रक्ताभिसरण संस्था – ०२

हम हमारे शरीर में होनेवाले रक्त के प्रवाह का अध्ययन कर रहें हैं। अब हम अपने शरीर की रक्तवाहिनियों की रचना के बारे में सामान्य जानकारी प्राप्त करेंगे।

पिछले लेख में हमनें देखा कि हमारे शरीर का रक्ताभिसरण दो भागों में बांटा गया है। हृदय के बायी ओर से शुरु होने वाले सर्क्युलर व हृदय के दाहिनी एट्रिअम में पूरा होनेवाला जो वर्तुल है उसे ग्रेटर सर्कल कहते हैं। इसके रक्ताभिसरण का दूसरा नाम है, सिस्टेमिक सरक्युलेशन अथवा शरीर के सभी अवयवों को होने वाली रक्तपूर्ति। इसकी शुरुआत हृदय के बांयी ओर के वेंट्रिकल में होती है। यहाँ से रक्त लेकर निकलने वाली आरटरी को मुख्य धमनी अथवा अ‍ॅओर्टा (Aorta) कहते हैं। यह धमनी हृदय से जैसे-जैसे दूर होती जाती है वैसे-वैसे अनेक शाखायें, उपशाखायें निकलती जाती हैं। उपशाखाओं में से निकलने वाली सबसी छोटी धमनी को आर्टिरिओल (Arteriole) कहते हैं। हमारे शरीर में इस प्रकार की कुल ४ x १०६ यानी चालीस लाख आर्टिरिओल्स हैं। इस आर्टिरिओल्स का विभाजन होकर केशवाहनियाँ (capillaries) बनती हैं। हमारे शरीर में केशवाहनियों की संख्या भी आर्टिरिओल्स की संख्या से चार गुनी होती है। आर्टिरिओल्स की उतनी ही छोटी वेन्युल्स होती है। ये वेन्युल्स एक दूसरे से मिलकर बड़ी वेन्स बनती है। अंत में दो सबसे बड़ी वेन्स शरीर का रक्त दाहिनी एट्रिअम में लाकर छोड़ती हैं। इन दो बड़ी वेन्स को सुपिरिअर व इनफ़िरिअर वेनाकॅवा कहते हैं।

सिस्टेमिक सरक्युलेशन

इन रक्तवाहनियों का आकारमान अथवा size कम होता जाता है। मुख्य धमनी का व्यास ३० मिमी होता है और आर्टिरिओल का व्यास १० मिमी होता है। वेल्युन्स छोटी होती है और मुख्य नीला आकार में बड़ी होती है। स्तनधारी प्राणियों में, उनके शरीर के आकार के आधार पर उनकी मुख्य धमनी की साईज निर्भर होती है। उदा. चूहों में इस धमनी का व्यास २ मिमी होता है, वहीं नीली व्हेल (Blue Whale) में हो सबसे बड़े आकार वाली स्तनधारी प्राणी है उसमें मुख्य धमनी का व्यास ३० सेमी होता है। जिसमें मनुष्य का छोटा बच्चा आराम से तैर सकता है!

रक्तवाहिनियों की शाखाओं-उपशाखाओं के निर्माण का भी एक तरीका है। प्राय: सभी धमनियों के अंतिम सिरे से दो समान आकार की शाखायें निकलती हैं। यहाँ पर वह मुख्य धमनी समाप्त हो जाती है। इस सिरे से निकलने वाली शाखाओं को टर्मिनल शाखा कहते हैं। धमनी के प्रवास के दरमियाँ उसके बीच में ही कुछ शाखायें निकलती हैं। इन शाखाओं को कोलेटरल शाखायें कहते हैं। ये शाखायें टर्मिनल शाखाओं की तुलना में छोटी होती हैं। इस तरह के तरीके से ही धमनीयों का डिव्हिजन होता रहता हैं। मुख्य धमनी के व्यास का ०.७६ गुना व्यास उसकी टर्मिनल शाखाओं का व्यास होता है। उदा. पेट की धमनी का व्यास १३.८ मिमी होता है। वही उसमें से निकलनेवाली दो टर्मिनल शाखाओं में प्रत्येक ९.७ मिमी होती है।

रक्तवाहिनियाँ एक दूसरे से अलग-अलग तरीकों से जुड़ी होती है। इन जोड़ियों कोच अ‍ॅनास्टोमोसिस (anastomosis) कहते हैं। यह तीन प्रकार की होती हैं –

१) जब दो धमनियों के अंतिम सिरे आपस में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। इस end-to-end जोड़ कहते हैं। उदा. डिंब ग्रंथी की धमनी।

