हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – २४

हम अपने रक्ताभिसरण व रक्तदाब (रक्तचाप-ब्लड प्रेशर) पर नियंत्रण रखने वाले घटकों के बारे में जानकारी ले रहे हैं। अब हम अपने मष्तिष्क व चेतासंस्था की इस नियंत्रण में रहनेवाली भूमिका के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। चेतासंस्था के द्वारा होनेवाला नियंत्रण पूरे शरीर में कार्य करता है। इसके कार्य किसी एक अवयव तक सीमित नहीं रहते। यह नियंत्रण पूरी तरह ऑटोनोमिक चेतासंस्था के द्वारा किया जाता है। इस संस्था के कार्यों के कारण शरीर के रक्त का प्रवाह की आवश्यकतानुसार पुन: बंटवारा होता है। हृदय की पंपिंग बढ़ जाती है व आरटरीज में रक्तदाब बढ़ जाता है। इस संस्था की सविस्तर जानकारी हम आगे प्राप्त करनेवाले है। यहाँ पर हम सिरफ उसके रक्ताभिसरण के साथ संबंध की जानकारी लेंगे।
ऑटोनोमिक चेतासंस्था व रक्ताभिसरण :

ऑटोनोमिक चेतासंस्था में से सिंपथेटीक चेतासंस्था रक्ताभिसरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पॅरासिंपथेटिक चेतासंस्था मुख्यत: हृदय पर कार्य करती है।

रक्तदाबसिंपथेटिक चेतासंस्था :

मज्जारज्जू से सिंपथेटिक वासोमोटर चेतातंतू छाती के बारह मणके (मणकें = कशेरुकाएँ – व्हर्टिब्राज़) व लंबर मणकों से पहले दो मणको के दरम्यान बाहर निकलते है। रीढ की हड्डी के दोनों ओर इस चेतातंतुओं की शृखंला बन जाती है। इस शृंखला से कुछ चेतातंतु सीधे हृदय, छाती व पेट के अन्य अवयवों की ओर जाते हैं। अन्य चेतातंतू मज्जारज्जू से शरीर के अन्य भागों की ओर जानेवाले मोटर चेतातंतु के मार्ग से शरीर के अन्य रक्तवाहिनियों तक पहुँचते हैं।

सिंपथेटीक चेतातंतू केशवाहनियाँ, प्रिकपिलरी, स्फिंक्टर व मेटाआर्टीरिओल्स को छोड़कर अन्य सभी आरटरीज व वेन्स पर कार्य करके छोटी आरटरीज व आरटिरिओल्स पर कार्य करने के बाद ये चेतातंतु उन्हें आकुंचित करते हैं। फलस्वरुप रक्तप्रवाह को होने वाला विरोध बढ़ जाता है व रक्तप्रवाह की गति कम हो जाती है।

वेन्स पर कार्य करते समय ये तंतु वेन्स को भी आकुंचित करते हैं। फलस्वरुप इनमें एकत्रित रक्त हृदय की ओर जाता है तथा हृदय की पंपिंग बढ़ जाती है। अत: रक्त का वितरण आवश्यकतानुसार किया जा सकता है।

हृदय पर इनके कार्यों के कारण हृदय के स्पंदनों का वेग बढ़ जाता है और पंपिंग भी ज्यादा जोर से होती है।

  • पॅरासिंपथेटिक चेतातंतु मुख्यत: सिर्फ हृदय पर कार्य करते हैं। ‘वेगस’ नाम के चेतारज्जू के द्वारा ये तंतु हृदय में पहुँचते हैं। इनके कार्यों के कारण हृदय के स्पंदनों का वेग कम हो जाता है व हृदय के स्नायुओं की आकुंचनशक्ति भी कम हो जाती है।
  • सिंपथेटिक चेतासंस्था के वासोकन्स्ट्रिक्टर कार्य व मस्तिष्क द्वारा होनेवाले उसके नियंत्रण सिंपथेटिक संस्था से वासोकन्स्ट्रिक्टर तंतू शरीर के पूरे भाग में फैल जाते हैं। मूत्रपिंड, आँते, त्वचा आदि में ये चेतातंतू ज्यादा शक्तिशाली होते हैं तथा स्केलेटल स्नायु व मस्तिष्क में तंतू के कार्य थोड़े क्षीण होते हैं।

