चेन्नई भाग-४

Pg12_Chennaiगाँव हो या शहर, जैसे जैसे वहाँ की आबादी बढ़ने लगती है, वैसे वैसे वहाँ रहनेवाले नागरिकों की जरूरतों की पूर्ति के लिए कईं वास्तुओं का निर्माण वहाँ पर किया जाता है, यातायात की सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं और इस तरह की कईं बातें होती रहती हैं। चेन्नई के साथ भी ठीक यही हुआ। सबसे पहले वहाँ गए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों ने अपने आवास हेतु वहाँ पर क़िले का निर्माण किया और फिर उस क़िले के आसपास लोग आकर बसने लगे।

आज के चेन्नई शहर की कईं वास्तुओं का निर्माण अंग्रे़जों के जमाने में हुआ है। इसीलिए यहाँ की वास्तुशैली में भारतीय एवं ब्रिटिश वास्तुशैली का दर्शन होता है। इस वास्तुशैली को ‘इंडो-सारसेनिक पद्धति’ कहा जाता है।

‘मद्रास हायकोर्ट’ का निर्माण भी इसी वास्तुशैली के द्वारा हुआ है। विस्तार (इस हायकोर्ट द्वारा व्याप्त जमीन का हिस्सा) की दृष्टि से मद्रास हायकोर्ट दुनिया में दूसरे नंबर पर है। मद्रास हायकोर्ट की स्थापना इसवी १८६२ में मद्रास प्रेसिडेन्सी में की गई। इसकी स्थापना का सम्मतिपत्र इंग्लैंड की महारानी के द्वारा दिया गया था। हालाँकि इस हायकोर्ट की स्थापना इसवी १८६२ में हुई, लेकिन हायकोर्ट की वास्तु का निर्माणकार्य इसवी १८९२ में हेन्री आयर्विन नामक रचनाकार के मार्गदर्शन में पूर्ण किया गया।

दरअसल भारत में न्यायसंस्था का अस्तित्व प्राचीन समय से था ही और उनके जरिये न्यायदान का कार्य भी हो ही रहा था, लेकिन अंग्रे़जों ने न्यायसंस्था को ‘कोर्ट’ इस सुव्यवस्थित रूप में परिवर्तित किया। जिस तरह अंग्रे़जों ने भारत में कोर्ट इस पद्धति की शुरुआत की, उसी तरह एक और महत्त्वपूर्ण व्यवस्था की शुरुआत उन्होंने भारत में की और वह थी रेल।

आज हममें से अधिकांश लोग हररोज रेल से यात्रा करते हैं। चूँकि हममें से अधिकांश लोगों ने रेल के द्वारा कईं बार सफर किया है, हमें  रेल यह कोई विलक्षणता का विषय नहीं प्रतीत होता। लेकिन जिस समय बैलगाड़ी यह यातायात का साधन था, उस समय रेल यह लोगों के लिए एक अचम्भा एवं विस्मय का विषय था।

चेन्नई रेल्वे स्टेशन, जिसे ‘चेन्नई सेंट्रल रेल्वे स्टेशन’ कहा जाता है, वह रेल यातायात की दृष्टि से दक्षिणी भारत का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था और आज भी है। इस रेल्वे स्टेशन की वास्तु का निर्माणकार्य भी हेन्री आयर्विन के मार्गदर्शन में किया गया।

किसी भी शहर की बात करें, तो उस शहर के इतिहास के पट खोलकर दिखानेवाला एकाद म्युझियम वहाँ पर रहता ही है। १९  वी सदी के मध्य में स्थापित हुआ चेन्नई का ‘गवर्न्मेंट म्युझियम’। इस म्युझियम का विस्तार ६ इमारतें तथा ४६ दालानों तक फैला हुआ है। शिल्पकला, वास्तुशास्त्र, प्राणिशास्त्र आदि कईं विषयों से संबंधित वस्तुओं का यहाँ पर संग्रह किया गया है। भूर्जपत्र पर अंकित हस्तलिखित, दूसरी सदी की पेंटींग्ज, दक्षिणी भारत के वाद्य, मूर्तियाँ, पिछली सदी में लकड़ी पर किया गया नक़्काशीकाम इनजैसी कईं बहुमूल्य वस्तुएँ इसमें जतन की गई हैं।