२) दो धमनियाँ उनके प्रवास के दौरान एकत्र आती है और एक-दूसरे से मिल जाती हैं। जिस तरह दो नदियों का संगम होता है। इसे convergence जोड़ कहते हैं। उदा. पी़ठ के मनकों की धमनियाँ।

३) ट्रान्सवर्स जोड़ – इसमें दो बड़ी धमनियाँ एक आड़ी छोटी धमनी के द्वारा एक-दूसरे से जोड़ी जाती हैं। उदा.- मस्तिष्क की धमनियाँ।
– अब हम रक्तवाहिनियों के शरीर के अन्य अवयवों के साथ संबंध का अध्ययन करेंगे।

– वेन्स की तुलना में ज्यादातर सभी आरटरीज शरीर के अंदरूनी भाग में होते हैं। सिर की आरटरीज इसका अपवाद है।

– जोड़ों में आरटरीज, जोड़ के मुड़ने वाली (flexor) बाजू पर होती है।

उदा. – कोहनी की आरटरी सामने की ओर होती हैं तथा घुटनों की आरटरी घुटनों के अंदरूनी भाग में होती हैं।

– आरटरीज व हड्डियों का एक-दूसरे से सीधा संबंध नहीं आता है। दोनों के बीच में स्नायु अथवा कोशिकाएँ होती हैं। यदि कहीं पर सीधा संबंध आ भी जाता है तो उस हड्डी पर आरटरीज का निशान हमेशा के लिये बन जाता है।

– शरीर के विभिन्न भागों की जो मुख्य आरटरीज होती हैं, उनके साथ एक वेन भी होती है। छोटी आरटरीज के साथ उनके दोनों ओर एक वेन होती है। सामान्यत: इसके साथ एक उन-उन भागों का चेतातंतु भी होता है व यह सभी संधि के द्वारा कोशिका के आवरण में एकत्रित बाँधे हुए होते हैं। इसे ही न्युरो-वॅसक्युलर बंडल कहते है।

– बड़ी आरटरीज व वेन्स के एक-दूसरे के अगल-बगल होने के कारण इनमें उष्णता का प्रवाह होता रहता है। ङ्गलस्वरूप शरीर के लिये उचित तापमान बनाये रखने में मदत मिलती है।

कार्यों के आधार पर रक्तवाहिनियों के पाँच उपप्रकार हैं –

अ) Conducting वाहिनियाँ – हृदय से शरीर की ओर रक्त को लेकर जानेवाली सभी बड़ी आरटरीज व उनकी शाखायें। इन रक्तवाहिनियों की दीवारों की मोटाई ज्यादा लचीली होती है।

ब) Distributing अथवा विभिन्न स्थानों पर रक्त पहुँचाने वाली वाहनियाँ – ये छोटी वाहिनियाँ प्रत्येक अवयव को रक्त की आपूर्ति करती हैं।

क) Resistance वाहनियाँ – मुख्यत: सभी आरर्टिरिओल्स इस प्रकार में आती हैं। इन रक्तवाहनियों की दीवारों में स्नायुओं की मात्रा ज्यादा होती है। इनमें रक्त के प्रवाह का विरोध होता है, इसीलिये इन्हें रेझिसटन्स रक्तवाहनियाँ कहते हैं।

ड) Exchange रक्तवाहनियाँ – केशवाहनियाँ, केशवाहनियों के जाले व उनसे बाहर निकलने वाली छोटी वेन्युल्स इत्यादि सभी आदान-प्रदान करनेवाली रक्तवाहनियाँ हैं। पेशीयों के स्तर पर वायु, अन्नघटक, संप्रेरक, प्रतिजैविक, त्याज्य एवं ज़हरीले पदार्थ इत्यादि सभी का आदान-प्रदान इन रक्तवाहनियों के द्वारा होता है। सूक्ष्म रक्तवाहनियों व सूक्ष्म कोशिकाओं में इस प्रकार से रक्ताभिसरण होता है, इसीलिये इसे सूक्ष्म रक्ताभिसरण (microcirculation)भी कहते हैं।

इ) Reservoir अथवा भंडारण करने वाली रक्तवाहनियाँ – बड़ी वेन्युल्स, वेन्स व वेनाकॅवा इत्यादि सभी रक्तवाहनियाँ reservoir रक्तवाहनियाँ हैं। इनमें रक्त के प्रवाह का अत्यल्प विरोध होता हैं। आवश्यकतानुसार इनका खाली रहनेवाला हिस्सा बढ़ सकता है, जिससे कि ज्यादा से ज्यादा रक्त जमा किया जा सकता है। इसीलिये शरीर के रक्त की मात्रा का सबसे ज्यादा हिस्सा इन रक्तवाहनियों में होता है।

(क्रमश:)

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