श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ७)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ७)

चाहा करना स्वरूप निर्धार। मौन हो गये यहाँ वेद भी चार। तुम्हारे इस रुप का विचार। कर सकूँ मैं कैसे॥ हे साईनाथ, तुम्हारा स्वरूप कैसा है इसका वर्णन करते समय ये चारों वेद भी मौन धारण कर लेते हैं, वे भी तुम्हारे रुप को नहीं जान पाते हैं फ़ीर मेरे जैसे को भला कैसे पता […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ६)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ६)

बाबा प्रथम अध्याय में गेहूँ पीसना आरंभ करते हैं। प्रथम अध्याय के कथानक तक भले ही बाबा ने ‘उस’ गेहूँ पीसने वाली क्रिया को बाबा ने रोक दिया था, फ़ीर भी बाबा का गेहूँ पीसना शुरु ही है, बावनवे अध्याय तक शुरु ही रहनेवाला है। बाबा की श्रीसाईसच्चरितरुपी पीसाई तो सदैव चल ही रही है, […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ५)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ५)

इसी लिए साई का ‘धन्यवाद’ । चाहा यथामति करूँ विशद। होगा वह भक्तों के लिए बोधप्रद। पापापमोद होगा॥ साई के अकारण कारुण्य के कारण उन्होने हि  मुझ पर कृपा कर यह साईसच्चरित लिखने की प्रेरणा एवं सामर्थ्य प्रदान किया। मेरे जीवन विकास के लिए अविरत परिश्रम करने वाले साईं के ऋणों का स्मरण रखकर साईं […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-४)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-४)

हम आम इन्सान हैं। हमसे छोटी-मोटी गलतियाँ होती ही रहती हैं। लेकिन क्या कभी हम यह सोचते हैं कि हमारे द्वारा की गयीं उन गलतियों के अनुपात में क्या हमें सज़ा मिलती है? जब कभी हम समय निकालकर सोचेंगे तब हमें पता चलेगा कि हमारे साईनाथ कितने क्षमाशील हैं। इसीलिए साई का धन्यवाद। चाहा यथामति […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-३)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-३)

  प्रथमाध्याय में यथानुक्रम। कर गोधूम-पेषणोपक्रम॥ किया महामारी का उपशम। आश्‍चर्य पुन: ग्रामस्थों को॥ ऐसी साई की लीला अगाध। श्रवण करते हुआ आनंद॥ वही इस काव्यरुप में प्रकट हुआ। बाहर उबड़ पड़ा प्रेम प्रवाह॥ प्रथम अध्याय में बाबा ने गोधूम अर्थात गेहूँ पीसकर अंत:करण की महामारी का उपशमन किया और बाबा की इस लीली को […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-२)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-२)

कल से हमने श्रीसाईसच्चरित के दूसरे अध्याय का अध्यायन करना शुरु कर दिया। हेमाडपंत इस अध्याय के आरंभ में ही श्रोताओं से विनति करते हैं – ‘व्हावें जी या आनंदा विभागी’- ‘तुम भी बन जाओ जी इस आनंद के सहभागी।’ हेमाडपंत के इस ‘जी’ में होने वाली ‘तड़प’ का अनुभव तो हम करते ही हैं, […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-१)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-१)

पूर्वाध्यायी मंगलाचरण। हो गए देवताकुलगुरुवंदन। साईचरित्रबीज पेरकर। अब प्रयोजन का आरंभ करें॥ पिछले अध्याय में मंगलाचरण हो गया, देवता-कुलगुरु आदि को भी वंदन करके हो गया। बाबा ने ही पिछले अध्याय में साईसच्चरित के बीज पेरे दिए। अब इस अध्याय में प्रयोजन, अधिकारी आदि का दिग्दर्शन बाबा ही करेंगे। इस अध्याय का नाम ही ‘कथाप्रयोजन नामकरण’ […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग- ५९)

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग- ५९)

अब करें सद्गुरुस्मरण।प्रेमपूर्वक भजे उनके चरण। जायें काया-वाचा-मन से उनकी शरण में।बुद्धिस्फुरणदाता हैं जो॥ हमने भक्ति की आकृति का अध्ययन किया। इस ओवी की अंतिम पंक्ति हमें ‘ये साईनाथ कौन हैं’ यह स्पष्ट करती है। गायत्री मंत्र में जिस ‘सवितृ’ के वरण्यगर्भ का हम ध्यान करते हैं वह शीतल ‘सवितृतेज’ है साईनाथ! संत ज्ञानेश्‍वर ‘मार्तंड […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ५८ )

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ५८ )

कल हमने गेहूँ पीसने वाली लीला के निमित्त से बाबा ने भक्तों की त्रुटी दूर करके उनके जीवन विकास को गति प्रदान कर उनकी आकृति को कैसे परिपूर्ण किया इस बात का अध्ययन किया। उच्चार, कृति एवं आकृति ये तीनों बातें हरक्षेत्र में अपना महत्त्व रखती हैं। साईसच्चरित के हर एक कथा का अध्ययन इन्हीं […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ५७ )

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ५७ )

श्रीसाईसच्चरित की पंचशील परीक्षा में पंचमी परीक्षा के प्रात्यक्षिक पुस्तकों के आरंभ में ही श्रीअनिरुद्धजी ने संपूर्ण जीवनविकास के लिए श्रीसाईसच्चरित का अध्ययन कैसे करना चाहिए, इस विषय में बहुत सुंदर रूप से मार्गदर्शन किया है। किसी भी तरह के अध्ययन के लिए जो मूलभूत तीन बातें आवश्यक होती हैं, वे हैं – १) उच्चार […]

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