श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- २७)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- २७)

जानकर मेरे मन की इच्छा । कृपा उत्पन्न हुई साई के मन में। कहा ‘लिख सकोगे भरपूर’ । चरणों में मैंने माथा टेक दिया। दिया मुझे उदी का प्रसाद। माथे पर रख दिया वरदहस्त। साई सकल धर्म विशारद। भवापनोद भक्तों के॥ ‘हेमाडपंत की भूमिका तैयार है’ यह जानकर साई ने उन्हें चरित्र-लेखन करने की अनुमति […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- २६)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- २६)

बाबा ये अण्णासाहब कहते हैं। आपका चरित्र यथामति लिखूँ। ऐसी इच्छा हो रही है उनके चित्त में। यदि आपकी अनुमति हो तो॥ हेमाडपंत की इच्छा को बाबा के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु माधवराव ने बाबा से कहा, ‘बाबा, आपका चरित्र यथामति लिखूँ’ यह प्रेरणा हेमाडपंत के चित्त में प्रबल हो उठी है। अत: ‘आपकी अनुमति […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-२५)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-२५)

उसी समय माधवराव ने। अन्य न था कोई दूजा वहाँ। उचित अवसर देखकर। बाबा से पूछ ही लिया। माधवराव की कार्यकुशलता के बारे में अध्ययन करते समय यह बात हमारी समझ में आती हैं कि भक्त को किस तरह से सावधानी बरतनी चाहिए। किसी भी काम को करते समय सावधानीपूर्वक ही कार्य करना चाहिए। आस-पास […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-२४)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग-२४)

ही वृत्ति उठाया अवसर। बाबांसी विचारूं नाही धीर। आले माधवराव पायरीवर। तयांचे कानावर घातली। तेचि वेळी माधवरावांनी। नाही तेथे दुसरें कोणी। ऐसाचि प्रसंग साधुनी। बाबांलागूनि पुसियेलें॥ (मन में उठनेवाली वृत्ति को बाबा तक पहुँचाने के लिए अवसर ढूँढ़ रहा था। मन अधीर हो उठा था। इतने में माधवराव आ पहुँचते हैं। उनके सीढ़ी पर पहला […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- २३)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- २३)

माधवराव जब द्वारकामाई की सीढ़ी पर खड़े थे, तभी हेमाडपंत ने उनसे बाबा से अनुज्ञा प्राप्त करने को कहा। हेमाडपंत की प्रबल इच्छा देखते ही साई ने माधवराव के रूप में उनकी इच्छापूर्ति का साधन मुहैया कराया। साईकृपा से उन्हें मार्ग तक नहीं जाना पडा, बल्कि मार्ग ही उन तक स्वयं चलकर आ गया। सद्गुरु […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- २२)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- २२)

श्री दाभोलकर उर्फ़ अण्णासाहेब अर्थात हेमाडपंत, माधवराव देशपांडे से कहलवाकर बाबा से उनका साईसच्चरित लिखने के बारे में अपना मनोगत व्यक्त करने की विनती करते हैं। बाबा की अनुज्ञा प्राप्त हुए बिना उनका चरित्र लिखना आरंभ करना ही नहीं है कारण यह चरित्र लिखने का सामर्थ्य केवल साईनाथ में ही है और उनकी कृपा बगैर, […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- २१)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- २१)

अपने ‘मैं’ को अर्पित करते ही साई-चरणों में। सौख्य पाओगे तुम अपरंपार। संपूर्णत: सुखमय हो जायेगा तुम्हारा संसार। अहंकार दूर हो जायेगा॥ अपने ‘मैं’ को साईं के चरणों में अर्पित करने पर साई की प्रेरणा जीवन में प्रवाहित होती है और इसी कारण हमारा हर एक निर्णय अचूक साबित होता है। क्योंकि उस हर एक […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- २०)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- २०)

श्रीसाईनाथ की कथाओं के माध्यम से मन सहज ही श्रीसाईनाथ का ध्यान करने लग जाता है और साई के सहज-ध्यान के ज़रिये ही मन में परमात्मा के नव-अंकुर ऐश्‍वर्य प्रवाहित होते हैं। मनुष्य का सर्वोच्च ध्येय यानी समग्र विकास इसी मार्ग से साध्य होता है। साईनाथ के प्रेम से भक्त को प्रेमसमाधि लग जाती है, […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-१९)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-१९)

साईनाथ ही मेरे सिर पर स्वयं अपना हाथ रखकर स्वयं ही अपनी कथा लिखवा रहे हैं, यह हेमाडपंत का दृढ़ भाव हमने देखा। बाबा ही मुझे अपनी लेखनी बनाकर हर एक अक्षर लिख रहे हैं, मुझे तो केवल निमित्तमात्र बना रखा है, इस बात का हेमाडपंत को पूरा विश्‍वास है। ‘कर्ता-करवानेवाले’ ये मेरे साईनाथ ही […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-१८)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-१८)

‘साधु संत अथवा श्रीहरि। किसी श्रद्धावान का हाथ पकड़कर अपनी कथा स्वयं ही लिखते हैं। अपना हाथ उसके सिर पर रखकर॥ श्रीसाईनाथजी का यह चरित्र लिखने वाले हेमाडपंत को चरित्र लिखते समय बाबा के ‘निज-कर’ का यानी बाबा के अपने हाथ का पूरा विश्‍वास हो जाता है। इसका अध्ययन हम पहले ही कर चुके हैं। […]

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