हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था– ३४

अब हम यह देखेंगे कि व्यायाम के दौरान रक्त की आपूर्ति किस तरह नियंत्रित की जाती है।

अ) स्थानिक नियंत्रण (Local regulation)
व्यायाम करते समय स्नायुओं के कार्य बढ़ने के बाद स्थानिक रासायनिक घटक रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।
अपने कार्यों के दौरान स्नायु प्राणवायु का इस्तेमाल करते हैं। फ़लस्वरूप प्राणवायु की कमी उत्पन्न हो जाती है। इसके कारण स्नायुओं की रक्तवाहनियाँ डायलेट हो जाती हैं। इसी के साथ-साथ प्राणवायु की कमी के कारण स्नायुओं से अ‍ॅडिनोसिन स्रवित होता है। यह अ‍ॅडिनोसिन वासोडायलेटर है। यानी जब वह रक्त में जाता है तो रक्तवाहनियों को डायलेट करता है। इसके अतिरिक्त लॅक्टीक आम्ल, कार्बनडायऑक्साईड वायु इत्यादि घटक भी वासोडायलेशन करते हैं।

रासायनिक घटक

ब) चेतासंस्था का नियंत्रण
सर्वसाधारणत: रेस्टिंग स्नायुओं में सिंपथेटिक चेतातंतु नॉरएपिने फ़्रिन नामक द्राव स्त्रवित होता है। इन घटकों के कारण वासोकन्स्ट्रिक्शन होता है। रक्तवाहनियों के आकुंचित हो जाने के कारण स्नायु की रक्त-आपूर्ति में आधे से ज्यादा की कमी हो जाती है। व्यायाम के दौरान अ‍ॅड्रिनल ग्रंथी से एपिनेफ़्रिन बाहर निकलता है। यह भी सिंपथेटिक स्राव ही होता है। परन्तु यह स्राव सिर्फ़ रक्तवाहिनियों को डायलेट करता है।

हम ने देखा कि व्यायाम के दौरान स्नायुओं की रक्त आपूर्ति में बड़ी मात्रा में वृद्धि होती है। यह वृद्धि कैसे होती है? रक्त की आपूर्ति/रक्ताभिसरण में इसके लिये कौन से बदलाव होते हैं। अब हम उनकी जानकारी प्राप्त करेंगे।

१)सिंपथेटिक चेतासंस्था के कार्य
जब कोई व्यक्ति व्यायाम करने लगता है अथवा जब उसके स्नायुओं के कार्य बढ़ जाते हैं(जैसे कि जब कोई व्यक्ति अपनी जान बचाने के लिये भागता है) तो मस्तिष्क के स्नायुओं के कार्य को नियंत्रित करनेवाले केन्द्र के द्वारा वासोमीटर केन्द्र को संदेश पहुँचाये जाते हैं। जिसके फ़लस्वरूप वासोमीटर सेंटर द्वारा सिंपथेटिक चेतासंस्था कार्यरत की जाती है और पॅरासिंपथेटिक चेता संदेश को दबा दिया जाता है। इन सभी चीजों का परिणाम शरीर पर तीन प्रकार से होता है।

अ) हृदय की पंपिंग एवं स्पंदनों का ज़ोर बढ़ जाता है।
ब) शरीर की सभी रक्तवाहनियाँ आकुंचित हो जाती हैं। परन्तु कार्यरत स्नायुओं की रक्तवाहिनियां डायलेट हो जाती हैं। (स्थानिक नियंत्रण)
इस तरह अन्य अवयवों की रक्त-आपूर्ति को कम करके बचा हुआ रक्त कार्यरत स्नायु को पहुँचाया जाता है। ऐसी कल्पना की जा सकती है कि अन्य अवयव अपनी तरफ आनेवाला रक्त कुछ समय के लिए स्नायुओं को उधार देते हैं। इस तरह प्रति मिनट २ लीटर रक्त स्नायु के लिये उपलब्ध होता है। मस्तिष्क और हृदय इसका अपवाद हैं। इन अवयवों में रक्त-आपूर्ति हमेशा की ही तरह शुरु रहती है।
क) रक्त का भंडारण करनेवाली रक्तवाहिनियां और बड़ी वेन्स के स्नायुओं का ज़ोर से आकुंचन होता है। फ़लस्वरूप वेन्स रिटर्न बढ़ जाता है और आर्डिअ‍ॅक आऊटपुट भी बढ़ जाता है।

२) व्यायाम करते समय रक्तदाब (रक्तचाप) बढ़ जाता है
व्यायाम करते समय चेतासंस्था कार्यरत होती है। फ़लस्वरूप –

१) रक्तवाहिनियां आकुंचित होती हैं।
२) हृदय की पंपिंग बढ़ जाती है। व
३) वेनस रिटर्न बढ़ जाने से कार्डिअ‍ॅक आऊट पुट बढ़ जाता है।

इसके परिणाम-स्वरूप रक्तदाब (रक्तचाप) बढ़ जाता है। यह बाढ़ २० mmHg से ८० mmHg तक हो सकती है। दौड़ना, तैरना इत्यादि व्यायामों के दौरान शरीर के लगभग सभी स्नायु कार्यरत रहते हैं। इस ४० प्रतिशत भाग में रक्तवाहिनियाँ डायलेट हो चुकी होती हैं, जिसके कारण रक्तदाब में वृद्धि कम होती है यानी २० से ४० mmHg, परन्तु यदि कोई व्यक्ति दहशत में काम कर रहा होता है और शरीर के कुछ हिस्सों के ही स्नायु कार्यरत होते हैं तो रक्तदाब तेज़ी से बढ़ता है। रक्तदाब १७० mmHg तक भी पहुँच जाता है। व्यायाम के दौरान रक्तदाब का बढ़ना अत्यंत आवश्यक होता है। बढ़ा हुआ रक्तदाब रक्तप्रवाह का ज़ोर (Force) बढ़ाता है। जिसके फ़लस्वरूप रक्ताभिसरण बढ़ता है। रक्तप्रवाह का बढ़ा हुआ जोर (Force) रक्तवाहिनियों को डायलेट करता है। यदि व्यायाम एक समय रक्तदाब नही बढ़ा तो स्नायुओं में रक्त-आपूर्ति आ़ठ गुना से ज्यादा नहीं होती।

३) व्यायाम के दौरान कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट बढ़ता है

स्नायुओं के लिये अपेक्षित बढ़ी हुयी रक्त-आपूर्ति के लिये यह आवश्यक ही होता है। व्यायाम की मात्रा के अनुसार ही कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट बढ़ता है। अप्रशिक्षित धावकों में यह वृद्धि ज्यादा से ज्यादा ४ गुना तथा प्रशिक्षित धावकों में ७ गुना होती है।

व्यायाम, अ‍ॅथलेटिक्स इत्यादि खेलों के प्रकार, स्केलेटल स्नायु व रक्ताभिसरण का परस्पर संबंध हमने देखा। साईनाथ कहते हैं, ‘व्यायाम तुम करो, मैं बादाम-पिस्तावाले दूध की कटोरी लेकर खड़ा ही हूँ’। शरीर के सुदृढ़ बने रहने के लिये व्यायाम करो। परमेश्‍वर ने स्नायु के लिये दूध कटोरी तैयार ही रखी है। बचन देने के पहले ही करके दिखाया है। जीवन में सत्य-प्रेम-आनंद के लिये प्रयास करो। दूध का कटोरा लेकर ‘वह’ खड़ा ही है।

(क्रमश:-)

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