चंबा भाग-५

चंबा, इतिहास, अतुलनिय भारत, खज्जियार, बर्फ़ीली पहाड़ियों, भारत, भाग-५

एक तरफ़ पहाड़ियाँ और दूसरी तरफ़ गहरी खाई। सड़क के दोनों तरफ़ पाईन और देवदार के पेड़ों की ठंडी छाँव। मोटर इस क़दर तेज़ दौड़ रही है कि मानों यात्रियों से पहले उसे ही पहुँचने की जल्दी है। सड़क में कईं मोड़ रहने के कारण ड्राइवर को गाड़ी चलाते समय बड़ी सावधानी बरतनी पड़ रही है। गाड़ी में सवार यात्री बाहरी नज़ारा और शुद्ध हवा इनसे इतने उल्हसित हुए हैं कि उन नज़ारों को जितना भी देखा जाये उतना कम ही है, ऐसा उन्हें लग रहा है और कुछ ही देर बाद वह गाड़ी एक जगह रुक जाती है। अब स्वाभाविक रूप से यात्री सामने देखते हैं और उस नज़ारे को देखते ही हर एक के मुँह से सिर्फ़ एक ही लफ्ज़ निकलता है – ‘लाजवाब’!

हम पहुँच चुके हैं, ‘खज्जियार’ में, जहाँ पहुँचने के बाद सैलानी मुग्ध हो जाते हैं। सामने कुछ ही दूरी पर फैली हुई है, हिमालय की पहा़डियों की शृंखला। कुछ पहाड़ियों के माथे पर जमी हुई बर्फ़ दिखायी दे रही है, वहीं कुछ के सिर पर बादल। सामने एक विशाल हरा भरा मैदान दिखायी दे रहा है, जैसे मानों कोई ढालवाँ तश्तरी ही रखी गयी हो और उसे बर्फ़ीली पहाड़ियों ने घेर लिया है। दूर से उसमें जल जैसा भी कुछ दिखायी दे रहा है।

इस हरे भरे मैदान के पास ही देवदार और पाईन इनके घने जंगल में से कईं टेढ़ेमेढ़े रास्ते जा रहे हैं। इस नज़ारे को देखकर यदि मटरगश्ती करने का मन कर रहा हो, तो आप बड़े आराम से यहाँ टहल सकते हैं।

‘खज्जियार’ के इस वर्णन को पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि आपके मानसपटल पर इस स्थल का चित्र अवश्य ही साकार हुआ होगा। चलिए तो फिर इसी ‘खज्जियार’ की सैर करते हैं।

लगभग ६५०० फीट की ऊँ चाई पर बसा हुआ खज्जियार चंबा से चंद ही कुछ किलोमीटर्स की दूरी पर है। लंबे चौड़ें विशाल गोलाकार हरे भरे मैदान को चारों ओर से घेर लेनेवाली पहाड़ियाँ और पेड़पौधें, यह है खज्जियार का दर्शनी स्वरूप। सैलानियों का खज्जियार जाने का म़क़सद बस इतना ही रहता है कि हो सके उतनी प्राकृतिक सुन्दरता को आँखों और मन में भरकर रखना। ‘खज्जियार’ की यह प्राकृतिक सुन्दरता हमें केवल मुग्ध ही नहीं करती, बल्कि उल्हसितता, तरोताज़ापन, रिफ्रेशनेस, चैतन्यमयता इन सभी से भर देती है। कुदरत ने खज्जियार को बेमिस्ल सुन्दरता प्रदान की है और खज्जियार भी जी भरकर उस सुन्दरता को वहाँ पर आनेवाले सभी पर लुटाते रहता है।

खज्जियार की प्राकृतिक सुन्दरता की तुलना स्वित्झर्लंड की कुदरती खूबसूरती के साथ की जाती है। इस दूर दूर तक फैले हुए हरे भरे मैदान में प्रवेश करनेवाले का मन इन हसीन वादियों में गुम हो जाता है।

