श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-३)

 

प्रथमाध्याय में यथानुक्रम। कर गोधूम-पेषणोपक्रम॥

किया महामारी का उपशम। आश्‍चर्य पुन: ग्रामस्थों को॥

ऐसी साई की लीला अगाध। श्रवण करते हुआ आनंद॥

वही इस काव्यरुप में प्रकट हुआ। बाहर उबड़ पड़ा प्रेम प्रवाह॥

Sainathbw- बाबा का विस्मरण न होने पाये

प्रथम अध्याय में बाबा ने गोधूम अर्थात गेहूँ पीसकर अंत:करण की महामारी का उपशमन किया और बाबा की इस लीली को देख ग्रामस्थों को बहुत आश्‍चर्य हुआ यह हमने देखा। ऐसी ही साई की अद्भुत रसोंसे संपन्न लीलाएँ अगाध हैं और उन्हें सुनकर मुझे आनंद हुआ और मेरे अन्त:करण में उत्पन्न होनेवाला यह आनंद ही इस काव्य के अर्थात साईसच्चरित के रुप में प्रकट हुआ। इन पंक्तियों के रुप में मानों मेरे हृदय का प्रेमप्रवाह ही अभिव्यक्त हो गया है। हेमाडपंत दूसरे अध्याय के आरंभ में यह सब हमसे कह रहे हैं।

बाबा ने कृपा करके मुझसे साईसच्चरित की विरचना करने के लिए साईसच्चरित बीज मेरे मनोभूमि में पेर दिया एवं स्वयं अपनी ही कृपा से नव-अंकुर ऐश्वर्य को सतत पूरा करते हुए उसे विकसित किया। मेरे समान सामान्य मानव पर बाबा ने अकारण कारुण्य के साथ कितना कृपा वर्षाव किया। मैं बाबा का अनंत ऋणी हूँ । बाबा के साथ ऋण से कैसे उबरूँगा। यहीं मेरी समझ में नहीं आ रहा है। पर फिर भी बाबा को ‘धन्यवाद’ देना यह कर्तव्य ही है। इस तरह मन:पूर्वक ‘धन्यवाद’ देने से ऋणज्ञापन होकर बाबा के ऋणों का अहसास मुझे निरंतर होता रहेगा। और बाबा के ऋण में एवं ऋणों के अहसास में सदैव रहना मेरे लिए अत्यन्त जरूरी है। हेमाडपंत के हृदय में बाबा के ऋणों के स्मरण से भाव उमड़ पड़ा है। इसके बाद आनेवाली पंक्तियों में स्पष्टरुप में कहते हैं।

इसीलिए साई का ‘धन्यवाद’। चाहा यथामती करूँ विशद॥

होगा वह भक्तों के प्रति बोधप्रद। पापापनोद होगा॥

तदर्थ यह साई का चरित्र। लिखूँ आदरसहित अति पवित्र॥

आरंभ किया यह कथा सत्र। इह परत्र सौख्यद॥

साई को ‘धन्यवाद’ कैसे करना है इस भाव से ही बाबा के ऋणों का स्मरण कर बाबा की लीलाओं का संग्रह करूँ। बाबा की कथाओं का वर्णन करूँ ऐसी मेरी इच्छा हुई कारण इन कथाओं द्वारा ही भक्तों को सच्चे भक्तिमार्ग का ज्ञान होगा और उनके पापों का समूल नाश होगा। इसीलिए साईनाथ का यह अति पावन चरित्र लिखने का निश्‍चय कर इस कथा सत्र का आरंभ किया। यह साईसच्चरित भक्तों को ऐहिक एवं पारलौकिक सुख देने वाला है अर्थात सुखपूर्वक घर-गृहस्थी सहज ही सुंदर तरीके से उसी के साथ परमार्थ भी साध्य करवानेवाला भी है। हेमाडपंत अपरलिखित पंक्तियों द्वारा इसी भूमिका को स्पष्ट करते हैं।

