श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-१७)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-१७)

हेमाडपंत के गुणविशेष हम पहले ही देख चुके हैं। हेमाडपंत स्वयं पूर्णत: सर्तक थे। साथ ही श्रीसाईसच्चरित पढ़ने से, सुनने से भक्त में यह सावधानता आ सकती है, इस बात पर उन्हें पूरा भरोसा था । हेमाडपंत पूर्णत: विनयशील थे और ‘इस संपूर्ण चरित्र के कर्ता एवं करवाने वाले मेरे सद्गुरु श्रीसाईनाथ ही हैं’ इस […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-१६)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-१६)

श्रवणार्थियों का कर्मपाश। तोड़ देती हैं ये कथाएँ विशेष। बुद्धि को देती सुप्रकाश। निर्विशेष सुख सकल॥ श्रीसाईसच्चरित की कथाएँ भाविक श्रोताओं के कर्मपाश तोड़ देती हैं, प्रारब्ध का नाश कर देती हैं। इन कर्मपाशों को यानी कर्मबंधों को ये कथाएँ ‘अशेष’ रूप से तोड देती हैं अर्थात् एक भी पाश को बाकी नहीं बचने देती […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-१५ )

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-१५ )

सुनते ही उन्हें हो सावधान । अन्य सुख लगे तृण समान। भूख-प्यास का हो जाये शमन। संतुष्ट हो जाये अन्तरमन॥ श्रीसाईसच्चरित के हर एक कथा में तारक, पारक एवं उद्धारक शक्ति है। श्रीसाईसच्चरित की कथाएँ प्रेमपूर्वक पढ़ते, सुनते, कहते रहने से साई कृपा से इन कथाओं द्वारा सतर्कता तो प्राप्त होती ही है। यह सतर्कता […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-१४)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-१४)

पिछले लेख में हमने श्रीसाईसच्चरित की कथा में ‘श्रवण करना’ इस शब्द के भावार्थ के बारे में अध्ययन किया। स्वयं बाबा ने ही २१ वे अध्याय में एक प्रांत अधिकारी से कहा है, ‘आप्पा ने जो बताया है उसे पूर्ण रूप से आचरण में उतारने से ही भला होगा।’ बाबा ने उन्हें यहाँ पर सुस्पष्ट […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- १३)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- १३)

सुनते ही हम हो जाते हैं सावधान। अन्य सुख लगने लगते हैं तिनके के समान । भूख-प्यास का हो जाता है संशमन। और संतुष्ट हो जाता है अन्तर्मन। इस साईसच्चरित की कथाओं की महिमा का जितना भी वर्णन किया जाये उतना कम ही है। ये ‘कथाएँ’ भला हमें क्या कुछ नहीं देती! इनके बारे में […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- १२)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- १२)

सुनते ही हम हो जाते हैं सावधान। अन्य सुख लगने लगते हैं तिनके के समान । भूख-प्यास का हो जाता है संशमन। और संतुष्ट हो जाता है अन्तर्मन। हेमाडपंत हमें इन कथाओं का अनन्य साधारण महत्त्व समझाकर बता रहे हैं। कथाओं का महज़ श्रवण करने से भी हर एक मानव अपना समग्र विकास कर सकता […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ११)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ११)

सुनते ही हम हो जाते हैं सावधान। अन्य सुख लगने लगते हैं तिनके के समान । भूख-प्यास का हो जाता है संशमन। और संतुष्ट हो जाता है अन्तर्मन। पिछले लेख में हमने देखा कि इस साईसच्चरित की कथाएँ हममें चार गुणों को प्रवाहित करती हैं। १)सावधानता २)आनंद ३)पूर्णत्व (अभाव का नाश, कमी का नाश) ४)संतुष्टि […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- १०)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- १०)

सुनते ही उसे हो सावधान। अन्य सुख तृण समान । भूख-प्यास का हो शमन। संतुष्ट हो जाये अन्तर्मन। हेमाडपंत साईमुख से निकलने वाले मधुर कथाओं के बारे में ऊपरलिखित पंक्तियों में जो वर्णन करते हैं, वे हमारे लिए साईसच्चरित के कथाओं के बारे में भी उतना ही सच है, इन पंक्तियों का सरलार्थ तो स्पष्ट […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ९)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ९)

‘चाहा इस इतिहास को लिखना।’ ऐसा कहकर हेमाडपंत ने श्रीसाईसच्चरित लिखने के प्रति अपनी इच्छा व्यक्त कर दी। (इसका गुढ़ार्थ स्पष्ट कर दिया) इस इतिहास को लिखते समय तथा इसका प्रयोजन स्पष्ट करते समय ये आदरपूर्वक उन लोगों का उल्लेख करते हैं। जिन्होंने इससे पहले गद्य एवं पद्यरुप में बाबा की कथाओं का वर्णन किया […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ८)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ८)

जयजयजयाजी साईराया। दीनदुखियों की छत्रछाया॥ वर्णू कैसे तुम्हरी अगाध माया। किजिए कृपा इस दास पर॥ छोटा मुँह बड़ी बात पर। वैसे ही आये मुझमें साहस॥ होने न देना मेरा उपहास। चाहता हूँ लिखना यह ‘इतिहास’॥ हेमाडपंत यहाँ पर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात बता रहे हैं कि यह ‘श्रीसाईसच्चरित’ अर्थात किसी भी काल्पनिक कथाओं का संग्रह […]

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