रक्ताभिसरण संस्था – ०३

हमारे शरीर में रक्त लगातार घूमता रहता है। रक्त का यह प्रवास किस तरह होता है, इसका आज हम अध्ययन करनेवाले हैं।

हमारे शरीर में रक्त का प्रवाह हृदय से रक्तवाहिनियों में व रक्तवाहिनियों से फिर हृदय में होता रहता है। रक्तवाहनियों का जाल वर्तुल आकार का (closed circuit) होता है। इसका अर्थ यह है कि हमारे रक्त का प्रवाह रक्त और रक्तवाहिनियों के बाहर कही भी नहीं बहता।

रक्त के प्रवास की शुरुआत हृदय से करते हैं। कल्पना कीजिए कि हृदय भी एक रक्तवाहिनी ही है। अन्य रक्तवाहिनियों और हृदय में अंतर यह है कि हृदय स्नायुओं से बना होता है। इसके चार भाग हैं। इसमें वाल्वस् हैं। इसके चार भागों को हमने पहले ही देखा है। फिर भी इस पर अधिक प्रकाश डालते हैं। हृदय में दो बायीं ओर और दो दांयी ओर इस तरह कुल चार भाग होते हैं। दांयी और बांयी ओर के भागों का एक-दूसरे से सीधा संपर्क नहीं होता। हृदय की दाहिनी ओर की एट्रिअम दाहिनी वेंट्रिकल से जुड़ी होती है। इन दोनों के बीच में ट्रायकस्पिड (तीन परदों वाला) वाल्व होता है। बायीं ओर की एट्रिअम बांयी ओर की वेंट्रिकल से जुड़ी हुयी होती है। यहाँ पर माइट्रल अथवा बायकस्पिड (दो पर्दोवाला) वाल्व होता है।

रक्त का प्रवाह

हृदय के दोनों ओर ये दोनों अलग-अलग रक्ताभिसरण संस्था के भाग हैं। बायीं एट्रिअम में आने वाला रक्त बायी वेट्रिंकल में जाता है व वहाँ से पूरे शरीर में घूमता हुआ दांयी एट्रिअम में जमा होता है। रक्त के इस प्रवास को शरीर का रक्ताभिसरण यानी systemic circulation कहते हैं।

हृदय की दाहिनी एट्रिअम में जमा होनेवाला रक्त, दाहिनी वेंट्रिकल में जाता है व वहाँ से फेफड़ों में जाता हैं। फेफड़ों से यह रक्त फिर बायीं एट्रिअम में आता है। फेफड़ों में होनेवाले इस रक्ताभिसरण को फुफ्फुसीय रक्ताभिसरण (pulmonary circulation) कहते हैं।

शरीर का अशुद्ध रक्त (De-oxygenated) ऊपरी व निचले दो वेनाकॅवा के माध्यम से दाहिनी एट्रिअम में आता  है। इस रक्त में प्राणवायु की मात्रा कम होती हैं। कार्बन डाय ऑक्साइड व अन्य ज़हरीले एवं त्याज्य घटकों का प्रमाण बढ़ा हुआ होता है। यह रक्त दाहिनी वेंट्रिकल में से फेफड़ों में जाता है व फेफड़ों की मुख्य धमनी (pulmonary artery) के माध्यम से इस रक्त की कार्बन डाय ऑक्साइड व कुछ अन्य घटक रक्त से फेफड़ों में जाते हैं व फेफड़ों की प्राणवायु रक्त में प्रवेश करती हैं। इस प्रकार शुद्ध हो चुका (oxygenated) रक्त पलमनरी वेन के द्वारा बांयी एट्रिअम में जाता है। आगे चलकर यह बांयी वेंट्रिकल से होता हुआ शरीर की मुख्य धमनी द्वारा शरीर के सभी अवयवों में फैलता है। ऐसा है यह रक्त का सर्वसाधारण प्रवास।

