हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था- ३१

हम ने इसेंसियल हायपरटेंशन की जानकारी प्राप्त की। इसके बारे में और थोड़ी जानकारी हम प्राप्त करते हैं।

उच्च रक्तदाबवाले लगभग ९० से ९५.५ लोगों में इस विकार के मूल कारण का पता ही नहीं चलता। फिर भी यह बीमारी एक गंभीर विकार है। सामान्य लोगों में इसकी अनभिज्ञता काफी दिखायी देती है। कई बार तो इस विकार के प्रति लापरवाही ही नज़र आता है। प्राय: निम्नलिखित बातें इसके लिये कारणीभूत होती हैं।

१) उच्च रक्तदाब के लिये कोई भी विशिष्ट लक्षण नहीं होते। हम जिन्हें उच्च रक्तदाब के लक्षण समझते हैं वे उसके लक्षण नहीं होते। उच्च रक्तदाब के कुछ समय तक अनियंत्रित रहने पर शरीर के महत्त्वपूर्ण अवयवों पर इसका असर होता है। इन परिणामों के लक्षण निर्मित होते हैं। उदा. यदि कोई व्यक्ति अचानक बेहोश हो जाये या किसी को हार्ट अ‍ॅटॅक आ जाये और पक्षाघात हो जाये तो उस समय जाँच के दौरान उच्च रक्तदाब पाया जाता है। तात्पर्य यह है कि उच्च रक्तदाब का पता ऐसी गंभीर परिस्थिति में होता है। यह उच्च रक्तदाब उस समय निर्माण नहीं हुआ होता बल्कि यह कई महीनों अथवा वर्षों पहले निर्माण हो चुका होता है। कभी-कभी डॉक्टर अनायास ही रक्तदाब चेक करते हैं तो पता चलता है कि रक्तदाब बढ़ा हुआ है।

हायपरटेंशन

२) एक बार उच्च रक्तदाब का पता चल जाने पर यह विकार मनुष्य के जीवन के अंतिम क्षण तक उसका साथ देता है। प्रारंभ में तो शायद यह काफी नियंत्रित रहता है। कुछ ज़्यादा दवाइयों का सेवन नहीं करना पड़ता परन्तु बढ़ती उम्र के साथ दवाइयों की आवश्यकता बढ़ती जाती हैं। तब नियमित रूप से दवाइयां खाने से, नियमित रूप से चेक अप करवाने से, आहार-विहार पर बंधनों का पालन करने से यह नियन्त्रित रहता है। साथ ही साथ आचार और विचारों के बंधनों का पालन अपने आप आ जाता है। ये सब चीज़ें सालों-सालों तक करनी पड़ती हैं। बंधनों का पालन करना सब को नहीं आता। कई बार हमें अपने आप ही यह तय कर लेते हैं कि मेरा रक्तदाब नॉर्मल ही होगा क्योंकि मुझे कोई तकलीफ नहीं है। फिर दवाईयां क्यों लेनी है? यदि किसी प्रकार की तकलीफ हुयी तो एक-आध गोली ले लेंगे। ऐसी धारणा बन जाती है। हमें यह पता नहीं होता हैं कि इस रोग के अपने कोई भी लक्षण नहीं होते। इसी अज्ञान के फलस्वरूप मेरे विचार, उपरोक्त कथनानुसार निर्माण होते हैं। ऐसी ही बात काफी हद तक (लक्षणों का अपवाद) मधुमेह अथवा Diabetes (डायबेटीस) के बारे में भी होती है।

३) मुझे उच्च रक्तदाब के विकार ने जकड़ लिया है और अब शेष उम्र भर वो मेरा साथी बना रहेगा, इस सत्य को कबूल करना, मन में उतारना अनेक लोगों के लिये कठिन होता है। ‘मॅजिकल क्युअर’ के आधुनिक वैद्यकशास्त्र के अनुसार यह विकार पूरी तरह ठीक नहीं होता परन्तु इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है। साथ ही साथ आहार-विहार, आचार-विचार पर उचित बंधन, योग, निसर्गोपचार, आयुर्वेद, होमिओपॅथी की सहायता से भी इस पर नियंत्रण रखा जा सकता है। इस नियंत्रण को ही ‘क्युअर’ समझकर लोग निश्‍चिंत हो जाते हैं। रक्तदाब का नियमित चेक अप नहीं रखते। यह भयंकर भूल है। दिनचर्या को नियमित रखना। आहार के उचित बंधनों का पालन करना और नियमित चेक अप करते रहने की त्रिसूत्री महत्त्वपूर्ण है। ऐसा ना करने पर इसके गंभीर परिणाम शरीर पर हो सकते हैं। डायबेटीस में भी ऐसा ही होता है। इसीलिये इन दोनों विकारों को “Silent Killers’ कहा जाता है। ये विकार धीरे-धीरे शरीर के प्रमुख अवयवों के कार्यों पर गंभीर असर करते रहते हैं। हृदय, मष्तिष्क, और मूत्रपिंड इत्यादि तीन अवयव मुख्य रूप से उच्च रक्तदाब के शिकार साबित होते हैं।

अ) हृदय पर कार्यों का जो अतिरिक्त तनाव पड़ता है(बढ़े हुए दाब के विरोध में रक्त को ज्यादा पंपिंग करना पड़ता है) फलस्वरूप हृदय के कार्यों में शिथिलता आकर उसके कार्य लगभग थम जाते हैं। (Heart Failure) अथवा हृदय की रक्तवाहनियों (करोनरी) पर असर होने के कारण Heart Attack आता है।

ब) बढ़े हुये रक्तदाब के कारण मष्तिष्क की कोई मुख्य रक्तवाहिनी फट जाती है। इसके फलस्वरूप अनेक प्रकार की समस्याओं का निर्माण होता है। पक्षाघात, अंधापन, बोलना बंद होना, कोमा में जाना जैसी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं।

क) उच्च रक्तदाब के फलस्वरूप मूत्रपिंड में कई जगहों पर अंर्तगत रक्तस्राव होता है। फलस्वरूप मूत्रपिंडों के कार्य काफी हद तक कम हो जाते हैं और इनके कार्यों के पूरी तरह रुक जाने पर मृत्यु की संभावना भी होती है।

यदि उच्च रक्तदाब को समय रहते नहीं नियंत्रित किया गया और उसे नियंत्रण में नहीं रखा गया तो उस व्यक्ति की आयुमर्यादा कम हो जाती है और अकाल मृत्यु की संभावना भी होती है।

(क्रमश..)

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