यहीं पर हेमाडपंत से हमें एक महत्त्वपूर्ण बात सीखनी चाहिए और वह यह है कि इस साईनाथ के ऋणों का स्मरण करके और उनके अस्तित्व को ध्यान में रखकर सतत उन्हें ‘थँक्स’ कहना। हर एक भक्त के लिए यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि दिल से हम अपने सद्गुरु को ‘थँक्स’ कहें। बाबा को ‘थँक्स’ कहना अर्थात निश्‍चिरुप में क्या तो सबसे पहली बात यह है कि हमें मुख से स्पष्टरुप से ‘थँक्स’ कहना है। मेरे घर में बाबा की तस्वीर न होकर ‘प्रत्यक्ष’ मेरे बाबा ही हैं, इस निष्ठा के साथ बाबा से बात करके उन्हें ‘थँक्स’ कहना । मुझे अच्छे अंक मिले, मुझे कोई लाभ होता है, मेरा कोई काम होता है, मुझे अपने काम में बढ़ती मिलती है, व्यवसाय में बरकत होती है। मेरे प्रॉब्लम सॉल्व्ह हो गए तब तो हमें बाबा के सामने हाथ जोड़कर लोटांगण करके बाबा को ‘थँक्स’ कहना ही चाहिए; परन्तु इसके साथ ही रोज घर वापस आने पर अथवा रात्रिसमय सोने से पहले बाबा को ‘थँक्स’ कहना ही चाहिए। ‘बाबा, आपने आज का दिन मुझे दिया, आज के इस पूरे दिन में मुझे अपना विकास करने का अवसर प्रदान किया, आज दिनभर कोई भी अड़चन अथवा रुकावट नहीं आई, बाबा, तुम्ही ने अपनी कृपा से मेरे आज के दिन को आनंदित बनाया, इसीलिए ‘बाबा, थँक्स’! इस तरह हमें रोज कहना चाहिए।

दुख, तकलीफ़ में तो सभी भगवान को याद करते हैं और सुख में भूल जाते हैं। परन्तु जो नियमित रुप से यह प्रार्थना करता है उसे सुख में भी भगवान का विस्मरण नहीं होता और फिर ऐसे नित्यप्रति भगवान का स्मरण करने वाले के हिस्से में दुख आयेगा कैसे? हम जरा सा भी कुछ हुआ कि भगवान के पास भागते हैं। तब तक हमें भगवान की याद भी नहीं आती फिर हम मन्नतें मानते हैं, अपने प्रॉब्लम को दूर करने के महासागर ही हैं, ये उस समय ऐसा कभी नहीं कहते हैं कि क्यों तुम्हें अब मेरी याद आई है, अब मुसीबतों में फँस जाने पर तुम्हें मेरी याद आई है क्या? बाबा पूर्णत: क्षमाशील हैं और वे अपनी करुणा से हमारे प्रॉब्लेम जल्द से जल्द दूर करते ही हैं। परन्तु हम मात्र प्रॉब्लेम दूर होने पर अपनी मन्नत पूरा करना भूल जाते हैं साथ ही बाबा को भी भूल जाते हैं। बाबा कभी भी किसी भी प्रकार की अपेक्षा हमसे नहीं रखते हैं। हमारे मन्नतों से उनका भंडार भरता है क्या? परन्तु हमारे प्रॉब्लेम दूर हो जाने पर हमारी श्रद्धा और भी अधिक बढ़नी चाहिए। बाबा का विस्मरण न कर बाबा के प्रति श्रद्धा और अधिक कैसे बढ़ाए जिससे परमात्मा की कृपा से हमारे प्रारब्ध का नाश होकर हमारे भोग का अंत होगा और हमारा जीवन आनंदमय बन जायेगा। बाबा अपने हर एक बच्चे को आनंदित देखना चाहते हैं और वे हमसे कुछ भी नहीं चाहते। प्रॉब्लेमस् खत्म होने पर जब हम बाबा से ‘थँक्स’ कहते हैं। तब हम अपनी श्रद्धा को और भी अधिक बलवान बनाते हैं। ‘थँक्स’ कहने की ज़रूरत हमें ही होती है, बाबा को हमारे ‘थँक्स’ की ना तो ज़रूरत है और ना ही अपेक्षा।

