श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४६)

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४६)

इस दुनिया में सबसे परम पवित्र एवं सर्वश्रेष्ठ आनंद का उत्पादक और दूसरों को भी वहीं पावित्र्य एवं आनंद देनेवाला एकमेव परमात्मा ही है। ये ‘ॐकार’ ही सबसे पवित्र है इसी लिए संपूर्ण विश्व में मंगल यानी सिर्फ वे ॐकार ही, वे ‘परमात्मा’ ही है। ऐसे इस ॐकार गुणगान करना, ॐकार वंदन करके उनसे मंगल की प्रार्थना […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४५)

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४५)

पहले अध्याय की कथा में साईनाथजी के आचरण से हमने यह सीखा कि हर एक श्रद्धावान का उचित आचरण कैसे होना चाहिए, ‘शुद्ध स्वधर्म’ साध्य करानेवाले कर्मयोग की सिद्धि किस तरह होती है। इस दृष्टि से हमने ग्यारह मुद्दों का गहराई से अध्ययन किया। मर्यादाशील भक्ति करते रहने में ही ‘नरजन्म की इतिकर्तव्यता’ है यानी […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४४)

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग  ४४)

श्रीसाईसच्चरित इस ग्रंथ को सचमुच श्रीसाईनाथ ने ही हेमाड़पंत को लेखनी (कलम) बनाकर स्वयं ही लिखा है। इसमें लिखी कथाओं को पढ़ते-पढ़ते हमारी आँखों के सामने किसी फिल्म की तरह वह प्रसंग, घटना अपने आप ही साक्षात् सरकती रहती है। ऐसा सामर्थ्य स़िर्फ साईनाथ के द्वारा लिखे गये अथवा लिखवाये गये अक्षरों में ही हो […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४३)

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४३)

 ‘भगवत्-अर्पण’ करने का ‘योग’ बाबा के आचरण के द्वारा हमें किस तरह सीखना चाहिए, इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे के बारे में हमने देखा। इसे हमें अपने जीवन में उतारना ज़रूरी है। ‘गहना कर्मणो गति:’ यानी ‘कर्म की गति अत्यन्त गहन है’ और इसी कर्म की गुत्थी में अच्छे-भले ज्ञानी, योगी, कर्मठ सभी फँस जाते हैं। फिर […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४२)

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४२)

हमने ‘एकाग्रता’ इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर विचार किया। साईनाथ के आचरण से हमें ये महत्त्वपूर्ण बात सीखनी चाहिए। गेहूँ पीसने की कथा में साईनाथजी के द्वारा किये गये आचरण का अध्ययन करते समय उचित आचरण के दस मुद्दों पर हमने विचार किया। उन में से ‘कार्य की व्यवस्था’ इस मुद्दे पर हमने विस्तारपूर्वक अध्ययन किया। […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४१)

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४१)

अब तक हमने किसी भी कार्य की व्यवस्था में ध्येय (एम) एवं उद्दिष्टों (ऑब्जेक्टिव्हज) के बारे में जानकारी हासिल की। अब कार्य के व्यवस्था के अन्तर्गत आनेवाले अन्य एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर विचार करेंगे, जिसे बाबा के आचरण से हम सीखते हैं और वह है- ‘एकाग्रता’ (कॉन्सन्ट्रेशन)। ‘बाबा किस तरह गेहूँ पीस रहे थे’ […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४० )

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४० )

साईनाथ के आचरण के आधार पर ‘कार्य का व्यवस्थापन’ इस दसवे मुद्दे का हम अध्ययन कर रहे हैं। काल, काम, वेग/गति और दिशा इन चारों बातों के महत्त्व का अध्ययन हमने किया। यहाँ पर हमें याद आते हैं- काल और काम इनके बीच खड़े रहनेवाले परशुराम। श्रद्धा और सबुरी इनके बीच खड़े रहनेवाले साईनाथ। सटका […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३९ )

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३९  )

अब हम दसवें मुद्दे पर विचार करेंगे और वह है- कार्य का उचित प्रकार से प्रबंध करना। किसी कार्य में हमारे साथ-साथ अन्य श्रद्धावान भी जब शामिल होते हैं, तब उस कार्य का भली-भाँति व्यवस्थापन (मॅनेजमेंट) होना चाहिए, नहीं तो सभी लोग कार्य के प्रत्येक अंग में हस्तक्षेप करने लगे तो वहाँ पर अनेक प्रकार […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३८ )

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३८ )

हम ने जीवन में प्रमाणबद्धता का विचार एवं आचरण कितना महत्त्वपूर्ण है और इससे हम यशस्वी जीवन कैसे जी सकते हैं, इस मुद्दे का संक्षेप में अध्ययन किया । इसी सातवे मुद्दे को बाबा के आचरण से हमने सीखा । इसके आगे का आठवा मुद्दा है- आत्मनिर्भरता (स्वावलंबन) का । आत्मनिर्भर बनकर रहना जीवन में […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३७ )

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३७ )

प्रथम अध्याय की इस गेहूँ पीसनेवाली कथा के माध्यम से साईनाथजी हमें जीवन-विकास का गुरु-मंत्र दे रहे हैं। उचित आचरण करके हर एक कार्य को १०८  प्रतिशत यशस्वी कैसे किया जा सकता है, इसका मार्गदर्शन साईनाथ स्वयं के आचरण के द्वारा कर रहे हैं । अब तक हमने छ: मुद्दों का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया : […]

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