रक्त एवं रक्तघटक – ४२

हम अपने रक्त व रक्त घटकों की जानकारी ले रहे हैं। हमने रक्त के घटकों की संक्षिप्त जानकारी प्राप्त की। अब हम इन घटकों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगें। प्राथमिक जानकारी लेते समय हमनें देखा कि रक्त में द्राव होता है, उसे प्लाझ्मा कहते हैं। शेष भाग अनेक प्रकार की पेशियों का बना होता है। इसमें लाल पेशियाँ, पाँच प्रकार की सफेद पेशियां व प्लॅटलेट्स का समावेश होता है। शुरुआत में हम इन पेशियों के बारे में जानकारी लेंगे।

रक्त में उपस्थित पेशियां रक्त में नहीं बनतीं। तो फिर ये पेशियां कहाँ बनती हैं? इसकी जानकारी अब हम प्राप्त करेंगें।

रक्तपेशियों के बनने की क्रिया को वैद्यकीय भाषा में हिमोपॉयोसिस (Haemopoisis) कहते हैं। शरीर की पेशीसमूहों में ये पेशियां बनती हैं। उस पेशी समूह को हिमोपायोटिक पेशीसमूह कहते हैं। गर्भ के पहले अठ्ठारह दिनों में ही इस पेशी की निर्मिति शुरु हो जाती है। रक्तपेशी की शुरुआत जिस ‘मूल’ पेशी से होती है उसे ‘स्टेम पेशी’ कहते हैं। इस एक पेशी से ही रक्त की विभिन्न पेशियों की निर्मिती होती है। गर्भावस्था के दूसरे महीने से ही शरीर में जगह-जगह पर रक्तपेशियों की निर्मिती शुरु होती है। सबसे पहले किसी पेशीसमूह में यह प्रक्रिया शुरु होती है। बढ़ती है। इसी समय दूसरे पेशीसमूह में भी यह प्रक्रिया शुरु होती है। जब दूसरे स्थान पर निर्मिति बढ़ने लगती है तो पहले स्थान पर निर्मिति कम होने लगती है। ऐसी शृंखला ही बन जाती है। इसमें मज़े की बात यह है कि शुरू में यह निर्मिति रक्तवाहनियों में ही होती है। परन्तु शीघ्र ही रक्त के बाहर रहनेवाली बाहरी पेशीसमूह यह ज़िम्मेदारी उ़ठा लेती है व रक्तवाहनियों में होनेवाली निर्मिति रूक जाती है।

पेशियों

गर्भावस्था के पहले महीने से ही – गर्भ के यकृत में रक्तपेशियाँ बनने लगती है। यह निर्मिति साधारणत: साँतवे महिने तक चलती हैं। गर्भावस्था के तीसरे महीने से छटे महीने तक प्लीहा में भी रक्तपेशियां तैयार होती है। परन्तु इसी दौरान अस्थिमज्जा भी बनने लगती है। रक्तपेशियाँ तैयार करनेवाले अस्थिमज्जा को मायलॉइड पेशीसमूह कहा जाता है। प्रारंभ में अस्थिमज्जा रक्त की हीमल व लिंफॉइड नामक दो प्रकार की पेशियाँ बनाती हैं। धीरे-धीरे शरीर की लिंफनोड्स व थायमस ग्रंथी, लिंफॉइड पेशी बनाने लगती है। इस प्रक्रिया को लिंफोपायोसिस कहते हैंऔर जहाँ पर इन निर्मिति होती है, उन टिश्युज को लिंफॉइड टिश्यु कहते हैं। इसके बाद अस्थिमज्जा सिर्फ हीमल पेशी बनाती है। गर्भावस्था के सांतवें महीने से धीरे-धीरे अन्य पेशीसमूहों में रक्तपेशी की निर्मिति रुक जाती है। शिशु अवस्था में किसी बीमारी के कारण रक्तपेशियों का निर्माण बढ़ जाता है अथवा अनियमित हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में यकृत, प्लीहा, मूत्रपिंड इत्यादी स्थानों पर रक्तपेशियों की निर्मिती होती है।

हीमल रक्तपेशी अस्थिमज्जा में तैयार होती है। अस्थिमज्जा में तैयार होती है। अस्थिमज्जा के बारे में हमने पहले ही पढ़ा है। शरीर में स्टरनम अथवा इलियाक अस्थी हाथ व पैर के सभी लम्बी हड्डियों में अस्थिमज्जा यही कार्य करती हैं।

हड्डीयों में दो प्रकार की अस्थिमज्जा होती है।

१) पीली अस्थिमज्जा – ज्यादा तर यह अस्थिमज्जा स्निग्ध पेशी की बनी होती है। इसमें रक्तपेशी की निर्मिति नहीं होती।

२) लाल अस्थिमज्जा – इस लाल मज्जा में रक्तपेशी का निर्माण होता है। हीमोपॉयोसिस करनेवाली पेशीयां या तो शृंखला जैसी रचना में अथवा एकत्रित आकार किसी टापू के आकार की होती है।

अस्थिमज्जा में होनेवाले रक्तपेशियों की निर्मिति को लेकर आज भी शास्त्रज्ञों में मतभिन्नता है। कुछ लोगों के मतानुसार हीमल समूह की सभी रक्तपेशियां ही मूल पेशी से बनती हैं। अन्य लोगों के मतानुसार ये मूलपेशियां प्रत्येक पेशी के लिये अलग-अलग होती हैं। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार अस्थिमज्जा में लिंफॉइ़ड पेशी की निर्मिति होती है। अत: इस विषय पर रिसर्च की काफी गुंजाईश हैं। इस विषय पर की गयी रिसर्च महत्वपूर्ण भी है।

रक्त के कई विकारों में आज अस्थिमज्जा का रोपण (Bone marrow transplant) उपचार के रूप में किया जाता है। इस उपचार से असाध्य विकारों के भी ठीक होने में सहायता मिलती है। आगे चलकर अनेक जेनेटिक विकारों पर व कॅन्सर पर अस्थिमज्जा का उपचार महत्वपूर्ण साबित होगा। ठीक है। रक्तपेशी की निर्मिति की यह कथा अगले लेख में भी शुरू रखेंगे।

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