परन्तु हम, जब हमारे जीवन के अनेक दिन सुखमय एवं आनंदमय होते है, उस समय हमारे जीवन में कोई भी प्रॉब्लेम नहीं होता है, तब हम बाबा को कितनी बार ‘थँक्स’ कहते हैं। हमें ऐसा लगता है कि हमारे अच्छे काम से ही हमारे पास प्रॉब्लेम नहीं हैं। परन्तु ऐसा नहीं है। हमें पता नहीं चलता कि कितने ही प्रॉब्लेमस् बाबा आने से पहले ही दूर करते रहते हैं। हमारे प्रारब्ध के कितने ही भोग हरि कृपा से ये साई हरि नष्ट करते रहते हैं, उनकी छाया तक हम पर पड़ने नहीं देते, पर जब हम बाबा को ही भूल जाते हैं, तब उस विस्मृति के कारण बाबा की कृपा मेरे जीवन में प्रवेश करने का दरवाजा में खुद ही बंद कर देता हूँ और तब उस प्रारब्ध का भोग हम पर टूट पड़ता है।

हेमाडपंत यहाँ पर हमें स्वयं के आचरण से ही बहुत ही महत्त्व पूर्ण मार्गदर्शन हमें कर रहे हैं, बाबा का विस्मरण न होने पाये इस बात के लिए यह ‘थँक्स’ बिलकुल आसान राजमार्ग वे हमें बता रहे हैं। सुबह उठते ही यह नया दिन हमें देखना नसीब हुआ इसके प्रति बाबा को ‘थँक्स’ कहना, कार्य शुरु करने पर कार्य खत्म होने पर, कार्य करते समय भी बाबा को ‘थँक्स’ कहना कि बाबा की कृपा से मेरे कार्य में कोई विघ्न नहीं आया, उनकी कृपा से ही मेरा काम निर्विघ्न पूरा हो गया। मुझे काम करने का सामर्थ्य बाबा ने दिया, उचित दिशा, वेग एवं सातत्य बाबा की कृपा से ही मुझे प्राप्त हुआ है, कोई प्रॉब्लेमस् नहीं आया इस लिए बाबा को मुख से ‘थँक्स’ तो कहना ही है। पर मन:पूर्वक भी उस भाव को व्यक्त करते आना चाहिए।

इसके साथ ही बाबा से ‘थँक्स’ कह दिया ‘धन्यवाद’ कह देनाही पूरा नहीं हुआ बल्कि ‘थँक्स’ के अनुसार वृत्ति थी हेमाडपंत के अनुसार होनी चाहिए। बाबा ने साईसच्चरित की प्रेरणा एवं विरचना का सामर्थ्य देने से हेमाडपंत बाबा को ‘थँक्स’ कह कर शांत नहीं रहते। बल्कि वे बाबा की लीलाओं का संग्रह करना आरंभ कर देते हैं, उनकी पंक्तियाँ लिखना आरंभ कर देते ही बाबा का हर किसी पर ऋण किस प्रकार है, वही हर किसी का विकास करने के लिए सदैव परिश्रम करते रहते हैं, इससे संबंधित भक्तों के अनुभवों की कथा लिखना शुरु कर देते हैं। हमें भी बाबा को ‘थँक्स’ ही सही पर साईनाथ के आने वाले अनुभवों को अपने आप्तों को अपने मित्रों को सुनाते रहना चाहिए। उनका गुणगान करते ही रहना चाहिए।

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