पुराने जमाने में भारत में विभिन्न चित्रशैलियाँ थीं और कईं पेंटींग्ज उन चित्रशैलियों में बनाये गए थें। चेन्नई के ‘नॅशनल आर्ट गॅलरी’ में १०वी सदी से बनाये गए पेंटींग्ज का संग्रह किया गया है। साथ ही हस्तकलाकुशलता की कईं वस्तुओं का भी यहाँ पर संग्रह किया गया है। यहाँ की पेंटींग्ज में दख्खनी, राजस्थानी आदि कईं चित्रशैलियों का समावेश है।

मानवी जीवन में क्रान्ति लानेवाली कईं घटनाएँ पिछली कुछ सदियों में हुई। उन्हीं में से एक महत्त्वपूर्ण घटना है, मुद्रणकला (प्रिंटींग) की खोज। इस खोज के कारण मनुष्य को कोई भी बात लिखित स्वरूप में उपलब्ध होने लगी तथा उसका संग्रह करना भी आसान हो गया। इस बात का नित्य परिचय का उदाहरण है हमारा रो़ज का अख़बार। चेन्नई अर्थात् पुराना मद्रासपटणम् या चेन्नापटणम् यह गाँव जब शहर के रूप में विकसित होने लगा, तब इसवी १७८५ में वहाँ पर पहला अख़बार प्रकाशित हुआ। यह अख़बार तब साप्ताहिक के रूप में प्रकाशित होता था। उस अख़बार का नाम था ‘द मद्रास कुरीयर’। उसके तुरन्त बाद ही इसवी १७९५ में ‘द मद्रास गॅझेट’ तथा ‘द गव्हर्नमेंट गॅझेट’ ये दो अख़बार ह़फ़्ते में एक बार साप्ताहिक के रूप में प्रकाशित होने लगे। इसवी १८३६ में ‘द स्पेक्टेटर’ नामक अख़बार प्रकाशित होने लगा। इस अख़बार के विषय में महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि यह प्रकाशित तो होता था अंग्रे़जी में, लेकिन उसका मालिक था एक भारतीय व्यक्ति। यही अख़बार इसवी १८५३ में चेन्नई से हर रो़ज प्रसिद्ध होनेवाला दैनिक बन गया। इसवी १८९९ में तमिल भाषा का पहला अख़बार ‘स्वदेशमित्रन्’ शुरू हो गया।

पूरे भारत में प्रकाशित होनेवाली सभी की सभी पुस्तकों, अख़बारों तथा पत्रिकाओं को क्या किसी एक जगह पर संग्रहित किया जाता होगा? यह सवाल शायद किसी के मन में कभी उठा होगा। इस प्रश्न का उत्तर है, चेन्नई की लायब्ररी। ‘कॉन्नेमर पब्लिक लायब्ररी’ इस नाम से विख्यात इस लायब्ररी में पूरे भारत में प्रसिद्ध होनेवालीं सभी पुस्तकों, अख़बारों तथा पत्रिकाओं की प्रतियाँ संग्रहित की जाती है। भारत में स्थित चार नॅशनल डिपॉझिटरी लायब्ररियों में से यह एक है। नॅशनल डिपॉझिटरी लायब्ररी अर्थात् पूरे देश में प्रसिद्ध होनेवाले सभी पुस्तकों, अख़बारों तथा पत्रिकाओं का संग्रह। यह एक तरह से बहुमूल्य राष्ट्रीय धरोहर ही है।

हालाँकि इस लायब्ररी की स्थापना इसवी १८९० में हुई, लेकिन इसकी स्थापना के पीछे एक अलग ही कथा है, जिसकी शुरुआत सीधे इसवी १८६१ से होती है। हेलिबरी कॉलेज इस इंग्लंड़स्थित कॉलेज में भारतीय नागरिकों को प्रशिक्षित किया जाता था। इस कॉलेज की लायब्ररी में अनगिनत अतिरिक्त (एक्स्ट्रॉ) पुस्तकें थीं, जिन्हें मद्रास गवर्न्मेंट के पास भेजा गया। आगे चलकर मद्रास गवर्न्मेंट ने इन पुस्तकों को मद्रास म्युझियम को सौंप दिया। शहर की बढ़ती हुई आबादी को ध्यान में रखते हुए जब सार्वजनिक ग्रन्थालय (पब्लिक लायब्ररी) की जरूरत महसूस हुई, तब उस समय के मद्रास गवर्नर लॉर्ड कॉन्नेमर ने  २२ मार्च १८९० को इस ग्रन्थालय की स्थापना की। इस ग्रन्थालय में तकरीबन छः लाख पुस्तकें हैं और पुराने जमाने में प्रसिद्ध हो चुकी कईं पुस्तकें आज भी इस लायब्ररी में हैं। इसवी १९७३ में एक नयी इमारत का निर्माण कर इस लायब्ररी का विस्तार किया गया।

