समय की करवट (भाग ६४) – ‘सुएझ नहर’ कथा : पिछले पन्ने से अगले पन्ने पर….

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-२४

इजिप्त में बहनेवाली नाईल नदी यह इजिप्त की मानो ‘लाईफलाईन’ ही है। जलसंपदा से ओतप्रोत भरी यह दुनिया की सबसे लंबी नदी अपने दोनों किनारों को सुजलां सुफलां करती जाती है।

लेकिन बारिश में यही जीवनदायिनी रौद्र रूप धारण करती है और बाढ़ों के कारण इजिप्त में हाहाकार मचा देती है।

बार बार बाढ़ आनेवाली, इजिप्त की नाईल नदी को रोकने के लिए और जलविद्युत का निर्माण करने के लिए उसपर ‘आस्वान’ बांध बनाने के लिए पहले बढ़ाया आर्थिक सहायता का हाथ, अमरीका और ब्रिटन ने अचानक पीछे ले लिया। इसका कारण, इजिप्त के राष्ट्रप्रमुख गमाल नासर सोव्हिएत रशिया के गुट में जा रहे होने की जानकारी अमरीका को प्राप्त हुई।

अमरीका का यह अँदेसा था कि यदि हमने सहायता का हाथ पीछे ले लिया, तो स्वाभाविक रूप से नासर सोव्हिएत रशिया को पास की इस बाँध के निर्माणखर्च के लिए सहायता की माँग करेगा और इतने प्रचंड बड़े प्रोजेक्ट के लिए अर्थसहायता करने की सोव्हिएत रशिया की क्षमता न होने के कारण इजिप्त-सोव्हिएत संबंधों में यक़ीनन ही दरार पड़ जायेगी।

लेकिन आस्वान बाँधनिर्माण के लिए आर्थिक सहायता करने की आड़ में सोव्हिएत रशिया को, इस मेडिटेरियन सी प्रान्त में कम्युनिझम का चंचुप्रवेश कराने का मौक़ा दिखायी दिया और उसे सोव्हिएत ने हाथ से जाने नहीं दिया।

इसलिए जैसा अमरीका-ब्रिटन-फ्रान्स ने सोचा था, वैसा कुछ भी घटित नहीं हुआ। उल्टा नासर ने २६ जुलाई १९५६ को सुवेझ कॅनाल का राष्ट्रीयीकरण (नॅशनलाईज़) करने की घोषणा की।

यही सुएझ कॅनाल क्रायसिस की शुरुआत थी और यहाँ इजिप्त को आगे कर, एक-दूसरे को मात देने के अमरीका और रशिया के प्रयास चल रहे होने के कारण इस क्रायसिस को ‘कोल्डवॉर’ का ही एक हिस्सा माना जाता है।

सन १८६९ में प्रायः फ्रेंच तंत्रज्ञों की सहायता से और ब्रिटन की मदद से बाँधे गये आधुनिक सुवेझ नहर (कॅनाल) की देखभाल को, ‘सुएझ कॅनाल कंपनी’ स्थापन कर उसके पास सौंपा गया था। इस कंपनी में ब्रिटन और फ्रान्स का हिस्सा अधिकांश था और थोड़ाबहुत हिस्सा पूर्व ऑटोमन साम्राज्य के इजिप्त इला़के के नियंत्रक के पास था। फ्रान्सस्थित निजी निवेशक ये फ्रान्स के हिस्से में प्रमुख साज़ेदार थे। कुछ साल बाद इजिप्त में आर्थिक क्रायसिस निर्माण होने के कारण इजिप्त के तत्कालीन नियंत्रक – इस्माईल पाशा ने अपना हिस्सा ब्रिटीश सरकार को बेच दिया।

इस नहर का आरेखन हालाँकि फ्रेंच तंत्रज्ञों ने ब्रिटीश तंत्रज्ञों की सहायता से किया था, मग़र फिर भी यह नहर इजिप्त की भूमि में होने के कारण, तंत्रज्ञान (टेक्नॉलॉजी) को छोड़कर उसके बाकी सारे निर्माणकार्य में स्वाभाविक रूप में इजिप्शियन कर्मचारी-मज़दूरों का ही हाथ था। लेकिन ऐसा होकर भी, जब इजिप्त पर ब्रिटन की सत्ता थी, उस समय सुवेझ नहर के आसपास भी आने के लिए इजिप्शियन नागरिकों पर पाबंदी लगायी गयी थी। यानी अपने ही देश में उनसे गौण दर्ज़े का सुलूक़ करनेवाले ब्रिटन के बारे में उनके दिलों में पहले से ही गुस्सा उबल ही रहा था। इस कारण इजिप्शियनों को नासर का यह कदम यह गर्व की बात प्रतीत हुई और उन्होंने उसका स्वागत किया।

