क्रान्तिगाथा-६६

पूरे भारत के बारे में अँग्रेज़ों के द्वारा जो रवैय्या अपनाया गया था, उसका पूरे भारत में से अब विरोध होने लगा। अब इस समूचे घटनाक्रम में पंजाब प्रान्त से अँग्रेज़ों को हो रहा विरोध दिन ब दिन तेज़ होने लगा था और पंजाब के साथ साथ बंगाल में भी अँग्रेज़ों के खिलाफ जनमत खौल रहा था।

१३ अप्रैल १९१९ का दिन। उस दिन इतवार (रविवार) था। इस दिन पंजाब प्रान्त में ‘बैसाखी’ का त्योहार मनाया जा रहा था। कृषिप्रधान भारतीय संस्कृति में यह त्योहार अनन्यसाधारण महत्त्व का है।

पंजाब और आसपास के इलाके में इस बैसाखी के त्योहार का बहुत ही महत्त्व है। किसानों के खेतों में तैय्यार हुई फसल इस दिन तक काटी जाती है, इसी कारण किसानों को खुशी होती है। नयी फसल के साथ आनेवाली संपन्नता की खुशियाँ वे इस दिन मनाते है। साथ ही इसी दिन पंजाब में सीख समाज के अंतिम गुरु द्वारा एक नये पंथ की स्थापना की गयी थी, इस बात का स्मरण भी इस दिन उत्सव के रूप में किया जाता है। सारांश यह है कि इस पूरे इलाके में यह दिन आनंद और त्योहार का होता है।

लेकिन १३ अप्रैल १९१९ का बैसाखी का दिन तो कुछ अलग ही तरीके से बीत गया।

क्रान्तिगाथा, इतिहास, ग़िरफ्तार, मुक़दमे, क़ानून, भारत, अँग्रेज़भारतभर में अँग्रेज़ों के विरोध में एवं रौलेट अ‍ॅक्ट के विरोध में माहौल तपने लगा था। १३ अप्रैल १९१९ को पंजाब के अमृतसर शहर के एक बाग में हज़ारों भारतीय इकठ्ठा हुए थे, अँग्रेज़ों का एवं रौलेट अ‍ॅक्ट का केवल विरोध करने के उद्देश्य से। यहाँ पर इकठ्ठा हुए सारे भारतीय निःशस्त्र थे, उनके हाथ में शस्त्र भी नहीं थे, वे तो बस शब्द के माध्यम से अँग्रेज़ों का विरोध करनेवाले थे।

जिस बाग में वे इकट्ठा हुए थे, वह बाग चारों तरफ से बंद थी और उसके चारों तरफ लोगों के घर भी थे। इस बाग में दाखिल होने एवं बाहर जाने के लिए कई छोटे छोटे गेट्स थे, लेकिन उनमें से अधिकतर गेट्स प्रायः बंद ही रहते थे और बाग में प्रवेश करने के लिए जो प्रवेशद्वार बनाया गया था, वह हालाँकि अन्य प्रवेशद्वारों की अपेक्षा थोडा बड़ा था और बाग में आनेजाने के लिए उपलब्ध वह एक प्रमुख मार्ग था।

ऐसे उस बाग में उस दिन लगभग १५-२० हज़ार भारतीय इकठ्ठा हुए थे, जिनमें पुरुषों के साथ महिलाओं एवं वृद्ध लोगों से लेकर बच्चों तक का भी समावेश था और इस बात पर फिर एक बार ग़ौर करना ज़रूरी है कि वे सभी निहत्थे थे।

इससे पहले १० अप्रैल १९१९ को अमृतसर के डेप्युटी कमिशनर के घर पर ही निषेध का मोरचा निकाला गया था। मोरचे में शामिल हुए भारतीयों की माँग थी कि इंडियन नॅशनल काँग्रेस के जिन दो नेताओं को गिरफ्तार करके अज्ञात स्थल भेजा गया है, उन नेताओं को रिहा कर दिया जाये। मोरचे में शामिल हुए लोगों पर अँग्रेज़ों ने ताकत का इस्तेमाल किया और गोलियाँ भी बरसायी गयी।

माहौल अब गरमा गया था। शांतीपूर्वक अँग्रेज़ों का विरोध करनेवालों पर ही अँग्रेज़ हथियार चला रहे थे। अब पूरे पंजाब प्रांत में तेज़ी से यह सब फैल रहा था। रेल, तार, पोस्ट आदि सेवाएँ इन गतिविधियों के कारण बाधित हुई थी। बैंक, सरकारी स्थल, टाऊन हॉल, रेल स्टेशन आदि स्थान भी इस घटनाक्रम से अछूते नहीं रहे थे।

ऐसे में ११ अप्रैल को एक अँग्रेज़ मिशनरी अध्यापिका पर हमला किया गया। भारतीयों द्वारा ही यह हमला किया गया है, ऐसा इलज़ाम लगाकर अँग्रेज़ों ने इसे ‘अँग्रेज़ विरोधी कृति’ करार दिया।

सारांश, इस सारे घटनाक्रम की पार्श्‍वभूमि पर १५-२० हज़ार भारतीयों का इकठ्ठा होना यह बात उस प्रान्त के प्रमुख अँग्रेज़ अफसर की चिन्ता बढ़ानेवाली थी। क्योंकि अँग्रेज़ों को यह शक हो रहा था कि फिर एक बार भारतीय क्रान्ति के लिए तैयारियाँ कर रहे हैं।

१३ अप्रैल १९१९ को अमृतसर में जिस बाग में इतने सारे भारतीय इकठ्ठा हुए थे, उस बाग का नाम था-जालियनवाला बाग।

सभा के शुरू होने के बाद घंटे भर का ही समय बीता होगा कि जनरल डायर नाम का एक अँग्रेज़ अफसर सैनिकों के साथ बाग में घुस गया और उसने उसके सैनिकों को एकत्रित हुए लोगों पर गोलियाँ चलाने का आदेश दिया।

जनरल डायर का आदेश मिलते ही उन सैनिकों ने वहाँ इकठ्ठा हुए भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाना शुरू कर दिया और……

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