हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – २२

शरीर के अवयवों एवं पेशियों के अनुसार उनमें होनेवाली रक्तापूर्ति का नियमन कैसे होता है, इसका हम अध्ययन कर रहे हैं। इस में आपातकालीन नियमन कैसे होता है, इसका हम अध्ययन कर रहे हैं। इसमें आपातकालीन नियमन कैसे होता है, अब हम यह देखेंगे। किसी एक अवयव की रक्त की आवश्यकता बढ़ जाने के लिये अनेक कारण होते हैं। ये कारण कौन-कौन से हैं, अब हम यह देखेंगे।

अवयव१) पेशी का मेटाबोलिझम (अन्नघटकों का उपयोग) और उसका रक्तप्रवाह पर होने वाला परिणाम :- मेटाबोलिझम बढ़ने पर शुरुआत में उतनी मात्रा में रक्तप्रवाह नहीं बढ़ता। किसी पेशी समूह का मेटाबोलिझम जब आ़ठ गुना बढ़ जाता है तब रक्त प्रवाह की मात्रा चार गुना बढ़ता है। परन्तु इसके बाद जितनी मात्र में मेटाबोलिझम बढ़ता है उतनी ही मात्रा में रक्त प्रवाह भी बढ़ता है।

२) पेशी में प्राणवायु की मात्रा :- पेशी में प्राणवायु की मात्रा कम हो जाने पर उस पेशी में रक्तपूर्ति बढ़ जाती है। समुद्र तल से काफी ऊँचाई पर जाना, न्युमोनिया जैसी फेफड़ों की बीमारी, कार्बन मोनॉक्साईड अथवा  सायनायड़ के कारण विषबाधा होना इत्यादि पेशियों में प्राणवायु कम होने के कुछ उदाहरण है। सायनायड विषबाधा के कारण पेशियाँ अपनी प्राणवायु का उपयोग करने की क्षमता खो देती हैं। ऐसे समय में जिस पेशी समूह में यह विषबाधा हुई होती है, वहाँ पर रक्तप्रवाह लगभग सात गुना बढ़ जाता है।

प्रत्येक पेशी की मुख्य आवश्यकता ‘प्राणवायु’ होती है। किसी भी वजह से यदि प्राणवायु की मात्रा कम हो जाये तो फौरन उस पेशी में होने वाला रक्त प्रवाह बढ़ जाता है। इसके लिये सर्वप्रथम उस पेशी को रक्त-आपूर्ति करनेवाली सभी रक्तवाहिनियाँ प्रसारित (डायलेट) होती हैं। रक्तवाहिनियों के डायलेट होने के लिये अनेक चीजें कारणीभूत होती है।

पेशी में प्राणवायु की मात्रा कम होने के साथ-साथ कुछ रासायनिक पदार्थ पेशी से बाहर निकलते हैं। जो रक्तवाहिनियों को डायलेट करते हैं। उन घटकों को व्हॅसोडायलेटर कहते हैं। अ‍ॅडिनोसिस कार्बनडाय ऑक्साईड, हायड्रोजन व पोटॅशियम के अणु, हिस्टामिन इस घटकों के कुछ उदाहरण हैं।

प्राणवायु की कम हो गयी मात्रा ही वासोडायलटर की क्रिया को घटित कराती है। रक्तवाहिनियों की दीवारों में स्मूथ स्नायु होते हैं। इन स्नायुओं को आकुंचित स्थिति में रहने के लिये प्राणवायु की आवश्यकता होती है। प्राणवायु की मात्रा कम हो जाने पर ये स्नायु प्रसरित हो जाते हैं और रक्तवाहनियाँ डायलेट हो जाती हैं।

रक्त के कुछ अन्य अन्नघटक वासोडायलटर घटित करते हैं। उदा. रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाने पर रक्तवाहनियां प्रसारित हो जाती हैं। रक्त में ‘ब’ जीवनसत्व की मात्रा कम हो जाने पर रक्तवाहनियां प्रसरित होती है। थायमिन, नायसिन और रायबोफ्लेवीन तीनों ‘ब’ समूह के जीवनसत्व कम हो जाने पर शरीर की रक्तवाहनियाँ डायलेट हो जाती है व केशवाहनियों में रक्तप्रवाह दो से तीन गुना बढ़ जाता है।

यदि किसी पेशीसमूह अथवा शरीर के किसी भाग में रक्तप्रवाह कुछ समय के लिये बंद हो जाने के बाद जब वह फिर शुरु होता है तो उसमें लगभग सात गुना वृद्धि होती है। यदि रक्तप्रवाह कुछ सैकंडों के लिये बंद हुआ होता है तो यह वृद्धि कुछ सैकंडों तक रहती है, तथा यदि यह रक्तप्रवाह कुछ घंटों के लिये बंद हुआ होता है तो यह वृद्धि कुछ घंटों तक रहती है। इस क्रिया को रिअ‍ॅकटीव्ह हायपरेमिया (रक्तसमूह की प्रतिक्रियात्मक बाढ़) कहते हैं।

कोई भी व्यायाम करते समय अथवा कोई बुद्धि का काम करते समय क्रमश: स्नायु और मस्तिष्क के कार्य बढ़ जाते हैं। इन बढ़े हुए कार्यों के दौरान उन अवयवों की पेशी, उनमें प्राणवायु तथा अन्य अन्नघटकों का उपयोग करती हैं। फलस्वरूप वहाँ पर इन घटकों की कमी महसूस होती है और ऊपर बताये गयी क्रियाओं के अनुसार वासोडायलेटर अपना कार्य शुरु करते हैं। इसके ङ्गलस्वरुप रक्तवाहनियाँ डायलेट होती हैं और उन भागों में रक्तप्रवाह बढ़ जाता है। इस वृद्धि को अ‍ॅक्टीव्ह हायपरेमिया (रक्तप्रवाह में कार्यकारी बाढ़) कहते हैं। पहले हमने देखा है कि व्यायाम के दौरान स्नायु को रक्त आपूर्ति लगभग २० गुना बढ़ जाती है।

कुछ अवयवों में आवश्यकतानुसार रक्तप्रवाह में वृद्धि करने के लिये उसका एक विशेष मेकॅनिझम होता है। उदा. मस्तिष्क में प्राणवायु की मात्रा रक्तप्रवाह का नियमन करती ही है, परन्तु इसके अलावा कार्बनडायऑक्साइड और हायड्रोजन के अणु भी इस नियमन में हिस्स लेते हैं। मस्तिष्क में इन दोनों घटकों की मात्रा बढ़ने पर मस्तिष्क में रक्तवाहनियाँ प्रसारित होती है और ये दोनों घटक फौरन मस्तिष्क से बाहर निकाल दिये जाते हैं।

इसके अलावा बड़ी आरटरीज़ में उसकी एन्डोथेलियम पेशी में से एक घटक स्रवित होता है। इसे Endothelial Derived Relaxing Factor कहते हैं। ये मुख्यत: Oxide के बने होते हैं, जो इन रक्तवाहिनियों को डायलेट करते हैं।

(क्रमश:)

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