वासोमोटर केन्द्र: हमारे छोटे मस्तिष्क के पॉन्स व मेड्युला नामक जो भाग होते हैं, उसमें मध्यरेखा के दोनों ओर ये केन्द्र होते हैं। इन केन्द्रों से सिंपथेटिक व पॅरासिंपथेटिक दोनो प्रकार की संवेदनायें बाहर निकलती है। पॅरासिंपथेटिक सिग्नल्स वेगस नर्व (चेतारज्जू) के माध्यम से तथा सिंपथेटिक सिग्नल्स सिंपथेटीक चेतातंतुओं के माध्यम से पहुँचाये जाते हैं। इस वासोमोटर केन्द्र के तीन मुख्य भागों में बांटा गया है-

१) वासोकन्स्ट्रिक्टर भाग

इनमें से मज्जारज्जू के पास रक्तवाहनियों को आकुंचित करने के सिग्नल्स पहुँचाये जाते है।

२) वासोडायलेटर भाग

इनमें से निकलनेवाले सिग्नल्स शरीर में ना जाकर, वासोकन्स्ट्रिक्टर भाग की ओर जाते हैं व वहाँ पर कार्यरत पेशियों के कार्यों पर रोक लगाते हैं। रक्तवाहनियों को आकुंचित करने के सिग्नल्स न पहुँचने के कारण शरीर की रक्तवाहनियाँ डायलेट हो जाती है।

३) सेन्सरी अथवा संवेदनशील भाग

वेगस व ग्लॅसोफॅरिंजिकल चेतारज्जू से इस भाग की ओर शरीर से सिग्नल्स आते हैं। आये हुये इन संदेशों के आधार पर रक्तवाहनियों को आकुंचित अथवा डायलेट करने की आवश्यकता यह भाग तय करता है तथा उसी प्रकार सिग्नल्स बाहर भेजता है। यदि रक्त वाहनियों को आकुंचित करने की आवश्यकता होती है तो वैसा संदेश वासोकन्स्ट्रिक्टर भाग को पहुँचाये जाते हैं। यदि रक्तवाहनियों को डायलेट करना आवश्यक होने पर वैसा संदेश वासोडायलेटर भाग को पहुँचाया जाता है।

वासोमोटर टोन : वासोमोटर केन्द्र के वासोकन्स्ट्रिक्टर भाग से वासोकन्स्ट्रिक्टर सिग्नल्स लगातार चेतातंतुओं  को भेजे जाते हैं। फलस्वरुप शरीर की सभी रक्तवाहनियाँ हमेशा कुछ मात्रा में आकुंचित रहती हैं। इसे वासोमोटर टोन कहा जाता है। रक्तवाहनियों में रक्तदाब को एक तय स्तर पर रखने के लिये इसकी अत्यंत आवश्यकता होती है। उदा. साधारणत: रक्तवाहनियों (आरटरीज) रक्तदाब १०० mmHg होता है। यदि इन रक्तवाहनियों का वासोमोटर टोन किन्हीं कारणों से (मणके से दी गयी भूल – Spinal anaesthesia) शून्य हो जाये तो यह रक्तदाब तुरंत ही ५० mmHg तक नीचे गिर जाता है।

हृदय के स्पंदन, हृदय के स्नायुओं का आकुंचन इन सभी पर वासोमोटर केन्द्र का नियंत्रण होता है। वैसे ही इस वासोमोटर केंद्र पर मुख्य मस्तिष्क का नियंत्रण होता है। इसमें भी हैपोथॅलॅमस व मस्तिष्क के अन्य भाग सहभागी होते हैं।

नॉरएपिनेफ्रिन एक महत्त्वपूर्ण न्यूरोट्रान्समीटर (चेतातंतुओं से स्त्रवित होनेवाला घटक) है, जो रक्तवाहनियों को आकुंचित करता है। इस घटक को अ‍ॅड्रिनल ग्रंथी में से रक्त में छोड़ा जाता है।

अब तक हमने रक्ताभिसरण पर होने वाले नियंत्रणो का अध्ययन किया। अगले लेख में हम देखेंगे कि मस्तिष्क के द्वारा रक्तदाब को कैसे नियंत्रित किया जाता है।

(क्रमश:)

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