुछ दूरी पर स्थित है। इस मंदिर की प्रमुख देवता ‘शिवजी’ हैं। यहाँ शिवजी ‘कपालीश्वरर’ इस नाम से स्थित हैं।  एक आख्यायिका के अनुसार ब्रह्माजी की बिनति से शिवजी यहाँ कपालीश्‍वरर यह रूप धारण कर विरजित हुएँ।

इस मंदिर का निर्माण द्रविडी शैली में किया गया है और इस मंदिर का गोपुर लगभग ३७  मीटर ऊँचा है।

इस मंदिर के विषय में एक आख्यायिका ऐसी है कि शिवपत्नी पार्वतीजी ने यहाँ पर शिवजी की उपासना की थी, लेकिन वह मनुष्य के रूप में नहीं, बल्कि प्राणियोनि में जन्म लेकर। इस आख्यायिका को दर्शानेवाले प्रसंग इस मंदिर में चित्रित किये गए हैं।

इसी मंदिर में ६३  नायन्मार सन्तों की ब्रॉन्झ की मूर्तियाँ हैं।

शिवजी के साथ पार्वतीजी भी इस मंदिर की आराध्यदेवता हैं। शिवजी और पार्वतीजी का उत्सव यहाँ  ‘तेरोत्सवम्’ या ‘ब्रह्मोत्सवम्’ इस नाम से मनाया जाता है। नायन्मार सन्तों के स्मरण में भी इस मंदिर में ‘अरूपतिमूवर’ नाम का उत्सव मनाया जाता है। श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रन्थराज के द्वितीय खण्ड में वर्णित पूर्वसुरियों में से ‘अप्पर’, ‘तिरुमूलर’ और ‘तिरुज्ञानसंबंधर’ ये सन्त ६३  नायन्मारों में से हैं।

साधारणतः किसी भी शहर में बग़ीचे या उद्यान तो जरूर होते ही हैं। आजकल भी हर एक शहर का इतना काँक्रीटीकरण होने के बावजूद भी शहरों में कुछ बग़ीचें अब भी बचे हुए हैं। चेन्नई शहर में ‘राष्ट्रीय उद्यान’ अर्थात् ‘नॅशनल पार्क’ का दर्जा प्राप्त हुआ एक उद्यान है। यह उद्यान ‘गुंडी नॅशनल पार्क’ के नाम से जाना जाता है। इस नॅशनल पार्क में प्रकृति और प्राणिजीवन एकसाथ बस रहे हैं। यहाँ ३५० प्रकार की वनस्पतियाँ और २४ प्रकार के वृक्ष हैं और विभिन्न प्रकार के बहुत सारे प्राणियों को यहाँ पर संरक्षित रखा गया है।

इसवी १८५५  में मद्रास में एक प्राणिसंग्रहालय की स्थापना की गई। उसका नाम था, ‘अरिग्नार अण्णा झुऑलॉजिकल पार्क’। लेकिन चेन्नई शहर के बढ़ते हुए विस्तार को ध्यान में रखकर इसवी १९७९ में इस प्राणिसंग्रहालय को चेन्नई से ३५  कि.मी. की दूरी पर होनेवाले ‘वंदलूर’ में स्थलान्तरित किया गया। वंदलूर यह संरक्षित जंगल था। यहाँ प्राणियों की १७० प्रजातियाँ हैं। इस प्राणिसंग्रहालय का विस्तार लगभग ५१० हेक्टर इतना है। इसवी १९८५ में इसे लोगों के लिए खोला गया। फिर भी एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पहला प्राणिसंग्रहालय चेन्नई में शुरू किया गया।

७५००० पंछी एक ही स्थान पर। सोचिए, क्या ऩजारा होगा! ऐसा ऩजारा चेन्नई से लगभग ९० कि.मी. की दूरी पर स्थित ‘वेदथंगल’ में देखा जा सकता है। वेदथंगल को इन पंछियों के आश्रयस्थान के रूप में जाना जाता है (वेदथंगल बर्ड सॅन्क्च्युअरी)। यह भारत में स्थित सबसे पुरानी बर्ड सॅन्क्च्युअरी है। सर्दी के मौसम में शीत प्रदेश से पंछी यहाँ पर आते हैं, यहाँ वे बच्चों को जन्म देते हैं और जैसे जैसे यहाँ गर्मियाँ शुरू होती हैं अर्थात् उन पंछियों के निवासस्थल में होनेवाली ठण्ड़ कम होने लगती है, उसके साथ ही ये पंछी अपने मूल स्थान पर लौट जाते हैं। पंछीनिरीक्षकों के लिए यह उनके अभ्यास का स्थल है। क्योंकि यहाँ पर वे इतनी बड़ी मात्रा में विभिन्न प्रजातियों के पंछियों को देख सकते हैं।

घड़ियालों की बँक, सुनने में बड़ा अजीब लगता है और यह क्या है? घड़ियाल यह प्राणि डरावना तथा घिनौना प्राणि है, लेकिन सृष्टिचक्र में विद्यमान एक घटक होने के कारण उसकी रक्षा होना जरूरी है। इसवी १९७६ में रोमुलस व्हिटेकर नामक व्यक्ति ने भारत में स्थित घड़ियालों की तीन प्रजातियों की रक्षा के हेतु इस ‘मद्रास क्रोकोडाईल बँक’ की स्थापना की। चेन्नई से तकरीबन ४० कि.मी. की दूरी पर स्थित इस बँक में घड़ियालों के साथ साथ अन्य रेंगनेवाले प्राणि भी मौजूद हैं।

