रक्त एवं रक्तघटक – ४६

पिछले लेख तक हमने विविध रक्त समूहों की जानकारी प्राप्त की। इन प्रत्येक समूहों की थोड़ी विस्तृत परन्तु उपयोगी जानकारी हम प्राप्त करनेवाले हैं। इसकी शुरुआत लाल पेशियों से करते हैं।

लाल रक्त पेशियां (Erythrocytes): शुरुआत में ही हमने देखा है कि इन पेशियों का प्रमुख कार्य रक्त के माध्यम से हिमोग्लोबिन को संपूर्ण शरीर में पहुँचाना और उसके द्वारा प्राणवायु को सभी पेशियों में पहुँचाना। ये पेशियां और भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। इस पेशी में कार्बोनिक अनहैड्रेज नामक एन्झाइम होता है। रक्त में मौजूद पानी और कार्बन डायऑक्साइड की आपस में रासायनिक क्रिया होती है। उपरोक्त एन्झाइम इस क्रिया की गति हजारों गुना बढ़ा देता है। फलस्वरूप पेशियों में बननेवाली कार्बन डाय ऑक्साइड तेज़ी से और ज्यादा मात्रा में रक्त में मिल जाती है और रक्त के माध्यम से फेफड़ों में पहुँचायी जाती है।

लाल रक्त पेशियां दोनों ओर से अंतर्गोल (bi-concave) होती है। पेशी का व्यास ७.८ मायक्रोमीटर होता है। पेशी की ज्यादा से ज्यादा मोटाई २.५ मायक्रोमीटर और कम से कम मोटाई १ मायक्रोमीटर (μm) होती है। इस पेशी का घनफल ९० से ९५ घन मायक्रोमीटर होता है।

आवश्यकता के अनुसार अपने आकार को बदलना यह इस पेशी की विशेषता है। इसके फलस्वरूप ये सूक्ष्म केशवाहनियों में से भी सहजता से प्रवास कर सकती हैं। इस पेशी का आवरण भी ज़रूरत से ज्यादा मोटा होता है। अपना आकार बदलते समय यदि इसके आवरण पर तनाव आ भी जाए तब भी इसे कोई नुकसान नहीं होता। संक्षेप में कहें तो ये पेशियां किसी प्लास्टिक अथवा रबर की थैली (बॅग) जैसी होती है। ऐसी थैलियों में थोड़ा पानी भरकर पैंक करने के बाद हम उन्हें मनचाहा आकार दे सकते हैं। कुछ ऐसा ही इन पेशियों में होता हैं।

हमारे शरीर में किसी भी समय रक्त में कितनी लाल पेशियां होती हैं? एक घन मिलीलीटर रक्त में पुरुषों में बावन लाख और स्त्रियों में सैंतालीस लाख लाल पेशियां होती हैं। हमारे शरीर कुल मिलाकर पाच लीटर रक्त रहता है। अब इसके आगे आप ही अंदाजा लगाइए। समुद्र तल से ऊपर रहनेवाले व्यक्तियों के रक्त में इन पेशियों की मात्रा ज्यादा होती है।

अब हम देखेंगे कि प्रत्येक पेशी में हिमोग्लोबिन की मात्रा कितनी होती है? प्रत्येक लाल पेशी में ज्यादा से ज्यादा हिमोग्लोबिन की मात्रा ३२ ग्राम (३२ gm/dl) प्रति डेसीलीटर होती है। रक्त की प्रत्येक पेशी में हिमोग्लोबिन की मात्रा एक समान ही होती है। संपूर्ण रक्त में लाल पेशियों की मात्रा ४५ प्रतिशत होती है। इसे हिमॅटोक्रिट कहते हैं। इसीलिए संपूर्ण रक्त में हिमोग्लोबीन की मात्रा १४ से १६ ग्राम प्रति डेसीलीटर होती है। (३२ का ४५%)। यदि हम कभी अपने रक्त की जाँच करें तो पता चलेगा कि जाँच रिपोर्ट में उपरोक्त बातें लिखी हुई होती हैं। हिमोग्लोबिन यह Hb gms/dl में लिखी होती है। वहीं हिमॅटोक्रिट वॅल्यु % (प्रतिशत) में और लाल पेशियों की संख्या दस के गुणा में लिखी होती हैं। उसे पढ़कर हम हमारे रक्त के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।