‘एनसायक्लोपिडीया ऑफ अ‍ॅस्ट्रोनॉमी’ के दस खण्ड, ‘ए हिस्ट्री ऑफ ओरॅटरी इन पार्लमेंट १२१३-१९१३’, ‘अँथनी अँड क्लिओपात्रा’ की जर्मन भाषा की प्रती इनजैसे कईं दुर्लभ पुरानी पुस्तकों का संग्रह यह इस लायब्ररी की विशेषता है।

आज इस लायब्ररी का स्वरूप नये जमाने के नक़्शे-कदम के अनुसार है। यहाँ भारतीय भाषाओं की पुस्तकों के लिए एक स्वतन्त्र मंज़िल का निर्माण किया गया है, ब्रेल लायब्ररी तथा आय.ए.एस्. स्टडी सेंटर भी है।

अब पढ़ाई की बातें चल ही रही हैं, तो ज्ञानदान करनेवाली चेन्नईस्थित संस्थाओं पर ग़ौर करें। हर एक व्यक्ति के स्वास्थ्य से जुड़ा होता है, अस्पताल। चेन्नई में अर्थात् पुराने मद्रास में स्थापित किया गया मेडिकल कॉलेज यह भारत के कईं पुराने मेडिकल कॉलेजों में से एक है।
२ फरवरी १८३५ को इस ‘मद्रास मेडिकल कॉलेज’ की स्थापना हुई।

इस कॉलेज का इतिहास भी बहुत पुराना है। ब्रिटिश ईस्ट इंडीया कंपनी के ज़ख्मी सैनिकों के लिए इसवी १६६४  में मद्रास में एक छोटासा अस्पताल बनाया गया। शुरुआत में यह अस्पताल अंग्रे़जो द्वारा निर्मित सेंट जॉर्ज क़िले में था। अंग्रे़ज और फ्रांसीसियों के बीच की लड़ाई के कारण यह अस्पताल अन्य जगह पर स्थापित किया गया।  साधारणतः १८वी सदी के उत्तरार्ध में इस अस्पताल में युरोपियन एवं अन्य स्थानिक लोगों को मरी़ज का रोगनिदान करना, उसे दवाई देना तथा दवाइयों का निर्माण करना इनका प्रशिक्षण देने की शुरुआत हुई। ये प्रशिक्षित लोग फिर   पूरे जीले के विभिन्न डिस्पेन्सरियों में जाकर वहाँ के डॉक्टरों की मदद करें, यही इसका उद्देश्य था। इसवी १८२० में इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के मॉडेल अस्पताल के रूप में जाना जाने लगा और इसवी १८३५ में यहाँ वैद्यकीय शिक्षा का प्रारम्भ हुआ। तब इसका स्वरूप मेडिकल स्कूल यह था। आगे चलकर इसे गवर्न्मेंट जनरल अस्पताल के साथ जोड़ा गया। इसवी १८४२ में इस मेडिकल स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने हेतु भारतीयों को प्रवेश दिया गया और फिर   इस स्कूल का विस्तार होते गया। इसवी १८५२ में डॉक्टरों की पहली बॅच ने यहाँ से प्रशिक्षण पूर्ण किया। ऐसी राय है कि भारतीय स्त्रियों में से पहली डॉक्टर और भारतस्थित अंग्रे़ज स्त्रियों में से पहली डॉक्टर ऐसी दो बिल्कुल भिन्न परिस्थितियों रहनेवाली दो महिलाओं ने इसी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। इसीका अर्थ है कि मद्रास में वैद्यकीय शिक्षा की नींव कईं सदियों पूर्व ही रखी गयी।

पुराने मद्रास और आज के चेन्नई शहर के ज्ञानदान का इतिहास इस एक मेडिकल कॉलेज तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह विस्तार बहुत ही बड़ा है। उसके बारे में अगले भाग में जानेंगे।

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