अब प्राणिविश्‍व से जरा मनुष्यविश्‍व की ओर मुड़ते हैं। हर कोई बचपन में कभी ना कभी तो कहानी सुनता या पढ़ता है। बड़े हो जाने पर कितनी भी कहानियाँ, किताबें पढ़ें, तब भी बचपन की कहानियों का म़जा कुछ और ही होता है। बचपन और कहानी का जिक्र होते ही यक़ीनन ही मुझे याद आती है, एक किताब की, उसे किताब कहने के बजाय एक मासिक पत्रिका कहना अधिक उचित होगा। शायद अब तक इसे आप पहचान चुके होंगे। लेकिन अगर ना भी पहचान गये हो, तो कोई ह़र्ज नहीं, आपको ‘चन्दामामा’ याद है? रामायण, विक्रम और वेताल और अनगिनत नीतिकथाओं का ख़जाना होनेवाला चन्दामामा। लेकिन  जरूरी नहीं कि इसे पढ़ने के लिए आप छोटे उम्र के ही हों। फिर चन्दामामा और चेन्नई में क्या संबंध है? इस पत्रिका का मुख्यालय चेन्नई में है। वैसे देखा जाये, तो इस पत्रिका का जन्मस्थल चेन्नई है। जुलाई १९४७ में बी. नागी रेड्डी और चक्रपाणि इन्होंने बच्चों के लिए यह पत्रिका शुरू की। शुरुआत में यह पत्रिका केवल तमिल और तेलगु इन्हीं दो भाषाओं में प्रकाशित होती थी। आगे चलकर इसवी १९७८ में यह १३ भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने लगी। इसवी १९४७ में इस पत्रिका की खपत ६०००  इतनी थी। बीच के लगभग सालभर की अवधि को छोड़कर गत साठ वर्षों से यह पत्रिका नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है।

हम भारतीय, त्योहार तथा उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। पूरे तमिलनाडू में मनाया जानेवाला ‘पोंगल’। ‘पोंगल’ इस शब्द का अर्थ है ‘उमड़ना’। खेत में अच्छी फसल आने के कारण सम्पन्नता होगी, लेकिन इस सम्पन्नता के लिए कारण होनेवाली बातें अर्थात् सूर्य, वर्षा और खेती के काम में मदद करनेवाले प्राणि इनके प्रति कृतज्ञभाव व्यक्त करने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है। संक्रान्ति के समय पोंगल मनाया जाता है। इस उत्सव की परम्परा साधारणतः एक हजार वर्ष पुरानी मानी जाती है। पोंगल तीन दिन मनाया जाता है।

पहले दिन पुरानी ची़जों का त्याग किया जाता है और दूसरे दिन से नयी ची़जों का स्वीकार किया जाता है। दूसरा दिन अर्थात् नयी बातों की शुरुआत करने का दिन। उस दिन चावल, दूध और गुड़ से एक पकवान बनाया जाता है और उसे जान-बूझकर बर्तन से बाहर निकलने दिया जाता है। जब यह होता है, तब ‘‘पोंगल, पोंगल’’ ऐसे पुकारा जाता है।

तीसरे दिन खेती के काम में उपयोग में लाये जानेवाले प्राणियों के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त किया जाता है।

अब तक हम चेन्नई – मद्रास का इतिहास देख चुके हैं। लेकिन आज का चेन्नई कैसा है? आज का चेन्नई इक्कीसवी सदी का एक आधुनिक शहर है। आज के चेन्नई में ऑटोमोबाईल, टेक्नॉलॉजी, हार्डवेअर का निर्माण करनेवाले और वैद्यकीय सुविधाओं से सम्बन्धित होनेवाले कईं उद्योग हैं। इंफॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी से सम्बन्धित पहले नंबर का शहर है बेंगलुरु, तो दूसरे नंबर का शहर है चेन्नई। आज का चेन्नई नये जमाने के कईं उद्योगों का आश्रयस्थान है।

चेन्नई शहर जिस प्रकार उद्योगक्षेत्र में अग्रसर है, उसी प्रकार मनोरंजन के क्षेत्र में भी अग्रसर है। मद्रास के ‘व्हिक्टोरिया पब्लिक हॉल’ में पहला मूकपट दिखाया गया। इसी मद्रास के ‘कोडंबक्कम्’ में अधिकांश फिल्मों  का निर्माण किया जाता है।

एक तीन मील लंबे जमीन के टुकड़े पर एक अंग्रे़ज अधिकारी दाखिल हुआ और उसी के साथ वहाँ लोग आकर बसने लगे। यह सिलसिला इतना बढ़ते गया कि वह गाँव चारों ओर से फैलने  लगा और उसी से चेन्नई नाम के एक शहर का निर्माण हुआ। यह पूरा इतिहास भले ही हमें ऐतिहासिक दस्तावे़जों के जरिये ज्ञात हुआ हो, लेकिन एक गाँव का एक शहर कैसे बन गया, इस बात का मूक गवाह समुद्र ही है।

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