गर्भावस्था में रक्त की लाल पेशियों की निर्मिति मुख्यत: यकृत में होती हैं। इसके अलावा प्लीहा और लिंफनोड्स में भी इनकी निर्मिति होती है। जन्म के बाद इन पेशियों की निर्मिति पूरी तरह अस्थिमज्जा में ही होती है। उम्र के पहले पाँच वर्षों में शरीर की बहुत सारी हड्डियों में लाल रक्त पेशियों की निर्मिति होती है। पाँच वर्ष की उम्र के बाद शरीर की सभी लम्बी हड्डियां और स्टरनम्, इलिअ‍ॅक अस्थि, कशेरुकाएँ, पसलियाँ इनमें इसकी निर्मिति होती है। बीस साल बाद प्राय: सभी लम्बी हड्डियों में लाल अस्थिमज्जा का रूपांतरण पीली अस्थिमज्जा में हो जाता है। इसके बाद इन हड्डियों में लाल रक्तपेशियों की निर्मिति नहीं होती।

लाल रक्त पेशियों की निर्मिति पर नियंत्रण : पेशियों को होनेवाली प्राणवायु की आपूर्ति ही इन पेशियों की निर्मिति पर नियंत्रण रखती है। यदि शरीर की पेशियों में प्राणवायु की आपूर्ति थोड़ी सी भी कम हो जाए तो फौरन लाल रक्त पेशियों की निर्मिति बढ़ जाती है। इसके पहले के लेख में हमने देखा कि एरिथ्रोपायोटिन नामक एन्झाइम लाल रक्तपेशियों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। एरिथ्रोपायोटिन में से ९० प्रतिशत एरिथ्रोपायोटिन मूत्रपिंड में तैयार होता है। शेष १० प्रतिशत यकृत में बनता हैं। शरीर की पेशियों में रक्त की आपूर्ति कम हो जाने पर कुछ ही समय में इनकी मूत्रपिंड में निर्मिती बड़े पैमाने में होने लगती है। मूत्रपिंड से ये एन्झाइम अस्थिमज्जा में जाता है और वहाँ आकर लाल पेशियों की निर्मिती को बढ़ावा देता है। इसके अलावा उसकी निर्मिति का वेग भी बढ़ाता है।

मूत्रपिंड के विभिन्न विकार अथवा मूत्रपिंड के निष्क्रिय हो जाने पर रक्त की लाल पेशियों की निर्मिति रुक जाती है। यकृत से स्रवित होनेवाला १० प्रतिशत एरिथ्रोपायोटिन अपर्याप्त साबित होता है। इसीलिए ऐसा व्यक्ति अ‍ॅनिमिक अथवा पांडुरोगी हो जाता है। तात्पर्य यह है कि उसके रक्त में लाल पेशियों की मात्रा एवं पर्याय में हिमोग्लोबिन की मात्रा काफ़ी कम होती है।

लाल पेशियों के पूरी तरह कार्यक्षम (mature) होने के लिए दो जीवनसत्त्व महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विटामिन B १२ और फॉलिक अ‍ॅसिड ये दो जीवनसत्व हैं। इन दोनों जीवनसत्वों के कारण लाल रक्त पेशियों में DNA की निर्मिति सुचारु रूप से होती है। लाल रक्त पेशियों में DNA पूरी तरह तैयार ना होने पर ये पेशियां आकार में बड़ी ही रह जाती हैं। ऐसी पेशियों को ‘मॅक्रोसाईट्स’ कहते हैं। ऐसी पेशियों का पेशी आवरण नाज़ुक होता है। इनमें हिमोग्लोबिन की मात्रा नॉर्मल होती है। परन्तु पेशी आवरण के नाज़ुक होने के कारण इन पेशियों के फूटने की काफ़ी संभावना होती है। सामान्य लाल पेशी की आयु १०० से १२० दिनों तक होती है। परन्तु मॅक्रोसाइट पेशी की आयु ३० से ४० दिनों की होती है।

उपरोक्त दोनों विटामिन्स की कमी यह मुख्यत: आँतों में उनके पर्याप्त शोषण न होने के कारण होती है। इन दोनों जीवनसत्वों की आपूर्ति हमें सिर्फ अन्न से ही होती है। परनिशिअस (Pernicious) अ‍ॅनिमिया नामक रोग में इन दोनों जीवनसत्त्वों का शोषण ज़ठर एवं छोटी आँतों में अच्छी तरह नहीं होता।

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