हमें दूर से इस मैदान में जो कुछ जल सदृश दिखायी दे रहा था, आइए, उसके पास चलकर उसे देखते हैं। दर असल यह एक झील है। इस झील का पानी ऊपर फैले हुए विशाल नीले आसमान के प्रतिबिंब का दर्पण बना करता था। इस झील की गहराई लगभग १३ फीट थी, ऐसा कहा जाता है। लेकिन आज कल इस झील का वह दमकता हुआ आईना कुछ मटमैला सा हो गया है। इस झील की अनदेखी का ही यह नतीजा है।

इसी हरे भरे मैदान में एक जगह ‘खज्जी नाग’ का एक छोटा सा, मग़र फिर भी सुंदर सा मंदिर है। इस मंदिर के कारण ही इस स्थान का नाम ‘खज्जियार’ हुआ। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण १०वीं सदी में किया गया। इस मंदिर के आराध्य नागदेवता हैं। इस मंदिर के छत तथा खंभों पर विभिन्न प्रकार की प्रतिमाएँ अथवा शिल्प पाये जाते हैं। इन शिल्पों अथवा प्रतिमाओं को लकड़ी में से तराशा गया है। कहा जाता है कि ये शिल्प अथवा प्रतिमाएँ पांडवों तथा कौरवों की हैं। पांडव उनके वनवास अथवा अज्ञातवास के दौरान यहाँ पर आये होंगे और इसी कारण उनकी प्रतिमाएँ यहाँ पर हैं। इन प्रतिमाओं में पांडवों ने कौरवों को बाँधकर रखा है, ऐसा भी कहते हैं। यहीं पर महाभारत के भीम से संबंधित रहनेवाली हिडिंबा का मंदिर है।

कहते हैं कि किसी ज़माने में खज्जियार का यह विशाल मैदान गोल्फ के लिए मशहूर था। यह भी कहा जाता है कि यहाँ के एक देवदार के बहुत ही ऊँ चें पेड़ की समान ऊँ चाई की छह शाखाएँ हैं और स्थानीयों की राय में यह पाँच पांडव और छठी द्रौपदी इनका प्रतीक है। खज्जियार के अतीत और वर्तमान के साथ महाभारत कुछ इस तरह से जुड़ा हुआ है।

खज्जियार से कुछ दूरी तय करने के बाद देवदार का एक बहुत बड़ा पेड़ दिखायी देता है। उसे एक-दो नहीं, बल्कि कुल तेरह से भी अधिक शाखाएँ हैं, ऐसा कहा जाता है और इस पेड़ को उस इला़के के देवदार के तमाम पेड़ों की जननी माना जाता है।

इस खज्जियार के हर एक मौसम के हर एक पल की अपनी एक अनोखी ही सुन्दरता है। हर व़क़्त यह नितनूतन प्रतीत होता है। कभी पूरी तरह प्रकाशमान हो चुके आकाश के कारण कुदरत के हरे रंग का साथ सुनहरा रंग देता है, तो कभी कभी बात करते करते यकायक आसमान से सफ़ेद रंग के हिमकणों की बरसात होने लगती है और देखते ही देखते सारा खज्जियार सफ़ेद रंग की रजाई ओढ़े शान्ति से मानों आराम से लेट जाता है। कुदरत के कईं रंगों को उजागर करनेवाला यह खज्जियार फिर अपनी ही धुन में और मस्ती में खो जाता है। शांत, शोरगुल और भीड़भाड़ से दूर ऐसे इस खज्जियार जाकर स्वानंद का अनुभव सभी को अवश्य लेना चाहिए और इतनी कुदरती खूबसूरती को बनानेवाले उन विधाता का इस बेमिसाल सुन्दरता का अनुभव प्रदान करने के लिए शुक्रिया अदा करना चहिए।

दर असल ‘खज्जियार’ की इन वादियों में थोड़ी देर के लिए नहीं, बल्कि काफ़ी देर के लिए रहना केवल मुझे या आपको ही नहीं, बल्कि सभी को अच्छा लगेगा। लेकिन चंबा की संस्कृति भी हमें बार बार इशारा करके अपने पास बुला रही है। उससे यदि परिचित नहीं होंगे तो बाद में हमें अफ़सोस होगा। तो चलिए, एक बार ‘खज्जियार’ को जी भरकर देख लेते हैं, मन में इन नज़ारों को बसा लेते हैं और फिर वापस चलते हैं।

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