नासर यही तो चाहता था। सत्ता की बागडोर सँभालते ही उसने सर्वप्रथम जिन पाँच प्रमुख लक्ष्यों को हासिल करना तय किया था, उनमें इजिप्त में होनेवाली ग़रीबी-निरक्षरता इनके निर्मूलन के साथ ही, लगभग नष्ट हो चुकी इजिप्त के लोगों की राष्ट्रीयत्व की भावना को पुनः सर्वोच्च स्तर पर ले जाना, यह एक लक्ष्य था ही। साथ ही, इजिप्त को ‘ब्रिटन का उपनिवेश’ इस प्रभाव में से बाहर निकालना, यह भी उसका उद्देश्य था। उसने सत्ता में आने के पहले दो सालों में ही उस दिशा में तेज़ रफ़्तार से जो कदम उठाये, उससे ये उद्दिष्ट हासिल हुए दिखायी दे रहे थे। इजिप्शियन नागरिकों में ब्रिटिशों के खिलाफ़ प्रचंड असंतोष है, यह नासर जानता था और उस असंतोष को उफान पर लाने का मौक़ा ही मानो उसे इस घटना से मिला।

सुएझ नहर के राष्ट्रीयीकरण से इजिप्त में नासर की लोकप्रियता बुलंदी को छू गयी थी।

इस कारण, जब नासर ने यह कदम उठाया, तब इजिप्त में राष्ट्रवाद उफान पर आया और एक ही रात में नासर इजिप्त का ‘हीरो’ बना। महज़ इजिप्त में ही नहीं, बल्कि साम्राज्यवादी पश्‍चिमी सत्ताओं से टक्कर लेनेवाला मध्यपूर्वी क्षेत्र का

पहला नेता, ऐसी उसकी इमेज तैयार होकर वह सारे अरब जगत का ही हीरो बना।

नासर और ब्रिटीश प्रधानमन्त्री अँथनी एडन के बीच हुई इस एकमात्र बैठक में ‘सुएझ नहर’ के पेचींदा मसले का हल नहीं निकल सका।

कइयों को नासर का यह कदम, अरबजगत में पश्‍चिमी राष्ट्रों के बढ़ते प्रभाव पर रोक लगाने की दिशा में पड़ा पहला कदम प्रतीत हुआ और वह काफ़ी हद तक सच भी था। सुएझ नहर यह युरोप के एशिया महाद्वीप के साथ होनेवाले व्यापार की मुख्य नस थी और उसपर नियन्त्रण होने के कारण ब्रिटन को इस सारे वाक़ये में अनन्यसाधारण महत्त्व था। ऐसी सुएझ नहर के राष्ट्रीयीकरण के कारण सुएज़ पर होनेवाली ब्रिटन की मालिक़ियत ख़त्म होकर, उस प्रदेश में होनेवालीं ब्रिटन की साम्राज्यवादी योजनाओं को बहुत बड़ा झटका लगा था और ब्रिटन नासर से अधिक ही विद्वेष करने लगा था। उसमें भी, ब्रिटन के तत्कालीन प्रधानमन्त्री अँथनी एडन तो, यदि संभव हो तो लष्करी विकल्प का इस्तेमाल कर नासर को हटाने का मौक़ा ही ढूँढ़ रहा था, जो उसे इस सुवेझ नहर के राष्ट्रीयीकरण के रूप में मिल गया। साथ ही, मध्यपूर्वी क्षेत्र में कम्युनिस्ट प्रभाव का प्रवेश ही न हों और वहाँ के देश पश्‍चिमीपरस्त ही रहें इसलिए ब्रिटन ने ख़ास कोशिश करके, मध्यपूर्व के कुछ देशों में ‘बगदाद पॅक्ट’ यह समझौता करवाया, लेकिन उसमें इजिप्त को सम्मिलित कर लेने की एडन की सारीं कोशिशें नाक़ाम हुई थीं। इस कारण इजिप्त से पंगा लेने की प्रतीक्षा ही एडन कर रहा था।

लेकिन इजिप्त के साथ ठेंठ संघर्ष यदि किया, तो अरब देशों में हमारे प्रति जो सदिच्छा की भावना है वह नष्ट हो जायेगी, साथ ही अमरीका भी नाराज़ हो जायेगी; इस डर से ब्रिटन ने अपने प्यादे के रूप में इस्रायल को आगे किया। इसका कारण इस सुएझ नहर के राष्ट्रीयीकरण से ब्रिटन-फ्रान्स जितना इस्रायल का भी नुकसान हुआ था। इस नहर का राष्ट्रीयीकरण करते समय इजिप्त ने इस्रायली जहाज़ों को भी उसका इस्तेमाल करने पर रोक लगायी थी। साथ ही, तिरान की जलसंधि (जलडमरू – स्ट्रेट ऑफ तिरान) और आकाबा की खाड़ी (गल्फ़ ऑफ आकाबा) को भी इस्रायली जहाज़ों के लिए बन्द कर दिया गया था।

क्या ब्रिटन की यह चाल क़ामयाब हुई? इस्रायल ने इस पाबंदी का बदला कैसे लिया?

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