परमहंस-१०१

परमहंस-१०१

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार ब्राह्मो समाज के एक साधक ने, ‘अपने षड्रिपुओं पर कैसे नियंत्रण पाया जाये’ ऐसा सवाल रामकृष्णजी से पूछा। उसपर रामकृष्णजी ने जवाब दिया – ‘षड्रिपुओं पर नियंत्रण पाने के प्रयास करने की अपेक्षा उन्हीं का ‘उपयोग’ किया जाये। षड्रिपुओं को उन ईश्‍वर की दिशा में मोड़ें। अर्थात ‘उन्हीं’ […]

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क्रान्तिगाथा-६६

क्रान्तिगाथा-६६

पूरे भारत के बारे में अँग्रेज़ों के द्वारा जो रवैय्या अपनाया गया था, उसका पूरे भारत में से अब विरोध होने लगा। अब इस समूचे घटनाक्रम में पंजाब प्रान्त से अँग्रेज़ों को हो रहा विरोध दिन ब दिन तेज़ होने लगा था और पंजाब के साथ साथ बंगाल में भी अँग्रेज़ों के खिलाफ जनमत खौल […]

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नेताजी-१५९

नेताजी-१५९

हिटलर ब्रिटन के साथ केवल मजबूरन संघर्ष कर रहा है, उसकी महत्त्वाकांक्षा के आड़े आनेवाला देश इसी नाते केवल ब्रिटन हिटलर के शत्रुपक्ष में है, अन्यथा वह ब्रिटन के साथ पंगा लेने की बात को जितना हो सके उतना टाल देता है; अहम बात तो यह है कि वह भारत की ओर ब्रिटन के नज़रिये […]

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परमहंस-१००

परमहंस-१००

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख : एक बार रामकृष्णजी कोलकाता के नंदनबागान में सम्पन्न हुए ब्राह्मो समाज के एक सत्संग में, उन्हीं के निमन्त्रण पर सम्मिलित हुए थे। सत्संग के बाद रामकृष्णजी उपस्थितों से बातें कर रहे थे। इस सत्संग के लिए कोलकाता के कुछ विख्यात डॉक्टर, सब-जज्ज, लेखक आदि लोग आये थे, जो सत्संग […]

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समय की करवट (भाग ६४) – ‘सुएझ नहर’ कथा : पिछले पन्ने से अगले पन्ने पर….

समय की करवट (भाग ६४) – ‘सुएझ नहर’ कथा : पिछले पन्ने से अगले पन्ने पर….

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१५८

नेताजी-१५८

गुज़र रहे व़क़्त के साथ साथ सुभाषबाबू की बेचैनी बढ़ने लगी थी। हालाँकि योजना के अनुसार काम तो हो रहा था, मग़र फ़िर भी अब तक उसमें मनचाही तेज़ी नहीं आयी थी। सुभाषबाबू बर्लिन में हमेशा कान और आँखें खुली रखकर ही घूमते-फ़िरते थे; साथ ही उन्होंने वहाँ की सरकार के विभिन्न मन्त्रालयों में और […]

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परमहंस-९९

परमहंस-९९

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार जब रामकृष्णजी कोलकाता आये थे, तब तत्कालीन विख्यात शास्त्रवेत्ता शशधर तर्कचूडामणि से उनकी मुलाक़ात हुई। ह्यांना भेटण्यास गेले. शशधर बतौर ‘प्रकांड पंडित’ सुविख्यात थे और अपनी सभाओं में शास्त्रों से प्रमाण प्रस्तुत करके वे उपस्थित श्रोताओं को उनका अर्थ, विज्ञान के साथ मेल मिलाकर समझाकर बताते थे। इस […]

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क्रान्तिगाथा-६५

क्रान्तिगाथा-६५

भारतीयों के द्वारा ‘रौलेट अ‍ॅक्ट’ को ‘काला कानून’ इस नाम से संबोधित किया गया। इसे ‘काला कानून’ इसलिए कहा गया था, क्योंकि वह भारतीयों का सभी प्रकार से अहित करनेवाला था। दरअसल प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय लागू किये गये ‘डिफेन्स ऑफ इंडिया अ‍ॅक्ट’ की मियाद इस महायुद्ध के बाद के छः महीने तक ही थी। […]

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नेताजी-१५७

नेताजी-१५७

सुभाषबाबू के बर्लिन आने के बाद उनकी ख़ातिरदारी करने की ज़िम्मेदारी जिन्हें सौंपी गयी थी, वे डॉ. धवन आगे चलकर अपने कामकाज़ में व्यस्त हो गये। सुभाषबाबू को भी अपने बढ़ते हुए काम का व्यवस्थापन करने के लिए किसी फुल-टाईम सहायक की ज़रूरत महसूस होने लगी थी और इस काम के लिए, जर्मनी में पढ़ […]

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परमहंस-९८

परमहंस-९८

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख कोई माँ जिस तरह अपने बच्चों का हरसंभव खयाल रखती है, उनकी परवरिश की ज़िम्मेदारी प्यार से उठाती है, उन्हें लाड़-प्यार करने के साथ साथ उनमें अनुशासन भर देती है, उनकी रक्षा करती है; ठीक उसी तरह रामकृष्णजी अपने शिष्यों के साथ पेश आते थे। गुरु के पास आया हुआ […]

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