हृदय के प्रत्येक स्पंदन के दरमियाँ वेंट्रिकल्स में से बाहर निकलने वाले रक्त की मात्रा एक जैसी ही यानी समान होती है। फेफड़ों में होनेवाले रक्ताभिसरण में रक्त का दबाव, शरीर में होनेवाले रक्ताभिसरण के दबाब की तुलना में कम होता है। फेफड़ों में होनेवाले रक्ताभिसरण में रक्त का प्रवास कम दूरी वाला होता है। साथ ही साथ फेफड़ों की रक्तवाहनियाँ पतली होती है। इन दोनों कारणों से रक्ताभिसरण की परिधि की ओर रक्त के प्रवाह का होनेवाला विरोध कम होता है। (हृदय रक्ताभिसरण की केन्द्रबिंदु है और इसलिए हृदय से दूर रहनेवाली रक्तवाहनियां परिधि कहलायी जाती है)।

रक्ताभिसरण संस्था के उपरोक्त दो प्रकारों के अलावा हमारे यकृत (liver) में एक अलग सिस्टिम होता है। इसे पोर्टल व्हीनस सिस्टिम अथवा पोर्टल सिस्टिम कहते हैं। इस रक्ताभिसरण संस्था की कुछ विशेषतायें निम्न प्रकार की हैं।

१) हमारे शरीर की प्लीहा (spleen), आँते, स्वादुपिंड, जठर (स्टमक) इत्यादि अवयवों के द्वारा आगे चलकर हृदय की ओर जानेवाला रक्त जो डिऑक्सिजनेटेड होता है। वो इस सिस्टिम में से हृदय की ओर जाता है।

२) इन अवयवों से निकला हुआ रक्त पोर्टल व्हेन में प्रवेश करता है।

३) यकृत में पोर्टल व्हेन छोटी-छोटी केशवाहिनियों में बांटी जाती है। इन्हें  यहाँ सायनुसॉइड्स कहते हैं। इन सायनुसॉइड्स यकृत कोशिकाओं के चारों ओर होती है। इनके कारण जठर, आँतों इत्यादि में पचनक्रिया हो चुके अन्नघटक सीधे यकृत कोशिकाओं में पहुँचायें जाते हैं।

४) यकृत के सायनुसॉइड्स में से यह रक्त हिपॅटिक वेन द्वारा इनफिरिअर अथवा निचले वेनाकॅवा में आता है और यहाँ दाहिनी एट्रिअम में प्रवेश करता है।

५) हृदय से निकला हुआ धमनियों से होता हुआ केशावाहिनियों व केशवाहिनियों से व्हेन में जाता है। व्हेन्स में से यह फिर हृदय में वापस आता है। पोर्टल सिस्टिम इसका अपवाद साबित होता है। इस में व्हेन में से जाने वाला रक्त केशवाहिनियों में बट जाता है व फिर दूसरी व्हेन में प्रवेश करके हृदय की ओर जाता है।

हमारे रक्ताभिसरण की विशेषता है उसकी प्रवाहकता और गतिशीलता। यह प्रवाहकता, हृदय का पंपिंग अ‍ॅक्शन, आरटरी व व्हेन्स की दीवारों के स्नायु, स्केलेटल स्नायु, फेशिआ लिगामेंटस् इत्यादि का व्हेन्स पर पड़नेवाला प्रेशर अथवा दबाव, रक्तवाहिनियों का लचीलापन, रक्त की विसकॉसिटी व रक्तवाहिनियाँ व उसमें बहनेवाला रक्त इनके बीच होनेवाला घर्षण इत्यादि सभी चीजों पर अवलंबित होती है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी रक्त के प्रवाह पर असर डालती है।

शरीर में रक्त की कुल मात्रा में से एक चर्तुथांश रक्त फेफड़ों की रक्तवाहिनियों में होता है। कुल रक्त की मात्रा का तीन चौथाई भाग व्हेन्स में होता है।

(क्रमश:)

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